लॉकडाउन के खट्टे-मीठे अनुभव…


सरकार के लिए यह समझ पाना
मुश्किल हो रहा है कि समस्या का समाधान कैसे निकाला जाए। इसीलिएप्रधानमंत्री भी असमंजस में हैं। लॉकडाउनका विस्तार तो करना है लेकिन इस विस्तार में कामकाज
की गतिविधियां भी संचालित रहें, ऐसे ही विकल्प सरकारें भी तलाश रहीं हैं।



समय जैसा भी हो अच्छा या बुरा,अपने अनुभव अपने साथ लेकर आता है। किसी एक समय के ये अनुभव बाद में कई वर्षों तक न केवल याद रहते हैं बल्कि गुजरे समय के ये अनुभव आने वाले समय में भी सबक का सबब बने रहते हैं। ऐसा ही कुछ लॉकडाउन के इस दौर में भी देखने को मिल रहा है। कोरोना महामारी से बचाव के लिए देश भर में लागू किये गए तीन हफ्ते के इस बंद के दौरान  जिसे लॉकडाउन नाम दिया गया है, ऐसे ही असंख्य अनुभव सामने आये हैं जिन्हें मीडिया से मिलने वाली रोजमर्रा की कुछ अलग किस्म की ख़बरों से समझा जा सकता है। 

ये ख़बरें अच्छी भी हैं और बुरी भी। लॉकडाउन का आज बीसवां दिन है और पूरी उम्मीद है कि इसका आगे भी विस्तार होगा। निश्चित रूप से लॉकडाउन के चलते कोरोना को फैलने से रोकने में मदद मिली है। इसलिए सूबों के मुख्यमंत्री भी चाहते हैं कि इसका कम से कम दो सप्ताह के लिए विस्तार हो। राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ शनिवार 11अप्रैल को विडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई मीटिंग में लॉकडाउन को बढ़ाने का अनुरोध  भी किया और इस बैठक के बाद प्रधानमंत्री ने भी इस आशय के संकेत दिए  कि लॉक डाउन की अवधि का विस्तार किया जा सकता  है। 

लिहाजा विस्तार तो होना ही है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि विस्तार का स्वरुप कैसा हो और इसे किस तरह अमल में लाया जाए। लॉकडाउन के विस्तार के सन्दर्भ में यह सवाल इसलिए भी प्रासंगिक लगता है क्योंकि लॉकडाउन की अवधि के दौरान देश को हुए असंख्य अनुभव अत्यंत अप्रिय और दुखद ही दिखाई दिए हैं। इन अनुभवों की एक बानगी इस रूप में देखी जा सकती है।

देश की राजधानी दिल्ली में कश्मीरी गेट के पास बखारों के लिए सरकार द्वारा बनाए गए तीन रैन बसेरों में से एक को भूख से पीड़ित लोगों ने आग के हवाले कर दिया। आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में पांच साल के एक बच्चे की अस्पताल में मौत के बाद उसके पिता को अपने बेटे की लाश को अपने  कंधे पर ढो कर मीलों दूर अंतिम संस्कार के लिए ले जाना पड़ा, क्योंकि लॉकडाउन के चलते सड़कों पर कोई वाहन नहीं था और सामजिक दूरी बनाए रखने के क्रम में उसके परिजन भी संकट की घड़ी में उसके साथ खड़े  नहीं हो  सके। 

इसी तरह की एक घटना पंजाब के पटियाला जिले की एक सब्जी मंडी में हुई। जिसमें निहंग समुदाय के व्यक्तियों ने लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करते हुए न केवल पुलिस के बैरीकेड तोड़ दिए बल्कि इस घटना का प्रतिकार करने वाले एक पुलिसकर्मी का हाथ भी हमलावरों ने तलवार से काट दिया। उधर गुजरात के सूरत में भी प्रवासी मजदूरों ने उनके लिए शहर में बनाए गए आश्रय स्थलों में दो समय का भोजन न मिलने पर लॉक डाउन के नियमों का सरेआम उल्लंघन करना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में यह घटना प्रशासन और मजदूरों के बीच हिंसक झड़प में बदल गई।

इस तरह की तमाम घटनाओं के लिए किसी एक व्यक्ति, संस्था अथवा समुदाय को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। ये सभी घटनाएं लॉकडाउन के दौरान हर गतिविधि को ताले में बंद रखने की वजह से हुईं क्योंकि ऐसा करना कोरोना से बचने के लिए जरूरी है। पर इसके साथ ही यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि इतने लम्बे समय के लिए लॉक डाउन लागू करने से पहले किसी को भी यह ध्यान नहीं रहा कि जब सब कुछ बंद हो जाएगा तो लोगों तक जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति कैसे हो पायेगी। 

ये तमाम घटनाएं भोजन और सब्जी जैसी जरूरी चीजें समय पर लोगों तक न पहुंचने के कारण घटित हुईं हैं। जैसा कहा भी गया है, मरता क्या न करता, जब इंसान को लगता है कि खाना न मिलने पर उसकी मौत हो जायेगी तो फिर वह किसी से नहीं डरता और कुछ भी करने के लिए तत्पर रहता है।

मौजूदा सन्दर्भ में पंजाब के पटियाला की घटना को छोड़ दें तो तमाम घटनाएं भूख से मरने के लिए बचाव करने की प्रवृत्ति का ही परिणाम हैं। सरकार ने यह खुद भी माना है कि देश में अनाज और खाद्य सामान पर्याप्त मात्रा  में उपलब्ध है लेकिन लॉक डाउन के चलते यह सामान जरूरतमंदों तक पहुंच नहीं पा रहा है। जब किसी जरूरतमंद को समय पर जरूरत का सामान न मिले तो उसका मिजाज बिगड़ना स्वाभाविक है। 

ऐसे में कल्पना ही की जा सकती है कि एक व्यक्ति जिसे भोजन पानी का इंतजाम करने के लिए घर से बाहर जाने की इजाजत न हो और वादा करने के बाद भी उसे समय से दो वक़्त का खाना न मिल सके तो आखिर वह करेगा भी क्या? सरकारी इंतजामों के सन्दर्भ में यह भी पता चला है कि देश के  कोरोना प्रभावित जिन हज़ारों संवेदनशील सीलबंद इलाकों में प्रशासन ने जरूरत का सामान घर-घर पहुंचाने की बात कही थी वहां भी सम्बंधित अधिकारी लोगों के फ़ोन ही नहीं उठा रहे हैं। 

ऐसे हालात में सरकार के लिए यह समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि समस्या का समाधान कैसे निकाला जाए। इसीलिए प्रधानमंत्री भी असमंजस में हैं। लॉकडाउन का विस्तार तो करना है लेकिन इस विस्तार में कामकाज की गतिविधियां भी संचालित रहें, ऐसे ही विकल्प सरकारें भी तलाश रहीं हैं। उत्तर प्रदेश में सरकार की यह घोषणा इसी विकल्प का हिस्सा मानी जा सकती हैं जिसमें सरकार ने लॉकडाउन के दौरान खेतों में फसलों की कटाई और उच्च शिक्षण संस्थानों में ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था लागू की है।

लॉक डाउन के दौरान पुलिस को भी अनेक तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में महाराष्ट्र पुलिस का लॉकडाउन का अतिक्रमण करने वालों का फूल माला पहना कर आरती उतारने का कदम भी नायाब ही कहा जाएगा। उधर बंगाल के मालदा जिले के एक गांव से मिलने वाली एक और खबर भी सूकून देने वाली लगती है जिसमें एक हिन्दू परिवार के व्यक्ति की मौत होने के बाद उसका अंतिम संस्कार उसके पड़ोसी मुस्लिम समुदाय के लोगों ने विधि-विधान संपन्न करवाई। आज के ये अनुभव गजब के हैं खट्टे भी और मीठे भी। आने वाले समय में ये अनुभव याद जरूर आयेंगे।

(लेखक दैनिक भास्कर के संपादक हैं।)