नीतियों से सबकुछ आशा नहीं, नीतियां निर्णयन के लिए मार्गदर्शिकाएं हैं : प्रो. शर्मा


प्रो.भगवती प्रकाश शर्मा ग्रेटर नोएडा स्थित गौतमबुद्ध यूनिवर्सिटी के उप कुलपति बनने के पहले उदयपुर के पैसिफिक यूनिवर्सिटी में उप कुलपति के पद पर तैनात थे। नई शिक्षा नीति-2020 पर प्रो.बीपी शर्मा से अजित मिश्र की बातचीत का मुख्य अंश :



प्रश्न: नई शिक्षा नीति से शिक्षा पर क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है?

प्रो. बीपी शर्मा: नई शिक्षा नीति से देश की शिक्षा संस्कृति में आमूल-चूल बदलाव आएगा। इसके साथ ही हम ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में 57 रैंक पर आते हैं। अब जैसे नेशनल रिसर्च फंड जो हमने स्थापित किया है और रिसर्च में फोकस कुछ यूनिवर्सिटी जो इस शिक्षा नीति में प्लांड (योजनागत) हैं। उससे क्या होगा कि हमारा क्वालिटी आफ रिसर्च और इनोवेटिव में काफी बदलाव आएगा। आज चाइना में हर साल 13 लाख पेटेंट रजिस्टर्ड होते हैं। हम केवल 45-50 हजार पेटेंट रजिस्टर्ड कराते हैं। इसलिए हाई टेक्नोलॉजी निर्यात में चीन हमसे 30 गुना ज्यादा है। तो कहीं न कहीं हम सोचते हैं कि हमारे इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी में बदलाव आएगा। दूसरा, जो हमारे इतिहास, संस्कृति और विरासत को जोड़ने की बात की गई, इससे हमारी  शिक्षा के राष्ट्रीय स्वभाव (नेशनल इथोस) में बदलाव आएगा। शिक्षा नीति में मूल्य शिक्षा पर जो ध्यान दिया गया है इससे गुणात्मक और नवाचार के स्तर पर बदलाव देखेंगे। 

प्रश्न: लंबे समय से शिक्षा पर बजट का न्यूनतम छह फीसदी खर्च करने की मांग होती रही है। मशहूर शिक्षाविद दौलत सिंह कोठारी के नेतृत्व में गठित देश के प्रथम शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग) ने तकरीबन छह दशक पहले इसकी अनुशंसा भी थी, लेकिन हम उसे कभी हासिल नहीं कर पाए। ऐसे में हम क्या शिक्षा में सुधार के लक्ष्य को पा सकते हैं?

प्रो. बीपी शर्मा : शिक्षा पर खर्च हमारे टैक्स जीडीपी में से केंद्र 10 फीसद, केंद्र और राज्य मिलाकर साढ़े सत्रह फीसद करते हैं। हमको रक्षा पर भी खर्च करना है, स्वास्थ्य पर भी खर्च करना है तो ये समस्या हमेशा से रही है। वो हम सकल घरेलू उत्पाद का 6 फीसद शिक्षा पर खर्च करने के लिए कहते हैं। केंद्र का तो 1.7 फीसद खर्च है। बाकी खर्च राज्यों का है। जो अभी 4.3 फीसद है। दोनों को ही खर्च बढ़ाना होगा। तभी हम 6 फीसद का लक्ष्य हासिल कर पाएंगे।  

प्रश्न: कहा जा रहा है कि नई शिक्षा नीति से शिक्षा का निजीकरण बढ़ेगा और विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता प्रभावित होगी ?

प्रो.बीपी शर्मा : शिक्षा का निजीकरण पिछले 20 सालों में हुआ है। आज देखें तो आधे से ज्यादा बच्चे स्व वित्त पोषित संस्थाओं में पढ़ रहे हैं। उच्च शिक्षा में भी देखें तो आधे के करीब बच्चे स्व वित्तपोषित कॉलेज और विवि में पढ़ रहे हैं। यह जो कासमास एजुकेशन को हमने 20-30 सालों में लागू किया, उसके कारण तो निजी संस्थाएं आई हैं। निजी स्कूलों में फीस को लेकर सवाल उठते हैं, यदि निजी या सरकारी संस्थाओं में फी रेगुलेशन को लागू किया जाता है तो वह अच्छा होगा। इस शिक्षा नीति में इस पर ध्यान है। आज बहुत सारे निजी संस्थान अच्छा कर रहे हैं जैसे बिट्स पिलानी है। संस्थाओं में माहौल कैसा है, रोजगारपरकता हो इस बात पर जोर देने की जरूरत है। 

शिक्षा पर केंद्र सरकार के टैक्स जीडीपी का 10 फीसद खर्च है और केंद्र व राज्य को मिलाकर 17.5 फीसद है। एक प्रकार से सीधी भागीदारी के बिना जो उच्च शिक्षा में ग्रोथ इनरालमेंट रेसियो का लक्ष्य 50 फीसद रखे हुए हैं, किसी समय में यह लक्ष्य 10 फीसद के करीब था। आज यह 26 फीसद है, मैं यह मानता हूं कि निजी संस्थान नहीं आये होते तो यह लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल होता। हमारा मूल लक्ष्य ये है कि आने वाले समय में भारत सबसे ज्यादा युवाओं वाला देश है यानी विश्व के 20 फीसद युवा हमारे पास है। स्कूल में 35 करोड़ बच्चे अध्ययनरत हैं जो अमेरिका की कुल जनसंख्या के बराबर हैं। कालेज, यूनिवर्सिटी में करीब 3.5 करोड़ लोग पढ़ रहे हैं जो पूरी कनाडा की जनसंख्या के बराबर हैं। तो हमें सोचना होगा कि चाहे निजी क्षेत्र का संसाधन हो या सरकारी क्षेत्र का संसाधन हो सबको लगाकर युवाओं का विकास करना होगा।

प्रश्न: देश में एक कॉमन स्कूल सिस्टम की मांग लंबे समय से हो रही है। नई शिक्षा नीति क्या देश के सभी बच्चों के लिए समान गुणवत्ता की शिक्षा सुनिश्चित करेगा?

प्रो. बीपी शर्मा: देखिए, समान रेजिमेंटेशन कभी सोचना नहीं चाहिए,135 करोड़ जनसंख्या के देश में यूरोप की जनसंख्या के लगभग दोगुने के बराबर हैं। सबको एक समान व्यवस्था में पढ़ाया जाए जो संभव नहीं है। एक उदाहरण देता हूं जब पहली बार मेडिकल टेस्ट के लिए मैट (मेडिकल इंट्रेस्ट टेस्ट) लागू किया गया था, नागालैंड का एक भी बच्चा सिलेक्ट नहीं हुआ था। यानी कि हम एक प्रकार के स्टैंडर्ड हर जगह नहीं लागू कर सकते। इसलिए लचीलापन देना होगा हमको। स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल हमको कहीं न कहीं सब प्रकार के छात्रों को जोड़ना होगा। वहीं दो बोर्ड की बजाय आठ सेमेस्टर में परीक्षाएं होंगी जिससे बच्चे हर सेमेस्टर में नया पढ़ेगा और उसके अंदर क्रिटिकल थिंकिंग आएगी। 

प्रश्न: नई शिक्षा नीति में 3 से 18 साल के छात्रों के लिए 5+3+3+4 का डिजाइन तय किया गया है। इसके क्या लाभ होंगे ?  

प्रो. बीपी शर्मा : देखिये, मैंने कहा न आठ सेमेस्टर होंगे। 10वीं और 12वीं बोर्ड होता था बच्चा परीक्षाओं के दिनों में जैसे-तैसे पढ़कर परीक्षा पास करता था। लेकिन अब सतत मूल्यांकन होगा, जिससे बच्चे पर उतना बोझ नहीं होगा। अब चार साल का ग्रेजुएशन हो गया है जो अंतरराष्ट्रीय स्थितियों के भी अनुकूल है। यूरोप में चार साल का ग्रेजुएशन होता है वहां एक साल का पीजी होता है। यहां से बच्चे वहां जाकर एक साल में पीजी करते थे लेकिन भारत में एक साल का ब्रिज कोर्स करना होता था लेकिन अब यहां भी यूरोप की तरह हो गया है।

अब बड़ी बात ये है कि माड्यूलर बन गया है। जैसे अब कोई ग्रेजुएशन करता है और एक साल पढ़ाई किया तो उसे सर्टीफिकेट मिल जाएगा, यदि दो साल पढ़ लिया और पढ़ाई छोड़ना पड़ रहा है तो उसे डिप्लोमा मिल जाएगा, जब पूरी अवधि करेगा तो ग्रेजुएशन मिल जाएगा। एक तो छात्र को ये लाभ मिलेगा, दूसरा इंटरडिसिपिलिनरी रिसर्च का जमाना है। यानी कि किसी व्यक्ति ने एक स्ट्रीम में पढाई की और वह दूसरे स्ट्रीम में अध्ययन करना चाहता है तो उसे सुविधा मिलेगी। 

उदाहरण के लिए हम ह्दय में पेशमेकर लगाते हैं जो हमारे मोबाइल की बैटरी की तरह होता है। वह ह्दय में जरूरत भर का इलेक्ट्रिक सप्लाई करता है। हमारे यजुर्वेद में एक श्लोक है जो ह्दय के आगे वाले भाग में विद्युत को धारण करने की बात करता है। यानी कि हमारे पांच हजार साल पुराने ग्रंथ में विद्युत स्पंदन की बात आज सटीक सिद्ध हो रही है। आज कोई इंजीनियरिंग पढ़े, मेडिसिन पढ़े, वह संस्कृत को साथ लेकर पुराने ग्रंथों पर शोध कर सकता है।

प्रश्न: स्कूली शिक्षा औऱ उच्च शिक्षा दोनों में बदलाव के लिए, माध्यम, पाठ्यक्रम और संसाधन तीनों की जरूरत है। नई शिक्षा नीति में क्या इस संकट को हल करने की कोशिश की गई है?

प्रो. बीपी शर्मा : हमको पॉलिसी से सबकुछ आशा नहीं करनी चाहिए,नीतियां निर्णयन के लिए मार्गदर्शिकाएं हैं। तो, एक प्रकार से हम आगे कैसे बढ़े इसका खाका है।आपरेटिंग पार्ट अलग है उसमें नियामक होंगे, विभिन्न रेगुलटरी अथारिटी के जगह एक नियामक संस्था बनाया है। हमने रेगुलेशन और फंडिंग को अलग-अलग कर दिया। हायर एजुकेशन काउंसिल आफ इंडिया और हायर एजुकेशन ग्रांट्स काउंसिल अलग कर दिया। ग्रांट की चिंता ग्रांट काउंसिल पर छोड़ना होगा।

नई शिक्षा नीति के तहत जो प्रावधान है उसका क्रियान्वयन बहुत ही चरणबद्ध ढंग से होगा।अभी कोरोना है अगर स्थितियां ऐसी ही रहीं तो सरकार का मानना है कि अगले सत्र से क्रियान्वयन किया जाएगा। जैसे अनुसंधान को आगे बढ़ाना है और 20वीं मंजिल पर पहुंचना है तो पहली सीढी, दूसरी सीढी होते हुए वहां पहुंचना होगा। ये है कि हम ठीक दिशा में अग्रसर होते रहें, इसके लिए सबके भागीदारी की आवश्यकता है और मैं मानता हूं कि सबकी भागीदारी होगी। हमको सभी भागीदारों को एक चिंतन पर लाना होगा, हो सकता है शुरू में कहीं राय में भिन्नता आ जाए, तो उसमें को-आर्डिनेट करने में भी समय लगेगा। पहला चरण यही होगा कि सबका इस शिक्षा नीति में कैसे विश्वास पैदा हो। पूरी प्रक्रिया में थोड़ा समय लगेगा लेकिन आने वाले समयों में शिक्षण के प्रति बेहतर संलग्नता होगी।