लॉकडाउन का असर: भूख-प्यास से तड़प रहे हैं फैक्ट्रियों और कारखानों में कैद हजारों बाल मजदूर


सरकार को तालाबंदी में फंसे बाल मजदूरी से पीड़ित बच्चों के लिए भोजन, चिकित्सा और सुरक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। जमालो मकदम की तरह कोई और बाल मजदूर दम न तोड़े, इसलिए बाल मजदूरों के लिए अलग से सुरक्षा शिविर लगाने की जरूरत है। तालाबंदी खुलने के बाद बच्चों को उनके घरों में सुरक्षित पहुंचाने का प्रबंध भी सरकार को करना होगा।



डॉ.प्रभाकर कुमार  

कोरोना महामारी संकट की वजह से देश में तालाबंदी है। लोग अपने घरों में कैद हैं और कल-कारखाने बंद हैं। अर्थव्यवस्था को गति देने वाले उद्योग-धंधों की रीढ़ माने जाने वाले लाखों मजदूर दर-बदर की ठोकरे खा रहे हैं। इसमें बड़ी संख्या प्रवासी मजदूरों की है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले करीब 39 करोड़ मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है। हालांकि केंद्र सरकार सहित विभिन्न राज्य सरकारों ने इनकी चिंता करते हुए कुछ राहत पैकेज की घोषणा की है। समाज के विभिन्न तबकों के लोग भी सहानुभूति जताते हुए इनकी मदद कर रहे हैं। लेकिन फैक्ट्रियों और कारखानों में कैद हजारों बाल मजदूरों की कहीं कोई बात नहीं हो रही है। ये भूख प्यास से तड़प रहे हैं। इनकी सुध न तो उनका मालिक ले रहा है और न ही सरकार। 

भारत की जनगणना-2011 के मुताबिक देश में बाल मजदूरों की संख्या एक करोड़ से ज्यादा है। जबकि गैरसरकारी आंकड़ों के हिसाब से यह संख्या तकरीबन 5 करोड़ है। ज्यादातर बाल मजदूरी असंगठित क्षेत्र में ही कराई जाती है। देश में बाल श्रम प्रतिबंधित है और इसके खिलाफ सख्त कानून भी है। लेकिन, फैक्ट्रियों और कारखानों के मालिक ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में सस्ते श्रम की वजह से बच्चों को काम पर रखते हैं। इनमें से ज्यादातर तो बंधुआ बाल मजदूर होते हैं। जिन्हें गरीबी से जूझ रहे राज्योंमसलन उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल आदि से ट्रैफिकिंग के जरिए खरीद-फरोख्त कर लाया जाता है। दरअसल, ये बाल मजदूर अपने मां-बाप से दूर फैक्ट्रियों-कारखानों में, वहीं रहते हुए काम करते हैं। मालिक इनका शोषण करते हुए 15-20 घंटे काम लेते हैं। चार घंटे के भीतर अचानक तालाबंदी की घोषणा से मालिकों को अपनी फैक्ट्रियों और कारखानों से इन बाल मजदूरों को निकालने का मौका नहीं मिला। लिहाजा, बाल मजदूर यहीं फंसे हुए हैं। 

चूंक,बाल और बंधुआ मजदूरी कानूनन जुर्म है, लिहाजा फैक्ट्री और कारखाना मालिक उन्हें बाहर भी नहीं निकालने की हिम्मत कर पा रहे हैं। ऐसे में ये बाल मजदूर बच्चे भूखे प्यासे दिन गुजार रहे हैं। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित जानेमाने बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने इन बच्चों की जान बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार लगाई है। उन्होंने एक पत्र लिख कर ऐसे फैक्ट्री और कारखाना मालिकों को सजा से वंचित करने की मांग की है जो स्वेच्छा से अपने यहां काम करने वाले बाल मजूदरों को सरकार को सौंप दें। सत्यार्थी ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में गुजारिश की है, “मेरे पास देश के कई हिस्सों से इस बात की सूचनाएं हैं कि तालाबंदी में छोटी-छोटी फैक्टरियों और कारखानों के बंद हो जाने से हजारों बाल मजदूर वहीं फंस गए हैं। पहले भी उन्हें पूरी मजदूरी नहीं दी जाती थी, अब उनके खाने तक के लाले पड़ गए हैं। मालिक लोग अपने घरों में सुरक्षित बैठ गए हैं। एक विशेष अधिसूचना जारी करके सभी नियोजकों को अगले तीन महीने के लिए यह छूट दे दी जाए कि यदि वे संबंधित अधिकारियों को सूचित करके अपने यहां कार्यरत बाल मजदूरों को स्वेच्छा से मुक्त कर देते हैं तो उन पर कोई दण्डात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।”

कभी बाल मजदूरी के विरोध में सख्त कानून बनाने की मांग को लेकर सड़कों पर लड़ाई लड़ने वाले कैलाश सत्यार्थी सरकार से कानून के पालन में छूट देने की मांग कर रहे हैं तो यह एक गंभीर मसला है। बाल हिंसा के खिलाफ सख्त रुख अपनाने वाले सत्यार्थी ने अपराधियों की सजा माफी की मांग दिल पर पत्थर रख कर इसलिए की है ताकि हजारों बच्चों को भुखमरी और मौत से बचाया जा सके। सत्यार्थी प्रधानमंत्री से कहते हैं,“हमारे देश में बाल मजदूरी के खिलाफ एक अच्छा कानून है। लेकिन, आज और अभी, उन बच्चों का जीवन बचाना सबसे ज्यादा जरूरी है। मैं इन बेहद असमान्य और कठिन परिस्थितियों को देखते हुए अत्यन्त दुखी मन से यह आग्रह कर रहा हूं।” सत्यार्थी की मांग पर संरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। ऐसा सरकार आसानी से कर भी सकती है।सरकारों के विभिन्न महकमें कई बार ऐसी छूट देते भी हैं। काला धन जमा करने वाले और टैक्स चोरी करने वालों के लिए ऐसा प्रावधान किया जा चुका है।

देश में बाल मजदूरी के लिहाज से सबसे संवेदनशील राज्यों में ज्यादातर उत्तर भारत के राज्य हैं। उत्तर प्रदेश इस मामले में सबसे आगे है। जनगणना-2011 के आंकड़ों के मुताबिक यहां बाल मजदूरों की संख्या 21.8 लाख है। दूसरे नंबर पर बिहार और तीसरे नंबर पर राजस्थान है। बिहार में 10.9 लाख तो राज्स्थान में 8.5 लाख बाल मजदूर हैं। जबकि महाराष्ट्र चौथे नंबर पर (7.3 लाख), मध्य प्रदेश पांचवे नंबर पर (7.0 लाख), पश्चिम बंगाल छठे नंबर पर (5.5 लाख), गुजरात सातवें नंबर पर (4.6 लाख), कर्नाटक आठवें नंबर पर (4.2 लाख), झारखंड नौवे नंबर पर (4.0 लाख) और आंध्र प्रदेश दसवें नंबर पर (3.4 लाख) है। उड़ीसा और तेलंगाना में तीन लाख से ज्यादा तो आसाम, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ में ढाई लाख से ज्यादा बाल मजदूर हैं। पंजाब, हिमाचल, हरियाणा और जम्मू कश्मीर ऐसे राज्य हैं जहां बाल मजदूरों की संख्या लाख से ज्यादा है। ये सरकारी आंकड़े हैं। जबकि इन राज्यों में इससे कहीं ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी करते हैं। इन राज्य सरकारों को भी बच्चों के प्रति सहानुभूति रखते हुए इन्हें बचाने के लिए कुछ कारगर कदम उठाने चाहिए। 

बहुत सारे बच्चे अपने परिवारवालों और रिश्तेदारों के साथ भी दूसरे राज्यों में मजदूरी करने जाते हैं। उनकी हालत भी खराब है। तालाबंदी के बाद से ही महानगरों में मजदूरी करने वाले प्रवासी मजदूर यातायात और परिवहन साधनों के बंद होने की वजह से पैदल ही अपने गांवों की तरफ निकल पड़े हैं। हफ्तों पैदल चल कर सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर वे अपने गांव पहुंच रहे हैं। इस बीच थकान और भूख से उनके साथ के बच्चे बेहाल हैं। उनके दम तोड़ने की भी खबरे आ रही हैं।ऐसी ही 12 साल की एक बच्ची जमालो मकदम अपने रिश्तेदारों के साथ तेलांगना के मिर्ची बागानों में काम करती थी। जब वह तेलंगाना से 150 किलोमीटर पैदल चल कर छत्तीसगढ़ में अपने घर लौट रही थी, तभी भूख प्यास से रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया। डॉक्टरों के अनुसार शरीर में भोजन-पानी की कमी के कारण उसकी मृत्यु हुई।

सरकार को तालाबंदी में फंसे बाल मजदूरी से पीड़ित बच्चों के लिए भोजन, चिकित्सा और सुरक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। जमालो मकदम की तरह कोई और बाल मजदूर दम न तोड़े, इसलिए बाल मजदूरों के लिए अलग से सुरक्षा शिविर लगाने की जरूरत है। तालाबंदी खुलने के बाद बच्चों को उनके घरों में सुरक्षित पहुंचाने का प्रबंध भी सरकार को करना होगा। इसके लिए स्थानीय सामाजिक संगठनों की मदद भी ली जा सकती है। भविष्य की एक पीढ़ी को नारकीय जीवन से बचाने के लिए प्रधानमंत्री को फैसला लेना ही होगा।

(डॉ.प्रभाकर कुमार बाल अधिकार कार्यकर्ता एवं झारखंड स्थित बोकारो स्टील सिटी कॉलेज में मनोविज्ञान के सहायक प्रोफेसर हैं।)