मामे खान का नया सॉन्ग शुकरान…


राजस्थान के लोकगीत और सुफियाना गीत अपने सौंदर्य में निराले हैं। परंतु आधुनिक तथाकथित सभ्यता और शिक्षा के प्रवाह में पड़ कर यह ये सभी गीत दिन ब दिन विस्मृति के गर्भ में विलीन होते जा रहे हैं। उनके उद्धार और रक्षा के लिए ही मामे खान ने बीड़ा उठाया है और इस मुहिम में वह देश मे ही नहीं, विदेश में भी अति लोकप्रिय हो गये हैं।


निर्मलेंदु साहा
मत-विमत Updated On :

हम सब जानते हैं कि संगीत सुकून पहुंचाता है, प्रेरणा देता है, उत्साह  बढ़ाता है और तनाव भी घटाता है। यहीं नहीं संगीत गम भुलाता है, दिल में प्रेम जगाता है और न जाने क्या-क्या असर करता है। और ये सब होता है, सुनने भर से! ऐसे ही एक कलाकार का नाम है मामे खान। ऐसे ही एक कलाकार ने जैसलमेर के सत्तों गांव से निकलकर मुम्बई तक ही नहीं, बल्कि करीब करीब हर देश की यात्रा की। ऐसे में यदि यह कहें कि लोककला और स्थानीय गायिकी की परम्परा को उन्होंने जिन्दा रखा है, तो शायद गलत नहीं होगा।

जैसलमेर की मंगणियार जाति के कलाकारों में वह भी एक कलाकार हैं। मामे खान की न केवल देश में, बल्कि सात समन्दर पार भी बेहद लोकप्रियता है। दरअसल, प्रागैतिहासिक काल से ही भारत में संगीत की समृद्ध परम्परा रही है। गिने-चुने देशों में ही संगीत की इतनी पुरानी एवं इतनी समृद्ध परम्परा पायी जाती है। भारतीय संगीत के इतिहास के महान संगीतकारों जैसे कि कालिदास, तानसेन, अमीर खुसरो आदि ने भारतीय संगीत की उन्नति में बहुत बड़ा योगदान किया है जिसकी कीर्ति को का महिमामंडन आज भी किया जाता है। इन्हीं श्रेणियों में एक और नाम जुड़ गया है और वह नाम है मामे खान, जिनकी गायन कला में इतनी खूबियां हैं, कि वह बयान करना ही मुश्किल है।

राजस्थान के संगीत में ढोल एक मुख्य वाद्य है, क्योंकि यह एक बड़ा वाद्ययंत्र है। साथ ही इसके साथ हारमोनियम का सहारा लेकर ढोली गायन करते हैं। स्वयं मामे भी एक बेहतरीन ढोलक प्लेयर हैं। क्या गाते हैं और क्या बजाते हैं। और जहां तक रेंज की बात है, तो वह कब हाई पिच में जाकर कब धीरे से स्वर के साथ खेलते हुए, स्वर को सहलाते हुए नीचे पिच पर आ जाते हैं, यह हॉल में बैठ कर जब तक नहीं सुनेंगे, तब तक समझ में नहीं आएगा। जब वह सप्तक छेड़ते हैं, तो एक माहौल बन जाता है। रोंगटे खड़े हो जाते हैं जब ढोल पर उनका हाथ पड़ता है।

उनका गायन कहीं बेहद चपल तौर पर, तो कहीं बेहद शांत ढंग से उपस्थित। ढोलक का दिलकश प्रयोग। सात सुरों की इन्द्रधनुषीय दुनिया में एक सम्मोहक आवाज। कुदरत का एक अजूबा कहा जाए, तो कुछ भी गलत शायद नहीं होगा। आज हम फिर बात कर रहें हैं अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कलाकार और बॉलीवुड प्लेबैक सिंगर मामे खान की, क्योंकि वे एक बार फिर सुर्खियों में हैं। दरअसल, उनका एक और सॉग इन दिनों लोगों की जुबां पर है…जिसका नाम है…शुकरान …

मामे खान द्वारा शुकरान एक मूल सूफी रचना है। गाना ख्वाजा गरीब नवाज को समर्पित है। यह आत्मीय रचना, एकता और प्रेम के लिए प्रार्थना है, दिव्य के प्रति कृतज्ञता से भरी है। धन्यवाद कहना एक शक्तिशाली और सच्ची प्रार्थना है! आभार एक विशेष उपहार है जिसने इस गीत में एक नई अभिव्यक्ति पाई है। आभार जीवन का एक तरीका है, जो हमें भगवान के करीब लाएगा।

शुकरान अल्लाह, ईश्वर, भगवान का शुक्रिया अदा करता है जो हमें इन मुश्किल समय से लड़ने की ताकत देता है। मामे खान पिछले 5-6 सालों से इस गाने पर काम कर रहे हैं और आज हम जिस कठिन समय का सामना कर रहे हैं, उसे देखते हुए यह गीत ईश्वर से प्रार्थना है। इस गीत को बनाने के लिए 50 से अधिक लोगों की टीम ने कड़ी मेहनत की है।

दरअसल, राजस्थान के लोकगीत और सुफियाना गीत अपने सौंदर्य में निराले हैं। परंतु आधुनिक तथाकथित सभ्यता और शिक्षा के प्रवाह में पड़ कर यह ये सभी गीत दिन ब दिन विस्मृति के गर्भ में विलीन होते जा रहे हैं। उनके उद्धार और रक्षा के लिए ही मामे खान ने बीड़ा उठाया है और इस मुहिम में वह देश मे ही नहीं, विदेश में भी अति लोकप्रिय हो गये हैं। गौरतलब है कि उन्होंने केवल 10 साल की उम्र में ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सामने परफॉर्म किया था और उसके बाद से ही वह चर्चा में आ गये थे।