लॉकडाउन ने लोगों की जिन्दगी पर लगाया ब्रेक


उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने हाल ही में इस आशय की एक मार्मिक अपील भी एक विडियो के जरिये सरकार से की भी है। इस मार्मिक अपील में प्रियंका गांधी न केवल घर वापसी करने वाले राज्य के प्रवासी मजदूरों को सहायता देने की बात करती हैं बल्कि उन्होंने दिल्ली, मुंबई, चेन्नई,बंगलूरु और हैदराबाद समेत देश के सभी इलाकों में फंसे राज्य के प्रवासी मजदूरों की मदद करने की मांग सरकार से की है।



कोरोना वायरस के चलते पूरे देश में लागू लॉकडाउन ने लोगों की जिन्दगी में ब्रेक लगा दिया है।पिछले महीने की 25 तारीख यानी 25 मार्च से लागू इस व्यवस्था के चलते जो जहां था, वो वहीँ ठिठक कर रह गया  है। निकले तो निकले कैसे सब कुछ तो बंद है। न रेल चल रही है न बस। और तो और सामान से लदे लाखों ट्रक भी 24 अप्रैल की रात उस  तारीख से जहां थे, वहीं रुके हुए हैं जिस दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीन हफ्ते के लॉक डाउन की घोषणा की थी बाद में इसकी मियाद तीन मई तक के लिए बढ़ा दी गई थी।  

प्रधानमंत्री की घोषणा से दो दिन पहले 22 मार्च के जनता कर्फ्यू से ही यह सिलसिला शुरू हो गया था क्योंकि देश की कई राज्य सरकारों ने जनता कर्फ्यू के अगले दिन से ही अपने-अपने राज्यों की सीमा में कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए  हर तरह की आवाजाही पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा दिया था।  इस वजह से न केवल लाखों की तादाद में प्रवासी मजदूरों को रोजी – रोटी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है बल्कि बड़ी तादाद में ऐसे लोग भी देश के कोने- कोने में फंसे हुए हैं जो  अपने किसी परिचित या रिश्तेदार से मिलने घर से निकले थे या फिर घूमने- फिरने के ख्याल से घर से दूर देश के किसी दूसरे स्थान गए थे। घुमक्कड़ प्रवृत्ति के लोग भी कोरोना के चक्कर लॉक डाउन के फेर में जहां गये थे वहीँ के ही होकर गए।अब सभी को लॉक डाउन खुलने की बेसब्री से प्रतीक्षा है। 

सवाल यह भी है कि समाज का अमीर तबका जो मौज – मस्ती के लिए या फिर आनंद मनाने के लिए घर से बाहर निकला है वो तो एक इंतजाम के साथ घर से बाहर निकला होगा, उसके लिए तो  इतने दिन घर के बाहर रहने पर कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन रोजी – रोटी की तलाश में घर से बाहर निकले प्रवासी मजदूरों और घुमक्कड़ी कर व्यवसाय करने वाले लोगों के लिए इतने दिन बगैर काम के बाहर रहना वास्तव में तकलीफ देह ही है।प्रवासी मजदूरों के बेघर होने और बदहवासी के आलम में दर-दर  भटकने की सूचना तो सोशल मीडिया से लेकर अखबार रेडियो और टेलीविज़न तक संचार के सभी माध्यमों से उपलब्ध है लेकिन बंजारों के रूप में भटकने वाली इंसानी  बिरादरी के दुखों के बारे में लोगों को कोई जानकारी ही नहीं है।

देश के जम्मू- कश्मीर राज्य में बक्करवाल, हिमाचल प्रदेश में गद्दी, राजस्थान और दूसरे हिंदी भाषी राज्यों में बंजारे और गुजरात में मालधारी के नाम से परिचित इंसानों की यह एक ऐसी बिरादरी है जो उन्मुक्त रूप से विचरण करने में विश्वास  करती है। ये लोग अपने परिवार और पालतू  पशुओं  के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान में विचरण करते हैं। कुछ दिन तक एक स्थान में रहने के बाद अगले स्थान को प्रस्थान कर जाते हैं। इस अवधि में ये लोग वहीं पर रह कर अपने अस्थाई तम्बुओं के पास ही लुहारगिरी का काम करते हैं। अपने बनाए बर्तन और घर की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने वाले चाकू, फावड़े, कुदाल, हथौड़ी और ऐसे ही दूसरे सामान की आस-पास के घरों में बिक्री कर अपना रोजगार चलाते हैं। इस घूमंतू प्रजाति में कुछ समूह लोहारगिरी करते हैं तो कुछ बढ़ईगिरी में पारंगत होते हैं, इसी तरह कुछ समूह डेरी के काम में पारंगत होते हैं।     

मालधारी गुजरात की एक ऐसी ही इंसानी बिरादरी है जो घूम- घूम कर अपना जीविकोपार्जन करती है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक़ कोरोना संकट से पार पाने के लिए देश भर में लागू की गई व्यवस्था के चलते गुजरात के ऐसे असंख्य मालधारी आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ राज्य में फंस कर रह गए हैं। सामान्य दिनों में तो ये मालधारी अपनी कारीगरी से जीविकापार्जन कर सकते थे लेकिन जब सब कुछ बंद हो और लोगों के आने- जाने पर भी पाबंदी हो तो इनका व्यवसाय भी चले तो चले कैसे। 

प्रवासी मजदूरों के बारे में तो राज्य सरकारें इस सोच के साथ भी वैकल्पिक रोजगार की बात कर सकती हैं कि अपने राज्य के प्रवासी मजदूरों को राज्य में आने पर मंरेगा या किसी अन्य योजना के तहत काम दिया जा सकता है जैसा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया भी है। लॉक डाउन से उपजे संकट काल में अपने राज्य के प्रवासी मजदूरों  के पुनर्वास की मांग देश के विपक्षी दलों के नेता भी कर सकते हैं। 

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने हाल ही में इस आशय की एक मार्मिक अपील भी एक विडियो  के जरिये  सरकार से की भी  है। इस मार्मिक अपील में प्रियंका गांधी न केवल घर वापसी करने वाले राज्य के प्रवासी मजदूरों को सहायता देने की बात करती हैं बल्कि उन्होंने दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बंगलूरु और हैदराबाद समेत देश के सभी इलाकों में फंसे राज्य के प्रवासी मजदूरों की मदद करने की मांग सरकार से की है। आश्चर्य है कि पक्ष और प्रतिपक्ष के किसी नेता ने अपने राज्य की घूमंतू इंसानी बिरादरी का हाल जानने की कोशिश भी नहीं की। गुजरात सरकार भी इसका अपवाद नहीं है।

(लेखक दैनिक भास्कर के संपादक हैं।)