हिंदी मीडिया क्यों नहीं खोज पा रहा है “लॉकडाउन” का समानार्थी शब्द

कुछ ख़ास शर्तों के साथ आज सोमवार 20 अप्रैल से खेतों में कामकाज शुरू करने के साथ ही कुछ कारखानों में काम भी शुरू होना है। यह काम भी इसलिए शुरू करना पड़ेगा क्योंकि अब तक करीब 25 दिन के बंद के दौरान देश को आर्थिक मोर्चे पर कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है ये चुनौतियां गंभीर किस्म की हैं। अगर खेत में पक कर खड़ी फसल को समय पर न काटा गया तो देश को खाद्यान संकट का सामना करना पड़ सकता है।

कोरोना वायरस की वजह से चलन में आये  अंग्रेजी के लॉकडाउन शब्द को वैश्विक भाषा का एक महत्वपूर्ण शब्द माना जाने लगा है। अब ये तो पता नहीं की चीन की अधिकृत मन्दारिन भाषा में इसका किस रूप में इस्तेमाल हो रहा है लेकिन भारत जैसे दुनिया के अधिकांश देशों में तो लॉकडाउन को  एक शब्दरूढ़ि के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। लगता है इसका या तो कोई स्थानीय विकल्प नहीं मिल सका या फिर विकल्प खोजने की ही कोई कोशिश नहीं की गई। भारत में तो कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी और गुजरात से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक देश के सभी राज्यों में कोरोना के सन्दर्भ में इसी लॉकडाउन शब्द से पहचाने और तलाशे जा रहे हैं। 

भारत ही नहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका समेत दुनिया के सभी छोटे-बड़े देश चाहे वो एशिया, अफ्रीका, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया अथवा किसी भी महाद्वीप का हिस्सा क्यों न  हों, अगर किसी भी रूप में कोरोना के दंश से ग्रसित हैं तो इसके बचाव का यही एक शब्द सभी देशों में सामान्य रूप से चलन में है। इधर कुछ हलकों में इसका स्थानीय विकल्प तलाशने की कोशिश भी की गई लेकिन कई उदारवादी भाषा वैज्ञानिकों का मानना है कि भाषा का प्रवाह बने रहने के लिए कोरोना के सन्दर्भ में इसी शब्द का इस्तेमाल जारी रहना चाहिए, ठीक उसी तरह जिस तरह श्रीलंका में उग्रवादी तमिल आतंक के दौरान भारत के हिंदी बेल्ट में “लिट्टे” शब्द का उन्मुक्त उपयोग हुआ करता था। 

दरअसल, लिट्टे शब्द उन दिनों श्रीलंका में सक्रिय तमिल उग्रवादी संगठन “लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल एलम” (एलटीटीई) का हिंदी संक्षिप्तिकरण था। उस दौर में भी भारत के  कुछ हिंदी  समाचार  पत्रों ने इस शब्द का स्थानीय विकल्प, “तमिल मुक्ति चीते” के रूप में चलाने की कोशिश जरूर की थी लेकिन वह शब्द लोगों की जुबान पर आ ही नहीं सका और लिट्टे धड़ल्ले से चलन में आ गया। आज कोरोना संकट के दौर में वही हालत लॉकडाउन की हो गई है। इसके अलावा दूसरा कोई शब्द किसी को सूझता ही नहीं, सूझता भी है तो जुबान पर नहीं आता है।

इसी लॉकडाउन शब्द के सहारे जब हम आज की कोरोना स्थिति पर नजर डालते हैं तो हमें उत्तर प्रदेश के मलीहाबाद से लेकर झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल राज्यों, कश्मीर से लेकर गुजरात महाराष्ट्र और दक्षिण के तमाम राज्यों से लेकर सूदूर पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों तक इसी लॉकडाउन का असर कोरोना के असर से कहीं ज्यादा दिखाई देता है। विगत 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आह्वान पर लगाए गए एक दिन के जनता कर्फ्यू के बाद स्थितियां ही कुछ ऐसी बन गईं कि देश में सब कुछ बंद करना पड़ गया। यह सरकार और देश दोनों की ही मजबूरी थी क्योंकि ऐसा न करते तो कोरोना का वायरस आज तक न जाने कितने देशवासियों  को मौत के हवाले कर देता। 

सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी) के चलते लोगों को एक दूसरे सके करीब आने से रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी बंद  ही एकमात्र विकल्प था जिसका फायदा भी मिला। इसी बंद को लॉकडाउन नाम दिया गया था जिसकी वजह से सड़कों पर वाहनों की आवाजाही, रेल और हवाई यात्रा, स्कूलों- कॉलेज में पढ़ाई, दफ्तरों में कामकाज, खेतों में निराई -गोड़ाई, कटाई- बोवाई, कारखानों में मशीनों का चलना और बाजार में सामान की खरीद-फरोख्त सब कुछ बंद है। अनिवार्य सेवाओं को छोड़ कर यह सब कुछ अगले पखवाड़े तक बंद ही रहेगा। 

हां ! कुछ ख़ास शर्तों के साथ आज सोमवार 20 अप्रैल से खेतों में कामकाज शुरू करने के साथ ही कुछ कारखानों में काम भी शुरू होना है। यह काम भी इसलिए शुरू करना पड़ेगा क्योंकि अब तक करीब 25 दिन के बंद के दौरान देश को आर्थिक मोर्चे पर कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है ये चुनौतियां गंभीर किस्म की हैं। अगर खेत में पक कर खड़ी फसल को समय पर न काटा गया तो देश को खाद्यान संकट का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही अगर जरूरत का सामान फिर से बनाना शुरू नहीं किया तो भी कई तरह की दिक्कतें होंगी। इस वजह से अभी तक कई तरह की दिक्कतों का सामना देश को करना पड़ा है। इतने बड़े देश में लॉकडाउन की वजह सी होने वाली दिक्कतों का अम्बार भी बड़ा ही होगा। देश की सभी दिक्कतों पर तो चर्चा करना संभव नहीं होगा और ऐसा करना व्यावहारिक भी नहीं है लेकिन हाल के कुछ ख़ास मामलों का संज्ञान जरूर लिया जा सकता है। 

एक खबर उत्तर प्रदेश के मलीहाबाद से है। मलीहाबाद अपने दशहरी आमों के लिए देश ही नहीं दुनिया में भी बहुत मशहूर है। बाताया गया है कि आमों का राजा कहे जाने वाले मलीहाबाद के दशहरी आम पर इस बार कोरोना की नजर लग गई है। लॉकडाउन के चलते मलीहाबाद के आम कारोबार पर बुरा असर पड़ा है उससे किसान और व्यापारी दोनों परेशान हैं।

लॉकडाउन के साथ ही शनिवार 18 को आई बेमौसम बरसात ने मध्य प्रदेश के गेहूं  किसानों की मुसीबत में इजाफा कर दिया है। वैसे तो यह समय पूरे देश में मौसमी फसल गेंहूं की कटाई का समय है लेकिन मध्य प्रदेश कुछ ख़ास हो जाता है क्योंकि यहां के गेहूं की देश में ही विदेशों में भी बहुत मांग है। लॉकडाउन का असर उन किसानों पर भी प्रतिकूल रूप से पड़ा है जिनके व्यवस्थित रिकॉर्ड गेहूं क्रय केन्द्रों में नहीं मिल सके जिसकी वजह से देश के अनेक किसान बड़ी मात्रा में अपना गेहूं बेच ही नहीं सके। 

एक खबर इतनी द्रावक है कि एक दिहाड़ी के मजदूर ने लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने की सूचना मिलने पर आत्महत्या ही कर ली। लॉक डाउन के चलते वह मजदूर अपने चार बच्चों के लिए राशन का इंतजाम नहीं कर पाया था, उसे उम्मीद थी कि 15 अप्रैल को लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद वो खाने का इंतजाम कर लेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लॉक डाउन की वजह से कई  दिहाड़ी मजदूर अपने घरों को लौट गए थे उनका वापस काम पर लौटना भी संभव नहीं है। ऐसे में गेहूं की कटाई भी एक समस्या बन गई है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का इस बाबत यह कदम स्वागत योग्य ही कहा जाएगा कि प्रवासी मजदूरों को अविलम्ब मनरेगा जॉब कार्ड उपलब्ध कराया जाएगा। इसी तरह हरियाणा के मुख्यमंत्री ने भी राज्य में फंसे प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत फसल काटने की इजाजत देने के लिए केंद्र से अनुरोध किया है।   

(लेखक दैनिक भास्कर के संपादक हैं।)

First Published on: April 20, 2020 5:50 AM
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