पृथ्वी में भांति-भांति के लोग निवास करते हैं, भांति-भांति के पशु-पक्षी,भांति-भांति की वनस्पतियां और भांति-भांति के भौगोलिक स्थल भी यहां मौजूद हैं। यह सब यहां मौजूद है तो भांति-भांति यानी तरह-तरह के रोग और इन रोगों को पैदा करने वाले विषाणु भी इस धरा में मौजूद हैं। रोग आते हैं और चले भी जाते हैं। कभी- कभी ये रोग महामारी का रूप भी धारण कर लेते हैं और यह महामारी दुनिया के हजारों-लाखों लोगों को मौत के आगोश में भी ले लेती है। रोग है तो निदान भी होगा ही। शुरुआत में दिक्कत होती है क्योंकि रोग की पहचान नहीं हो पाती और इस वजह से उपचार में दिक्कतें आती हैं लेकिन धीरे-धीरे उपचार के तरीके भी निकल आते हैं।
एक ज़माना था जब मलेरिया, प्लेग, हैजा, चेचक और ऐसी ही अन्य कई बीमारियां भी लाइलाज समझी जाती थीं लेकिन बाद में इनके उपचार की तकनीकी भी विकसित हुई, दवा भी बनी और रोकथाम के लिए टीकों का भी आविष्कार हो गया। भारत में मलेरिया अब लगभग शांत है, इससे मिलता-जुलता डेंगू अब नियंत्रण में है। कोरोना की दस्तक ने भी आज कुछ- कुछ वैसा ही डरावना माहौल बना दिया है जैसा आज से कई दशक पहले प्लेग, हैजा, चेचक और ऐसी ही दूसरी महामारियों के चलते बना था, भरोसा रखना चाहिए कि जब ये सभी रोग आज लोगों की याददाश्त से बाहर हो गए हैं वैसे ही कोरोना भी आज नहीं तो कल अतीत की स्मृतियों में ही सिमट कर रह जाएगा।
वैज्ञानिक अपनी खोज में लगे हैं और कोरोना के उपचार की तकनीकी विकसित करने के साथ ही तरह -तरह की दवाइयों की खोज में भी लगे हैं। कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे प्रयासों में काफी सफलता भी मिली है और नई दवाओं का उपयोग भी किया जा रहा है। कुछ अपवाद मामलों को छोड़ दें तो नई तकनीकी और दवाओं का जितने मरीजों पर प्रयोग किया जा रहा है उसके सार्थक और सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
याद करें पांच महीने पहले के वो दिन जब चीन में सबसे पहले कोरोना ने भयानक दस्तक दी थी। तब न तो किसी को इसके लक्षण समझ में आये थे और न ही यह पता था कि कौन सा वायरस इसके प्रसार का कारण है। आज स्थितियां काफी बदल गई हैं कोरोना के मरीजों की संख्या भी बढ़ी तो इसके क्षेत्रफल में भी विस्तार हुआ। एक देश से निकल कर कोरोना आज पूरी दुनिया में फ़ैल चुका है पर इसके साथ ही कोरोना के उपचार का भी विस्तार हुआ है।
उपचार के विस्तार को इस तरह भी समझा जा सकता है कि शुरू में अमेरिका लो लगा कि भारत में बनी हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन इसके उपचार की एक तात्कालिक दवा हो सकती है। इसीलिए बड़ी तादाद में भारत से उसका निर्यात भी किया गया, यह दवा तो मलेरिया के उपचार के लिए बनी थी लेकिन इसका वैकल्पिक उपयोग कोरोना के इलाज में भी सफल बताया जा रहा है। यह सिलसिला अभी प्रक्रिया के दौर से ही गुजर रहा है लेकिन इसी बीच चीन से प्लाज्मा थेरेपी की बात शुरू हो गई। उधर ब्रिटेन के कुछ वैज्ञानिकों ने हर्ड इम्युनिटी नामक एक एक नई उपचार शैली विकसित की है और अनेक लोगों का यह भी मानना है कि कोविड -19 नामक इस रोग के उपचार में रेमेदिसविर नामक एक दवा भी मददगार साबित हो सकती है। इस दवा की खोज करने वाले अध्ययन करने वालों का दावा है कि इस दवा की ईजाद 2014 में इबोला नामक वायरस का इलाज करने की गरज से की गई थी लेकिन यह दवा कोरोना के इलाज में भी कारगर साबित हो रही है। बताया गया है कि रेमेदिस्विर नामक यह दवा कोरोना के पौलीफेरस नामक वायरस के प्रसार को रोकने में भी मददगार साबित हो सकती है।
इस पृष्ठभूमि में कोरोना वायरस से डर की कोई उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। सवाल यही है कि कोरोना से लड़ाई में हमको किस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है। इस लिहाज से देखें तो कोरोना को लाइलाज बीमारी कहना सही नहीं होगा। कहना गलत नहीं होगा कि इस धरा में समय-समय पर अपने रौद्र रूप के साथ अवतरित होने वाले महारोगों की तरह कोरोना भी लाइलाज बीमारी नहीं है और इसका इलाज भी संभव है।
प्रसंगवश एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि चाहे प्लाज्मा थेरेपी हो या फिर हर्ड इम्युनिटी दोनों ही तरह की चिकित्सा तकनीकी में इलाज के लिए ऐसे मरीजों की ही जरूरत होती है जो इस संक्रमण का शिकार होकर स्वस्थ हो चुके हों। हर्ड इम्युनिटी तकनीक में संक्रमण से स्वस्थ्य हुए लोगों के झुण्ड या समूह के बीच रहने वाले उन लोगों को इस रोग से संक्रमित होने से बचाया जा सकता है जो अभी तक इसके संक्रमण से मुक्त हैं।
वैज्ञानिकों की माने तो ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जो व्यक्ति इसके संक्रमण से मुक्त होकर स्वस्थ हो जाता है उसके शरीर में एंटी बॉडीज बननी शुरू हो जाती हैं। जब ऐसे 60 से 65 प्रतिशत व्यक्तियों के समूह में वो लोग इनके साथ रहते हैं जिन पर कोरोना वायरस का अभी तक असर नहीं हुआ है तो ऐसे लोग बाद में भी इसका शिकार होने से इसलिए बच जाते हैं क्योंकि जो लोग एंटी बॉडीज बनाने के चलते अपने शरीर में रोगों से लड़ने की प्रतिरोधी ताकत बढ़ा लेते हैं वो कोरोना के वायरस को आगे बढ़ने से रोकने में मदद करते हैं।
कहना यह भी है कि इस प्रक्रिया में कोरोना के वायरस का असर एकदम खत्म हो चुका होता है। ऐसे में कोरोना का वायरस उन लोगों को अपने संक्रमण का शिकार नहीं बना पाता जो उन लोगों के बीच में रहते हैं जो इस संक्रमण का शिकार होने के बावजूद स्वस्थ होकर वापस लौटे हों।
इसी तरह प्लाज्मा थेरेपी से इलाज में भी उन लोगों की ही जरूरत होती है जो एक बार संक्रमण का दंश भुगत कर स्वस्थ हुए हों। ऐसे लोगों के शरीर से खून निकाल कर और उस रक्त में से प्लाज्मा को अलग कर इस प्लाज्मा से नए मरीजों का इलाज किया जाता है। इस तरह कह सकते हैं कि उपचार की चाहे जो भी तकनीक हो उसका प्रयोग हो रहा है और उम्मीद की जानी चाहिए एक दिन कोरोना किसी भी तरह से लाइलाज नहीं रह जाएगा ।