मई का महीना भारत की राजनीति और राजीव गांधी


राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समझे जाने वाले साल के ऐसे कुछ अपवाद महीनों में एक नाम मई के महीने का भी जोड़ा जाना चाहिए। ये महीना भी कई घटनाओं की वजह से भारत की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण बन गया। मई नाम के जिस महीने की शुरुआत ही मई दिवस से होती हो उस महीने की अन्य प्रमुख राजनीतिक घटनाएं भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनमें कुछ घटनाएं दुखद भी थीं तो कुछ सुखद भी।



वैसे तो भारत के लिए साल के सभी बारह महीने महत्वपूर्ण हैं। हर महीने कुछ न कुछ ख़ास होते ही रहता है लेकिन जनवरी, अगस्त और नवम्बर को भारत के सन्दर्भ में राजनीतिक दृष्टि से इसलिए ख़ास माना जाता रहा है क्योंकि अतीत के दौर में इन महीनों में कुछ ऐसा ख़ास हुआ जिससे इन महीनों की ख़ास राजनीतिक पहचान सी बन गई है। जनवरी का महीना इसलिए ख़ास माना जाता है क्योंकि इस महीने की 26 तारीख को 1950 में आजाद भारत का अपना संविधान लागू हुआ था। इसी तरह नवम्बर का महीना इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसी महीने संविधान सभा ने भारत के संविधान के प्रारूप को स्वीकृति प्रदान की थी। 

इसी कड़ी में अगस्त के महीने का महत्त्व इसलिए है क्योंकि इसी महीने की 14 तारीख को 1947 में देश को ब्रिटिश सरकार की दासता से मुक्ति मिली थी। इसके अलावा इसी महीने 1920 में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ,“अंग्रेजों भारत छोड़ो” के नाम से एक अधिकृत और व्यवस्थित आन्दोलन की शुरुआत भी हुई थी। राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समझे जाने वाले साल के ऐसे कुछ अपवाद महीनों में एक नाम मई के महीने का भी जोड़ा जाना चाहिए। ये महीना भी कई घटनाओं की वजह से भारत की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण बन गया। मई नाम के जिस महीने की शुरुआत ही मई दिवस से होती हो उस महीने की अन्य प्रमुख राजनीतिक घटनाएं भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनमें कुछ घटनाएं दुखद भी थीं तो कुछ सुखद भी, मसलन:

एक- इसी महीने 13 मई 1952 को लोक सभा पहली बैठक संपन्न हुई थी। दो- इसी महीने की 27 तारीख को 1964 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु का निधन हुआ था। तीन- इसी महीने की 22 तारीख को 1989 में ओडिशा के प्रक्षेपण स्थल से अग्नि मिसाइल का प्रक्षेपण हुआ था।चार- इसी महीने की 21 तारीख को 1991 में देश के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हुई थी। पांच- इसी महीने देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 16 मई 1996 केंद्र की नई सरकार का गठन हुआ था। वाजपेयी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे। छह-1998 में इसी महीने की 11 और13 तारीखों को सफल परमाणु परीक्षण किये गए थे। सात- पहली बार देश की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा को अपने प्रचंड बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाने का मौका मिला था। 26 मई 2014 को नरेन्द्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। आठ- इसी कड़ी में नरेन्द्र मोदी ने 30 मई 2019 को दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। 

मई महीने के राजनीतिक महत्त्व के सन्दर्भ में चर्चा देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी की। 40 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले राजीव गांधी भारत के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री थे और संभवतः उस समय तक दुनिया के किसी भी देश के सबसे युवा राजनीतिक प्रशासकों में एक थे। यहां तक कि जब उनकी मां इंदिरा गांधी 1966 में जब पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं, तब उनकी उम्र भी 48 साल थी यानी प्रधानमंत्री के रूप में भी इंदिरा गांधी उनसे उम्र में आठ साल बड़ी थीं। यही नहीं उनके नाना पंडित जवाहरलाल नेहरू की उम्र तो प्रधानमंत्री बनते समय 58 साल थी और उन्होंने स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में 17 साल की लंबी पारी खेली थी।

राजीव गांधी को देश में पीढ़ीगत बदलाव का अग्रदूत कहा जाता है क्योंकि उनके नेतृत्व में लादे गए लोकसभा के चुनाव में जितना बड़ा जनादेश कांग्रेस पार्टी को 1984 के चुनाव में मिला था उतना बड़ा जनादेश इस देश में न उससे पहले और न ही उसके बाद किसी पार्टी को मिला। हालांकि इस जनादेश में उनकी मां इंदिरा गांधी की शहादत की भी बहुत बड़ी भूमिका थी लेकिन इतिहास गवाह है कि उस वक़्त पार्टी की कमान राजीव गांधी के हाथों में ही थी।

अपनी मां की हत्या के कुछ महीने बाद ही  उन्होंने लोकसभा के लिए चुनाव कराने का आदेश दिया। उस चुनाव में कांग्रेस को पिछले सात चुनावों की तुलना में लोकसभा की 508 में से रिकॉर्ड 401 सीटें जीतने में कामयाबी मिली थी। इतनी बड़ी जीत तो न कभी उनके नाना पंडित जवाहरलाल नेहरु के नेतृत्व में लड़े गए किसी चुनाव में कांग्रेस को मिली थी और न ही उनकी मां इंदिरा गांधी को भी ऐसी शानदार जीत का उपहार कभी मिल सका था। यही नहीं, भारत की राजनीति में कांग्रेस को हाशिये पर धकेलने वाले भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लड़े गए 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को ऐसे शानदार जीत का तोहफा नहीं मिल सका था।

राजीव गांधी को यह देश किसी भी रूप में नहीं समझ पाया। इस देश ने न तो उनके इमानदार सांसद के रूप में परख की न ही एक आधुनिक और वैज्ञानिक तौर तरीके से संगठन चलाने वाले पार्टी के महासचिव के तौर पर ही यह देश उनको याद रख सका। इस देश ने ऐसे इमानदार प्रधान मंत्री की इस बात पर ध्यान नहीं दिया जिसने खुद यह पता लगाया हो कि सरकार खजाने से देश के कल्याण के लिए जिंतना पैसा निकलता, उसका सिर्फ 15 प्रतिशत ही लोगों तक पहुंचता है। शेष 85 फीसद पैसा बीच में कहां चला जाता है। इस बात का पता लगाने की कोशिश में उन्होंने जो मुहीम शुरू की थी उसमें उनका हाथ बताने के बजाय इस देश ने उनको बोफोर्स सौदे में ही अभियुक्त बनाने तक से परहेज नहीं किया।

20 अगस्त 1944 को बम्बई में जन्मे राजीव गांधी को जन्म के तीन साल बाद ही अंग्रेजी राज्य से मुक्त आज़ाद भारत में सांस लेने का मौका भी मिल गया और तीन वर्ष के राजीव का ही यह सौभाग्य भी था कि उनके नाना ही देश भारत के प्रथम प्रधानमंत्री भी बने। उनके माता-पिता लखनऊ से नई दिल्ली आकर बस गए। उनके पिता फिरोज गांधी सांसद बने एवं जिन्होंने एक निडर तथा मेहनती सांसद के रूप में ख्याति अर्जित की। राजीव गांधी ने अपना बचपन अपने नाना के साथ तीन मूर्ति हाउस में बिताया जहां उनकी मां इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री की परिचारिका के रूप में काम किया करती थीं। वे कुछ समय के लिए देहरादून के वेल्हम स्कूल गए लेकिन जल्द ही उन्हें उसी दून वादी की तलहटी के आवासीय दून स्कूल में भेज दिया गया। वहां उनके कई मित्र बने जिनके साथ उनकी आजीवन दोस्ती बनी रही। बाद में उनके छोटे भाई संजय गांधी को भी इसी स्कूल में भेजा गया जहां दोनों साथ रहे।

दून स्कूल से निकलने के बाद गांधी कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज गए लेकिन जल्द ही वे वहां से लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज चले गए। उन्होंने वहां से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। यहां तक यह तो स्पष्ट था कि राजनीति में अपना करियर बनाने में उनकी कोई रूचि नहीं थी। हवाई उड़ान उनका सबसे बड़ा जुनून था। अपेक्षानुसार इंग्लैंड से घर लौटने के बाद उन्होंने दिल्ली फ्लाइंग क्लब की प्रवेश परीक्षा पास की एवं वाणिज्यिक पायलट का लाइसेंस प्राप्त किया। जल्द ही वे घरेलू राष्ट्रीय जहाज कंपनी इंडियन एयरलाइंस के पायलट बन गए।

कैम्ब्रिज में उनकी मुलाकात इतालवी सोनिया माइनो से हुई थी जो उस समय वहां अंग्रेजी की पढ़ाई कर रही थीं। उन्होंने 1968 में नई दिल्ली में शादी कर ली। वे अपने दोनों बच्चों, राहुल और प्रियंका के साथ नई दिल्ली में इंदिरा गांधी के निवास पर रहे। आस-पास राजनीतिक गतिविधियों की ऐसी हलचल के बावजूद वे अपना निजी जीवन जीते रहे। लेकिन 1980 में एक विमान दुर्घटना में उनके भाई संजय गांधी की मौत ने सारी परिस्थितियां बदल कर रख दीं। उनपर राजनीति में प्रवेश करने एवं अपनी मां को राजनीतिक कार्यों में सहयोग करने का दवाब बन गया। इसी दबाव की वजह से विवशता में ही उनका राजनीति में भी प्रवेश हो गया। 

नवंबर 1982 में जब भारत ने एशियाई खेलों की मेजबानी की थी, स्टेडियम के निर्माण एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने संबंधी वर्षों पहले किये गए वादे को पूरा किया गया था। गांधी को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि सारे काम समय पर पूर्ण हो एवं यह सुनिश्चित किया जा सके कि बिना किसी रूकावट एवं खामियों के खेल का आयोजन किया जा सके। उन्होंने दक्षता एवं निर्बाध समन्वय का प्रदर्शन करते हुए इस चुनौतीपूर्ण कार्य को संपन्न किया। साथ-ही-साथ कांग्रेस के महासचिव के रूप में उन्होंने उसी तन्मयता से काम करते हुए पार्टी संगठन को व्यवस्थित एवं सक्रिय किया। 

उनके सामने आगे इससे भी अधिक मुश्किल परिस्थितियां आने वाली थीं जिसमें उनके व्यक्तित्व का परीक्षण होना था। स्वभाव से गंभीर लेकिन आधुनिक सोच एवं निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता वाले गांधी देश को दुनिया की उच्च तकनीकों से पूर्ण करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने, “इक्कीसवीं सदी के भारत का निर्माण” जैसा एकसार्थक नारा भी दिया था। यह नारा चला भी खूब लेकिन यह देश राजीव गांधी जैसे लायक नेता को आगे लेकर नहीं चल सका।