रिया पर निगाहें रणौत पर निशाना


गली मोहल्ले के गुण्डों को पालनेवाली शिवसेना ऐसे ही मौकों पर उनका इस्तेमाल करती थी जब वो घरों से निकलकर अपने टार्गेट पर हमला बोल देते थे। टार्गेट मुस्लिम हुआ तो हिन्दूवादी हो जाते थे और अगर टार्गेट हिन्दू हुआ तो महाराष्ट्रवादी। लेकिन इस बार शिवसेना ने अपने शिवसैनिकों की मदद नहीं लिया। शिवसेना राज्य में सत्ता में है मुंबई महानगरपालिका पर भी उसका कब्जा है इसलिए वही काम उसने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करके कर लिया।


संजय तिवारी
मत-विमत Updated On :

बुधवार नौ सितंबर की सुबह-सुबह कंगना रणौत के आफिस में कथित अतिक्रमण को गिराने के लिए जैसे ही मुंबई महानगरपालिका का दस्ता पहुंचा वहां मौजूद पुलिस अधिकारी से पूछा कि जब हाईकोर्ट ने 30 सितंबर तक मुंबई में किसी भी प्रकार की तोड़फोड़ पर रोक लगी रखा है तो फिर आप ये तोड़फोड़ रोक क्यों नहीं रहे तो पुलिस अधिकारी कुछ नहीं बोला। बार-बार पूछने पर भी कुछ नहीं बोला। लेकिन दोपहर बाद तक उन दो रिपोर्टरों को ही गिरफ्तार कर लिया जिन्होंने पुलिस अधिकारी से सवाल पूछा था। यह एक घटना बताती है कि मुंबई में शासन-प्रशासन किसके इशारे पर चल रहा है और क्यों कंगना रणौत का कार्यालय तहस नहस कर दिया।

सुशांत सिंह राजपूत आत्म/हत्या मामले में कंगना रणौत खुलकर सोशल मीडिया पर सुशांत के लिए आवाज उठा रही थीं जबकि शिवसेना का पूरा रुख इस मामले में जांच के नाम पर केस को रफा दफा करनेवाला था। ऐसे में कंगना ने मुंबई पुलिस की जांच पर भी सवाल उठाया जिसके कारण शिवसेना कंगना रणौत पर ही हमलावर हो गयी। तू तू मैं मैं में विवाद इतना बढ़ा कि शिवसेना नियंत्रित मुंबई महानगरपालिका को अचानक कंगना रणौत के कार्यालय में अतिक्रमण नजर आ गया और कंगना रणौत को नोटिस थमा दिया।

कंगना रणौत के वकील ने बीएमसी को छह घंटे के भीतर अपना जवाब भी दे दिया लेकिन बीएमसी ने जवाब को अस्वीकार कर दिया। कंगना के वकील रिजवान सिद्दीकी ने अपने कार्यालय से एक क्लर्क भेजकर दूसरा जवाब बीएमसी में रिसीव कराने की कोशिश की लेकिन बीएमसी अधिकारियों ने जवाब को रिसीव करने से ही मना कर दिया। निश्चित रूप से बीएमसी ने कुछ ऐसा तय कर लिया था जो उसे करना ही था इसलिए न तो हाईकोर्ट का अंतरिम आदेश कोई मायने रखता था और न ही कंगना रणौत द्वारा दिया गया जवाब। और वह क्या तय कर रखा था, यह बुधवार की सुबह संसार के सामने आ गया जब बीएमसी के सौ कर्मचारी बुल्डोजर के साथ पाली हिल स्थित कंगना के कार्यालय पहुंचते हैं और न केवल कथित अतिक्रमण को गिरा देते हैं बल्कि कार्यालय के भीतर घुसकर सबकुछ तोड़ देते हैं और पूरे कार्यालय को तहस नहस कर देते हैं।

जाहिर है ये शिवसेना के अंदाज में की गयी कार्रवाई थी ताकि कंगना को सबक सिखाया जा सके। शिवसेना की पूरी राजनीति हमेशा से ऐसे ही सबक सिखानेवाली रही है। गली मोहल्ले के गुण्डों को पालनेवाली शिवसेना ऐसे ही मौकों पर उनका इस्तेमाल करती थी जब वो घरों से निकलकर अपने टार्गेट पर हमला बोल देते थे। टार्गेट मुस्लिम हुआ तो हिन्दूवादी हो जाते थे और अगर टार्गेट हिन्दू हुआ तो महाराष्ट्रवादी। लेकिन इस बार शिवसेना ने अपने शिवसैनिकों की मदद नहीं लिया। शिवसेना राज्य में सत्ता में है मुंबई महानगरपालिका पर भी उसका कब्जा है इसलिए वही काम उसने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करके कर लिया। लेकिन सवाल ये है कि कोई भी सत्ताधारी दल इस तरह से सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर सकता है?

अगर आप मुंबई में शिवसेना की राजनीति को देखेंगे तो पायेंगे कि शिवाजी के आदर्शों पर चलनेवाली पार्टी उन्हीं की तरह चौथ वसूली में विश्वास करती है। किसी उद्योगपति या फिल्मस्टार को निशाना बनाया जाता है, उसे धमकी दी जाती है, उसके खिलाफ प्रदर्शन करवाये जाते हैं और इसके बाद उसको मातोश्री बुलाकर आशिर्वाद दे दिया जाता था। इतना ही नहीं, उससे पार्टी के खर्चों के लिए चौथ भी वसूल लिया जाता है। कंगना पर शिवसेना का हमला भी ऐसा ही था कि वह डरेगी और आकर मेरे सामने समर्पण कर देगी लेकिन कंगना अब तक के शिवसेना के शिकार से थोड़ी अलग निकली। उसने पलटकर शिवसेना स्टाइल में ही शिवसेना पर हमला कर दिया, जय शिवाजी और जय महाराष्ट्र का नारा लगाते हुए।

शिवसेना और उसके छुटभैये गुण्डे नेताओं को शायद इसकी उम्मीद न रही होगी, लेकिन कंगना ने मुंबई पहुंचकर उद्धव ठाकरे और शिवसेना पर अपना हमला जारी रखा। आगे ये लड़ाई क्या स्वरूप लेगी ये समय बतायेगा लेकिन इस लड़ाई का राजनीतिक एंगल भी है। सुशांत सिंह आत्म/हत्या मामले में कंगना रणौत सोशल मीडिया पर सुशांत के लिए अभियान चला रही थी। क्योंकि मामला महाराष्ट्र में था और जांच महाराष्ट्र पुलिस कर रही थी इसलिए पुलिस की जांच पर सवाल उठना स्वाभाविक था। लिहाजा, कंगना ने भी पुलिस की जांच पर सवाल उठाया।

इस बीच रिया के ड्रग कार्टेल संबंधों में उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे पर भी सोशल मीडिया पल आरोप लगे कि उनके रिया चक्रवर्ती से करीबी संबंध हैं इसलिए महाराष्ट्र पुलिस जानबूझकर रिया चक्रवर्ती को बचा रही है। जाहिर है कहीं न कहीं राजनीतिक रूप से शिवसेना रिया चक्रवर्ती के बचाव में खडी नजर आने लगी जबकि बहाने से ही सही शिवसेना ने कंगना रणौत को निशाने पर ले लिया। अगर संजय राऊत अपने बयानों पर संयम रखते तो शायद दोनों आमने सामने नहीं आते लेकिन जैसे ही कंगना और शिवसेना आमने सामने हुए बीजेपी ने पीछे से कंगना को अपना सहयोग दे दिया। उनको मिलनेवाली धमकी को देखते हुए केन्द्र सरकार की तरफ से वाई श्रेणी की सुरक्षा दे दी। बुधवार देर शाम तक भाजपा नेता देवेन्द्र फणनवीस भी कंगना के समर्थन में उतर आये।

हालांकि शिवसेना को जो करना था, तब तक वो कर चुकी थी और मामला हाईकोर्ट में पहुंच गया था जहां बीएमसी को लताड़ भी लगाई गयी। शिवसेना के प्रवक्ता संजय राऊत ने भी देर शाम तक संकेत दे दिया कि उनके लिए मामला खत्म हो चुका है। लेकिन मामला शायद खत्म नहीं हुआ। पहली बार शिवसेना के शेर को कोई सवाशेर मिला है। अभी तक धमकी और उत्पात के जरिए अपनी राजनीति करनेवाली शिवसेना दूसरों की पिच खोदकर अपना एजंडा आगे बढाती थी लेकिन पहली बार उसने अपनी ही पिच पर फावड़ा चला दिया है। कंगना को जो नुकसान हुआ है वह करोड़ दो करोड़ का है और वह उसकी भरपाई आसानी से कर लेगीं लेकिन शिवसेना का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई वह शायद कभी नहीं कर पायेगी। आखिर मुंबई में बैठकर आज तक किसने ठाकरे परिवार के लिए तू तड़ाक से बात किया और वहां बैठा रह गया हो?