
कोरोना वायरस को नियंत्रण में रखने की गरज से पूरे देश में लागू किये गए लॉकडाउन के तीसरे चरण की मियाद ख़त्म होने का दिन जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है वैसे ही वैसे पूरे देश की निगाहें इसी बात पर लगी हैं कि 17 मई के बाद अब आगे क्या होगा। आज बुधवार है और इस सप्ताह के चार दिन बाद रविवार 17 मई को रात 12 बजे के बाद इस मामले में एक नए दौर की शुरुआत होगी। याद होगा कि पूरे देश में 24 मार्च 2020 को रात 12 बजे के बाद उस समय के एक नए दौर की शुरुआत हुई थी जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने राष्ट्रीय संबोधन के जरिये पूरे देश में तीन सप्ताह तक चलने वाले लॉक डाउन की घोषणा की थी।
देश के लिए यह पहला अनुभव था जब इतने लम्बे समय के लिए उसे बाजार से लेकर स्कूल-कॉलेज, सड़क परिवहन से लेकर रेल हवाई यात्रा, उद्योग से लेकर दफ्तर और मंदिर- मस्जिद से लेकर गुरुद्वारा और गिरिजाघर तक सब जगह जाने की मनाही के सरकारी आदेश का पालन करने को विवश होना पड़ा था। केवल अनिवार्य सेवाओं को छोड़ कर तमाम सेवायें इस दौरान बंद रखने के आदेश का पालन करना समय की जरूरत भी थी और देश को महामारी का ग्रास बनने से बचाने की विवशता भी और जिम्मेदारी भी थी।
एक- दो दिन की शुरुआती दिक्कतों को छोड़ दें तो बाद के दौर में इंसान इसका अभ्यस्त भी हो गया और उसने इन बंदिशों के साथ जीने की आदत भी डालनी थी। यह सिलसिला पहले चरण के रूप में 14 अप्रैल 2020 तक चला। उम्मीद थी कि तीन हफ्ते में कोरोना की स्थितियों पर काबू पा लिया जाएगा पर ऐसा नहीं हो सका नतीजतन दूसरे चरण के लिए लॉकडाउन की अवधि 3 मई 2020 तक बढ़ाई गई और उसके बाद यह सिलसिला 17 मई तक के लिए बढ़ाया गया था।
लॉकडाउन का कोरोना को रोक पाने में कितना फायदा हुआ यह विवाद का विषय हो सकता है लेकिन इसके साथ ही यह भी एक सच्चाई है कि इतने लम्बे समय तक व्यापारिक, व्यावसायिक, औद्योगिक और वाणिज्यिक संस्थानों-प्रतिष्ठानों के बंद रहने से हर तरह का उत्पादन बंद हो गया जिसका असर आर्थिक मंदी के रूप में पूरे देश में ही नहीं दुनिया पर पड़ा है। इसकी वजह से बेरोजगारी की समस्या भी खड़ी हो गई है। लॉकडाउन की वजह से यह समस्या पैदा हुई तो इसका उपाय करना भी जरूरी है। उपाय यही है कि कोरोना की साथ लगते हुए उसके साथ जीने की भी आदत डालनी होगी।
नियति का खेल देखिये कि जब लॉकडाउन के पहले चरण का आगाज हुआ था तब इंसान को बंदिशों के साथ जीने के लिए तैयार होना पड़ा था और तीसरे चरण की समाप्ति तक आते – आते उसी इंसान को उस कोरोना के साथ – साथ जीने की आदत बनाने को मजबूर या विवश होना पड़ रहा है जिसे एक भयावह बीमारी के रूप में फैलने से रोकने के लिए बंदिशों की जरूरत महसूस हुई थी। 17 मई के बाद उसी तरह धीरे- धीरे ही सही घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय विमान सेवायें भी शुरू होंगी जिस तरह 12 मई से भारतीय रेल का चक्का फिर से चलना शुरू हुआ था। रेल परिवहन के पुनर्परिचालन को लेकर कुछ असहमतियां हो सकती हैं क्योंकि इस मामले में केवल वातानुकूलित सेवाओं को शुरू किया गया। गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों की जरूरतों को नजर अंदाज किया गया।
विमान सेवाओं के परिचालन में ऐसी असहमतियां शायद ही पनप सकें क्योंकि यह सेवा तो बनी ही अमीर तबके के लिए है। भारत जैसे गरीब देश का गरीब और मजदूर तबका तो अपने खर्च पर हवाई सेवा की कल्पना भी नहीं कर सकता है। बहरहाल ! यह सब दोबारा से शुरू होना आज बहुत जरूरी है क्योंकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए इसके अलावा दूसरा कोई उपाय भी नहीं है। लॉकडाउन की वजह से आर्थिक मंदी की क्या हालत हुई है इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि आंध्र प्रदेश स्थित तिरुमाला देवस्थानम ट्रस्ट (तिरुपति मंदिर ट्रस्ट) ने हाल ही में यह बयान दिया है कि कोरोना लॉकडाउन की वजह से उसे 400 करोड़ रुपये का नुक्सान उठाना पड़ रहा है जिसकी वजह से ट्रस्ट अपने कर्मचारियों को वेतन देने की स्थिति में ही नहीं है।
कल्पना ही की जा सकती है कि जब देश के सबसे धनी समझे जाने वाले धार्मिक संस्थान की हालत यह हो गई हो तब दूसरे तुलनात्मक रूप से गरीब समझे जाने वाले धार्मिक संस्थानों की हालत क्या होगी। और जब इनकी यह हालत है तो देश के औद्योगिक, व्यापारिक और वाणिज्यिक संस्थानों की हालत क्या हुई होगी जिनका तो कारोबार ही यही है और इनके कारोबार से ही देश भी आगे बढ़ रहा है। बात केवल भारत की ही नहीं है कोरोना के मामले में पूरी दुनिया की कहानी एक जैसी है।
अमेरिका से लेकर चीन और भारत तक एशिया, अमेरिका और यूरोपीय महाद्वीप के ज्यादातर देश इस संकट से त्रस्त हैं और सभी को कोरोना से बचने के लिए पहले लॉकडाउन की शरण में ही जाना पड़ा है और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले इसके प्रतिकूल प्रभावों से बचने के लिए नए- नए तरीकों के साथ इससे बाहर निकलने की जुगत भी सोचनी पड़ी है। दुनिया के सभी देश कोरोना महामारी के इस संकट में लॉकडाउन के चलते उद्योग- धंधे चौपट होने से आर्थिक मंदी के बेहद गंभीर दौर से गुजर रहे हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित छोटे उद्योग- धंधे हैं। कई देशों में बेरोजगारी का ग्राफ भी तेजी से बढ़ा है। इससे निपटने के लिए कई देश कंपनियों को राहत और प्रोत्साहन के आकर्षक पकेज भी दे रहे हैं। भारत जैसे गरीब देश भी ऐसा ही कुछ कर रहे हैं।