लॉकडाउन और अनलॉक के बीच बढ़ते कोरोना संक्रमित

24 मार्च को जब मोदी सरकार ने एकाएक सारे देशवासियों को ताले में बंद रहने का आदेश कर दिया था, उस दिन देशभर में कोरोना वायरस से पीड़ित मरीज़ों की संख्या 564 थी। आज जब सरकार इस महीने से ताला खोलने की दिशा में पहला बड़ा क़दम उठा चुकी है तो उनकी संख्या 1 लाख से ऊपर हो गई है। 24 मार्च के आसपास रोज़ 50-60 नए मरीज़ों का पता चल रहा था, आज 8 हज़ार से ज़्यादा नए मरीज़ रोज़ मिल रहे हैं।

जब कभी भी किसी नए रोग की दस्तक होती है तो शुरुआत में जानकारी के अभाव में इसका निदान खोजने में भी दिक्कत आती है। समय पर इलाज न मिल पाने की वजह से ऐसे रोगों जानलेवा भी साबित हो जाते हैं। धीरे -धीरे जब रोग के बारे में पता चलता तो इसके इलाज की भी संभावनाएं बनने लगती हैं और इलाज पाकर रोगियों के ठीक होकर घर वापस जाने का सिलसिला भी वजूद में आने लगता है ।

इस अवस्था में रोग का शिकार होने वालों की संख्या में चाहे कमी नहीं होती हो लेकिन रोग से ठीक होकर घर जाने वालों की तादाद में जरूर इजाफा होता है और रोग से मरने वालों की संख्या भी आनुपातिक लिहाज से कम होती जाती है। इन हालात में समाज को रोग से प्रभावित या संक्रमित होने वाले लोगों की बढ़ती संख्या तो नजर आती है लेकिन इलाज के बाद सकुशल घर वापस जाने वालों की बढ़ती संख्या का बिलकुल भी ध्यान नहीं रहता। ऐसे में मरने वालों की संख्विया को देखते हुए समाज में एक अलग किस्म के दहशत की स्थिति बन जाती है। 

विगत वर्ष (2019) के अंत में चीन के वूहान शहर से पूरी दुनिया में संक्रमण का आतंक फैलाने वाले कोविड 19 रोग की भी यही कहानी है। विशेषकर भारत के सन्दर्भ में तो कुछ -कुछ ऐसा ही दिखाई देता है। भारत में जब पहली बार कोरोना ने दस्तक दी थी तब कोरोना संक्रमितों की संख्या सैकड़ों में थी। इनमें ठीक होकर घर जाने वाले लोग कम ही थे जबकि कोरोना से पस्त होकर मरने वालों की संख्या आनुपातिक दृष्टि में कुछ ज्यादा ही थी।

इधर, पांच -छः महीनों के दौरान कोरोना संक्रमितों की संख्या लाखों में पहुंच गई है तो कुछ इसी तरह की दहशत का माहौल बनता दिखाई दे रहा है। हम कोरोना के मरीजों की बढ़ती संख्या तो देख पा रहे हैं लेकिन यह नहीं देख पा रहे हैं कि अब इलाज पाकर ठीक होने वालों की संख्या 46 प्रतिशत हो गई है जो शुरुआती दौर में अधिकतम 20 से 30  फीसदी ही थी। इसलिए हमको दहशत में रहने के बजाय इस बात पर गौर करना चाहिए कि आज जैसे भी हो हम कोरोना जैसी बीमारी को टक्कर देने की स्थिति में आ गए हैं। 

कोरोना को लेकर दहशत का माहौल बनाने के क्रम में उन मीडिया रिपोर्ट्स की भी बहुत बड़ी भूमिका होती है जो इसके खतरों और नकारात्मक पहलू को तो बढ़ा -चढ़ा कर प्रस्तुत करती हैं लेकिन इसके सकारात्मक पक्ष को उजागर नहीं करतीं या फिर उनका जिक्र कुछ इस तरह किया जाता है कि ये सकारात्मकता खतरों की भयावहता में कहीं छिप कर रह जाती है। 

हाल के दिनों में मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि जिस रफ़्तार से भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि जल्दी ही भारत इस दिशा में इटली को पीछे छोड़ कर बहुत आगे बढ़ जाएगा। इस तरह की मीडिया रिपोर्ट्स यह जानकारी देना उचित नहीं समझतीं कि आबादी के लिहाज से देखें तो इटली और भारत में बहुत बड़ा फर्क है।

आबादी के लिहाज से देखें तो भारत दुनिया में चीन के बाद दूसरा बड़ा देश है। यही नहीं इटली जिस यूरोप महाद्वीप का हिस्सा है उसकी कुल आबादी भारत के एक राज्य उत्तर प्रदेश  की कुल आबादी से भी कम या फिर बराबर ही होगी और जब कोई संक्रामक रोग फैलता है तो देश की आबादी के अनुपात में उस देश में उस रोग के संक्रमितों की संख्या भी ज्यादा ही होगी।  

इस तरह की मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का भी जिक्र नहीं होता कि जिस चीन से कोरोना वायरस का पूरी दुनिया में फैलाव हुआ उसने किस तरह के इंतजाम से कोरोना को अपने शहर वूहान से आगे नहीं बढ़ने दिया। इसके साथ ही ये मीडिया रिपोर्ट्स यह भी नहीं बतातीं कि मच के महीने से जब कोरोना ने भारत में दस्तक देनी शुरू की थी जब कोरोना के मरीजों की संख्या, इलाज की स्थितियां और घरेलू हालात कितने भयावह थे और आज क्या स्थिति है। 

इस समबन्ध में अगर तमाम स्थितियों पर नजर रखें तो कहा जा सकता है कि पांच जून 2020 की स्थिति 25 मार्च 2020 की स्थिति से काफी भिन्न और बेहतर है। यह वही तारीख है जब कोरोना के प्रभाव से बचने के लिए पूरे देश में लॉक डाउन व्यवस्था लागू की गई थी। इससे पहले 22 मार्च को एक दिन के लिए जनता कर्फ्यू के प्रयोग से यह समझने की कोशिश की गई थी कि आगरा कोरोना के प्रभाव से बचने के लिए लॉकडाउन जैसी कोई व्यवस्था लागू करने पर विचार किया जाए तो किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। 

25 मार्च से शुरू हुई लॉकडाउन की व्यवस्था किसी न किसी रूप में आज तक लागू भी है लेकिन जैसे जैसे इलाज और उपचार की स्थितियों में सुधार हो रहा है उसे देखते हुए लॉकडाउन में रियायतें देकर जन जीवन को सामान्य बनाए की कोशिशें भी जारी हैं। 24 मार्च को जब मोदी सरकार ने एकाएक सारे देशवासियों को ताले में बंद रहने का आदेश कर दिया था, उस दिन देशभर में कोरोना वायरस से पीड़ित मरीज़ों की संख्या 564 थी। आज जब सरकार इस महीने से ताला खोलने की दिशा में पहला बड़ा क़दम उठा चुकी है तो उनकी संख्या 1 लाख से ऊपर हो गई है। 

24 मार्च के आसपास रोज़ 50-60 नए मरीज़ों का पता चल रहा था, आज 8 हज़ार से ज़्यादा नए मरीज़ रोज़ मिल रहे हैं। ऐसे में आम नागरिक को समझ में नहीं आ रहा है कि 24 मार्च को सरकार को ऐसा क्या ख़तरा नज़र आया कि देश भर में तालाबंदी कर दी गई और आज जून में हालात कौन से सुधर गए कि सरकार ने ताला खोलने की दिशा में पहला क़दम बढ़ा दिया। इस सम्बन्ध में इस तथ्य पर भी गौर किया जाना चाहिए कि अगर हम शुक्रवार 4 जून 2020 तक के आंकड़ों की ही बात करें तो इस तारीख तक देश में कोविड-19 के कुल 1,04,107 मरीज ठीक हो चुके थे जिनमें से 3,804 पिछले 24 घंटों में ही ठीक हुए हैं।

इसके साथ ही यह तथ्य भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि इस अवधि तक 1,06,737 सक्रिय मामले गहन चिकित्सा देख-रेख में हैं। आंकड़ों की यह भाषा 25 मार्च तक नहीं थी, तब मामला काफी गंभीर था। इस लिहाज से देखें और विचार करें तो साफ़ कह सकते हैं कि कोरोना के मामले में आज स्थितियां पहले से कहीं बेहतर हैं इसलिए हमें दहशत में नहीं आशावादिता में जीना चाहिए। यही नहीं मौजूदा मरीज़ों में भी गंभीर मरीज़ों की संख्या केवल 2-3 प्रतिशत ही है।

 

First Published on: June 6, 2020 4:41 AM
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