गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प चीन की धोखाधडी का जीता जागता उदाहरण है। यह कोई पहली बार नहीं हुआ है जब भारत की जमीन हड़पने की नीयत से उसने सीमा पर विवाद खड़ा किया हो। कांग्रेस के शासनकाल में भी चीन कई बार भारत की जमीन हथियाने का प्रयास कर चुका है मगर उस समय कांग्रेस सरकार ने कोई ठोस कारगर कदम नहीं उठाए।
इस बीच गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिकों की जान चली गई। भारत और चीन के बीच 1996 में हुए समझौते के तहत वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास चीनी और भारतीय सैनिको के द्वारा हथियार और विस्फोटक सामग्री का प्रयोग प्रतिबन्धित है। मगर बावजूद इसके चीन समय-समय पर नियंत्रण रेखा पर विवाद की स्थिति पैदा करता रहता है।
वर्ष 1959 में तिब्बती लोगों के आध्यात्मिक और लौकिक प्रमुख दलाई लामा के हिमाचल में बसने की वजह से चीन ने भारत पर तिब्बत और पूरे हिमालयी क्षेत्र में विस्तारवाद और साम्राज्यवाद के प्रसार का आरोप लगाया था। भारत पर कोई भी आरोप लगाने से पूर्व चीन को अपने गिरेवान में झांकना चाहिए जो कभी अरूणाचल पर अपना दावा ठोकते हैं तो कभी लद्दाक अक्साई क्षेत्र में सड़क बना कर विवाद की स्थितियां पैदा करते हैं, भारत को घेरने के लिए हिंदमहासागर क्षेत्र में भी चीन की गतिविधियों में इजाफा हुआ है। पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित बालटिस्तान में चीनी गतिविधियां तेज हुई हैं। इन इलाकों में तीन से चार हजार चीनी कार्यरत हैं। जब तक चीन नियंत्रण रेखा पर उकसाने वाली गतिविधियां बंद नहीं करेगा दोनों देशों के बीच आपसी संबन्ध सौहार्दपूर्ण नहीं बन पाएंगे। वर्ष 2020 में भारत और चीन के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70 वीं वर्षगांठ है तथा भारत-चीन सांस्कृतिक तथा पीपल-टू-पीपल संपर्क का वर्ष भी है। मगर इस समय दोनों देशों के बीच सीमा पर तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है।
ऐसे समय में जब विश्व व्यवस्था को वैश्विक महामारी से निपटने के लिए आपसी सहयोग समन्वय एवं सहभागिता की आवश्यकता है, विश्व व्यवस्था के दो बड़े राष्ट्र भारत व चीन सीमा विवाद के कारण आपस में उलझे हुए हैं। हजारों वर्षों तक तिब्बत ने एक ऐसे क्षेत्र के रूप में काम किया जिसने भारत और चीन को भौगोलिक रूप से अलग और शांत रखा। परंतु जब वर्ष 1950 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर वहां कब्जा कर लिया तब भारत और चीन आपस में सीमा साझा करने लगे और पड़ोसी देश बन गए। 20 वी सदी के मध्य तक भारत और चीन के बीच संबंध न्यूनतम थे। वर्ष 1954 में नेहरू और झोउ एनलाई ने ‘‘हिंदी चीनी भाई-भाई‘‘ के नारे के साथ पंचशील सिद्धांत पर हस्ताक्षर किए। मगर फिर समय के साथ साथ द्विपक्षीय संबंधों में धीरे-धीरे सुधार देखने को मिला।
हालिया विवाद का केंद्र अक्साई चीन में स्थित गलवान घाटी है जिसको लेकर दोनों देशों की सेनाएं आमने सामने आ गई हैं। इस घटना से पूर्व उत्तरी सिक्किम के नाथू ला सेक्टर में भी भारतीय और चीनी सैनिकों की झड़प हुई थी। दोनों देशों के बीच संबंधों को व्यापक दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता है। यह विदित है कि भारत और चीन दोनों ने एक साथ साम्राज्यवादी शासन से मुक्ति पाई।
भारत ने जहां सच्चे अर्थों में लोकतंत्र को अपनाया वही चीन ने स्वछंद लोकतंत्र को अपना जीवन मूल्य माना। यूं तो भारत व चीन के बीच राजनैतिक, राजनयिक, आर्थिक, विज्ञान, रक्षा ऐसे कई संबंध है, जिन पर दोनों देशों के प्रमुखों ने समय-समय पर चर्चा कर, उन्हें मजबूत बनाया है। मगर अभी भी भारत चीन के बीच सीमा को लेकर, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता को लेकर, बेल्ट एंड रोड पहल संबंधी विवाद, सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर चीन द्वारा पाकिस्तान का बचाव एवं समर्थन ऐसे कई मुद्दों को लेकर समय-समय पर मनमुटाव होते रहते हैं।
भारत चीन संबंधों की इस गाथा में अनेक स्याह मोड़ आए। हिंदी चीनी भाई-भाई के नारे से लेकर वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध से होते हुए दोनों देशों के संबंध आज इस दौर में है कि भारत व चीन विभिन्न मंचों पर एक दूसरे की मुखालफत करते नजर आते हैं।
विश्व में चीन तथा भारत ऐसे देश है जिनकी जनसंख्या एक अरब से अधिक है तथा ये दोनों देश राष्ट्रीय कायाकल्प के ऐतिहासिक मिशन के साथ ही विकासशील देशों की सामूहिक उत्थान प्रक्रिया को गति देने में महत्त्वपूर्ण प्रेरक की भूमिका निभा सकते हैं। भारत और चीन के बीच की समस्याओं को अल्पावधि में हल किया जाना कठिन है, लेकिन मौजूदा रणनीतिक अंतर को न्यूनतम करने, मतभेदों को कम करने और यथास्थिति बनाए रखने जैसे उपायों से समय के साथ आपसी संबंधों को और बेहतर बनाया जा सकता है। लेकिन चीन ने भारतीय सैनिकों के साथ जो किया उससे मोदी सरकार बेहद खफा है। जिसका नतिजा चीन को भूगता ही पडे़गा। क्यों कि देश में अब राष्ट्रवादी सरकार चीन के मनसूबे को समझ गई है।
भारत की जनता ने सीमा पर हुई हिंसक झड़प के बाद से ही चीनी सामान का बहिष्कार शुरू कर दिया है। सरकार ने टिक टॉक, यूसी ब्राउजर, स्नैप चैट जैसे 59 चीनी ऐप्स के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। सरकार का कहना है कि इन ऐप्स के इस्तेमाल से भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और अखंडता खतरे में है। सरकार को यह कदम उस वक्त उठाना पड़ा है जब देश की जनता में चीन के विरुद्ध जबरदस्त आक्रोश है। देश के सभी राज्यों ने चीनी सामान का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहें हैं और चीनी राष्ट्रपति सी. जिनपिंग के पुतले जलाए जा रहें हैं।
चीन समय-समय पर नियंत्रण रेखा पर विवाद की स्थिति पैदा करता रहता है। वह लगातार विस्तारवाद और साम्राज्यवाद की नीति का अनुसरण करता रहा है। मगर चीनी सामान का बहिष्कार कर भारत की जनता ने चीन के इस षडयंत्र को नाकाम करने का प्रयास किया है। चीन कभी अरूणाचल पर अपना दावा ठोकता हैं तो कभी लद्दाक अक्साई क्षेत्र में सड़क बना कर विवाद की स्थितियां पैदा करता है, भारत को घेरने के लिए हिंदमहासागर क्षेत्र में भी चीन की गतिविधियों में इजाफा हुआ है। पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित बालटिस्तान में चीनी गतिविधियां तेज हुई हैं। इन इलाकों में तीन से चार हजार चीनी कार्यरत हैं।
देश के खुदरा व्यापारियों के संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने चीनी सामान का बहिष्कार शुरू कर दिया है। चीन के 3000 से अधिक प्रोडक्ट भारत में सस्ते दाम होने के कारण आयात किया जा रहा था उस सामान का भारतीय व्यापारियों ने खुलकर बहिष्कार किया है तथा उसकी जगह भारतीय प्रोडक्टस को इस्तेमाल करने की अपील की है।
नरेन्द्र मोदी ने वीडियो कान्फ्रेन्सिग के जरिए कहा कि पूरा देश भारतीय सेना के साथ है। भारत ने इस समय आर्थिक व सैन्य मोर्चे पर कमर कस ली है। चीन के साथ किए गए कई इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट भी इस बीच रद्द कर दिए गए है। सरकार ने जन भावनाओं का ख्याल करते हुए ऐसा कदम उठाया है।
भारत चीन के खिलाफ कारपोरेट वॉर का ऐलान कर दिया है। इस तरह से उसे आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाकर सबक सिखाने की कोशिश सराहनीय है। अब तक कांग्रेस सरकार जो काम अपने पूरे कार्यकाल में नहीं कर पायी वह काम मोदी सरकार ने कर दिखाया। उन्होंने जन भावना का सम्मान करते हुए चीनी प्रोजेक्ट, सामन और ऐप्स पर प्रतिबन्ध लगाकर। आज पूरी दुनिया में इस बात पर चर्चा हो रही है कि आज आर्थिक और सैन्य मोर्चे पर चीन को अगर कोई सबक सिखा सकता है तो वह नरेन्द्र मोदी नेतृत्व की सरकार ही कर सकती है। आज भारत में राष्ट्रवाद की ऐसी लहर है व्यापारियों और आम जनता से लेकर हर कोई चीन को हर मोर्चें पर धूल चटा देने के लिए तत्पर है।
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