
आज भारत एक बार फिर कारगिल की तरह एक और घुसपैठ का सामना कर रहा है। भारतीय सेना के सामने इसबार चीन ने चुनौती पेश की है। कारगिल में पाकिस्तान ने चुनौती पेश की थी। 26 जुलाई को देश भर में कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। वैसे में एकबार कारगिल वार को याद करना जरूरी है। क्योंकि कारगिल युद्ध से पहले की विफलता से ना सीखने के कारण आज फिर भारत लगभग उसी स्थिति का सामना लद्दाख में कर रहा है।
कारगिल युद्ध के 21 साल पूरे हो गए हैं। पाकिस्तान के साथ दो पूर्ण युद्ध के बाद यह एक सीमित युद्ध था, जो लगभग तीन महीने चला। पाकिस्तान के ऑपरेशन कोह-ए-पैमा का जवाब भारत ने ऑपरेशन विजय से दिया था।युद्ध का एक परिणाम यह हुआ कि पाकिस्तान में एक बार फिर लोकतंत्र खत्म हो गया था। नवाज शरीफ बाद में जेल में डाल दिए गए। कारगिल युद्ध के मास्टर माइंड परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह बन गए, जो बाद में उन्हीं अटल बिहारी वाजपेयी से आगरा में मिले, जिनके कार्यकाल में कारगिल युद हुआ था।
आगरा मे मुशर्रफ का शानदार स्वागत उसी वाजपेयी सरकार ने किया था, जो मुशर्रफ के कारनामों के भुक्तभोगी थी। दिलचस्प बात यही थी कि भारत के खिलाफ साजिश रचने वाला पाकिस्तानी सैन्य जनरल मोहाजिर था, जिसका परिवार भारत की राजधानी दिल्ली से गया था। नहीं तो इससे पहले भारत के खिलाफ तमाम साजिश रचने वाले सैन्य जनरल पश्तून या पंजाबी थे।
हालांकि कारगिल इलाके में घुसपैठ कर सियाचिन से भारत को हटाने की योजना पाकिस्तानी सेना जनरल जिया उल हक के समय से बनाई जा रही थी। लेकिन जनरल जिया के अफगान युद्ध में सोवियत सेना के खिलाफ फंसे होने के कारण पाकिस्तान सेना ने जिया के समय में कारगिल घुसपैठ की योजना को टाले रखा था।बेनजीर भुट्टो जब दुबारा 1993 से 1996 तक सत्ता में थी तब भी पाकिस्तानी सेना कारगिल में घुसपैठ कर लद्दाख को कश्मीर घाटी से काटने की योजना बनाई थी। इस योजना को मंजूरी के लिए जब बेनजीर भुट्टो के सामने रखा गया था तो उन्होंने इसे मंजूर करने से इंकार कर दिया। भारत में पैदा हुए मुशर्रफ़ की साज़िश थी आपरेशन कोह पैमा’।
पाकिस्तान के कोह-ए-पैमा या ऑपरेशन कारगिल का मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के लिंक को खत्म करना था। पाकिस्तानी जनरलों ने इसके लिए जहां पाकिस्तान लोकतांत्रिक हुक्मरानों को बेवकूफ बनाया था, वहीं उनकी एक गलतफहमी यह भी थी कि विवाद बढ़ने के बाद मामला अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाएगा और इससे कश्मीर के अंतराष्ट्रीयकरण में पाकिस्तान को लाभ मिलेगा। दिलचस्प बात यह थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को फौजी जनरल परवेज मुशर्रफ ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी अंत में दी थी और उन्हें यह भी कहा था कि वास्तव में यह ऑपरेशन कश्मीर फतह है। हालांकि नवाज शऱीफ को लेकर यह लिखा जाता है कि नवाज शरीफ को वास्तव में सेना के कारगिल ऑपरेशन की जानकारी नहीं थी। वो भारत से कोई विवाद नहीं खड़ा करना चाहते थे, लेकिन सच्चाई कुछ और थी। जब परवेज मुशर्ऱफ ने इस ऑपरेशन का उद्देश्य कश्मीर बताया तो नवाज खासे खुश हो गए थे।
पाकिस्तानी जनरलों की योजना अनुसार कश्मीर और लद्दाख को जोड़ने वाले एनएच-1 को हिट कर कश्मीर और लद्दाख का लिंक खत्म कर दिया जाएगा, ताकि सियाचिन से भारत सेना वापसी पर बाध्य हो जाए। लेकिन जनरलों की यह चाल कामयाब नहीं हो पाई और अंत में नवाज शरीफ को इज्जत बचाने के लिए अमेरिका भागना पड़ा। इसके बाद पाकिस्तानी सेना की वापसी भारतीय इलाकों से होने लगी। भारत को अंततः 26 जुलाई को पूरी सफलता मिली और भारत ने अपने तमाम इलाके अपने कब्जे में ले लिए। मुशर्रफ़ काफी चालक थे। उन्होंने कारगिल आपरेशन की जानकारी आईएसआई तक को नहीं दी थी। ऑपरेशन कोह पैमा की तैयारी पूरी तरह से पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन अध्यक्ष परवेज मुशर्रफ ने की थी, जिसकी जानकारी पाकिस्तान के बड़े टॉप जनरलों को नहीं थी। जब ऑपरेशन का प्लॉन नवाज शरीफ और कई दूसरे जनरलों के सामने आया तो कई जनरलों ने इसका विरोध किया। जबकि लंबे समय तक ऑपरेशन कोह पैमा की जानकारी परवेज मुशर्रफ और उनके खास अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अजीज खान, लेफ्टिनेंट जनरल महमूद अहमद और मेजर जनरल जावेद हसन को ही था।
दिसंबर 1998 से ही इन अधिकारियों ने भारतीय इलाकों में पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों को इस इलाके में भेजना शुरू कर दिया था। लेफ्टिनेंट जनरल महमूद अहमद लंबे समय से कश्मीर के इलाके में आतंकियों को मदद करने के लिए जिम्मेवार थे। जबकि मोहम्मद अजीज खान पश्तून बिरादरी के होने के बावजूद कश्मीर में पैदा हुए थे, इसलिए इलाके की अच्छी जानकारी उन्हें थी। ऑपरेशन कारगिल चार लोगों के गैंग का ही खेल था, इसलिए पाकिस्तानी सेना इस प्लानिंग में फेल भी हो गई। मुशर्रफ और उनके तीन सहयोगियों की योजना के तहत दिसंबर 1998 तक भारतीय इलाको में पाकिस्तानी सैनिकों को घुसपैठ हो चुकी थी। जनवरी 1999 में मुशर्रफ ने मिलिट्री ऑपरेशन डायरेक्टरेट की बैठक में ऑपरेशन कोह पैमा की जानकारी बाकी सैन्य अधिकारियों को दी।
जानकारी से पाकिस्तानी सेना के कई बड़े अफसर हैरान थे। दिलचस्प बात थी कि इसकी जानकारी पाकिस्तान के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन तौकीर जिया तक को नहीं थी। खास बात यह थी कि उन्होंने इसमें रुचि भी नहीं ली, लेकिन उन्हें पता था कि सारा खेल मुशर्रफ गैंग ने कर दिया है। दिलचस्प बात यह थी कि एक अन्य सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल शाहीद अजीज इस ऑपरेशन से सहमत नहीं थे। उन्होंने बैठक में आपत्ति जाहिर करते हुए कहा था कि एनएच-1 ए की आपूर्ति लाइन काटने के बाद भी सियाचिन तक भारत की जाने वाली सप्लाई लाइन नहीं काटी जा सकती है, क्योंकि भारत के सिचाचिन तक पहुंचने के लिए मनाली रोहतांग का वैकल्पिक रास्ता है। मार्च 1999 में जनरल मुशर्रफ और उनके सहयोगी भारतीय सीमा में 11 किलोमीटर अंदर तक आए पूरी रात गुजारी। भारत के पूर्व सेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने भी अपनी किताब में इस घटना का जिक्र किया है।
महीनें तक मुशर्रफ ने नवाज को धोखे में रखा था । ऑपरेशन कारगिल की जानकारी पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को मई 1999 में दी गई। मिलिट्री लीडरशीप ने एक बैठक में नवाज शरीफ और उनके सहयोगियों को ऑपरेशन कोह पैमा की जानकारी दी।लेफ्टिनेंट जनरल तौकीर जिया ने पूरी विस्तृत जानकारी देते हुए नवाज को बताया कि अंत में हालात ये हो होंगे कि भारत पाकिस्तान के सामने हाथ जोड़ेगा और पाकिस्तान अपनी शर्तों पर सारा कुछ हासिल कर लेगा। लेकिन नवाज शरीफ को कुछ मामलों में फिर अंधेरे में रखा गया था। उन्हें कहा गया कि पाकिस्तानी सेना सारा ऑपरेशन एलओसी पर कर रही है।
नवाज को यह जानकारी नहीं दी कि पाकिस्तानी सेना भारतीय सीमा में 11 किलोमीटर अंदर तक आ गई है। हालांकि इस बैठक में तत्कालीन विदेश मंत्री सरताज अजीज और कश्मीर एवं नार्दन एरिया मामलों के मंत्री लेफ्टिनेंट जनरल(रिटायर्ड) माजीद मलिक ने पाकिस्तानी सेना के ऑपरेशन की सफलता शक जाहिर किया। बताया जाता है कि पाकिस्तानी जनरलों ने नवाज शरीफ को कई तरीके से बेवकूफ बनाया। उन्हें यहां तक झांसा दिया कि इस ऑपरेशन से कश्मीर फतह हो जाएगा। नवाज शरीफ खुद कश्मीरी हैं। एक बारगी सेना की इस योजना से वे बैठक में खुश हो गए थे।
नवाज कश्मीरियों के अमृतसरी ब्रांच से होने के कारण मुशर्रफ़ के तर्कों से इमोशनल हो गए थे। नवाज शरीफ खुद कश्मीरी परिवार से है। नवाज शरीफ के परिवार आजादी से पहले अमृतसर छोड़कर लाहौर शिफ्ट हो गए थे। आजादी से पहले कश्मीर से बाहर चार शहरों में कश्मीरी मुसलमानों का चार ब्रांच व्यापार में अपनी पकड़ बनाए था। नवाज शरीफ का परिवार कश्मीरी मुसलमानों के अमृतसर ब्रांच से संबंधित था। जबकि अमृतसर ब्रांच के अलावा लुधियाना, फैसलाबाद और लाहौर तीन और ब्रांच कश्मीरी मुसलमानों के थे।
कहा जाता है कि नवाज शरीफ ऑपरेशन कारगिल को लेकर बिल्कुल अनजान थे, क्योंकि इससे पहले भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर दौरा किया था। वहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने वाजपेयी का जोरदार स्वागत किया था। दोनों प्रधानमंत्रियों के बातचीत के बाद लाहौर घोषणापत्र पर सहमति बनी। दोनों देशों के संसद ने इस संधि की पुष्टि भी की। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि जिस समय इस संधि पर हस्ताक्षर हो रहा था, उससे पहले ही पाकिस्तानी सेना कारगिल इलाके में घुसपैठ कर गई थी। कागरिल युद्ध के बाद दोनों तरफ की लोकतांत्रिक सरकारों की कार्यशैली पर सवाल उठे। नवाज शरीफ पर यह सवाल था कि उन्हें पाकिस्तानी सेना की करतूत की जानकारी नहीं थी।
जबकि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पर यह सवाल उठा था कि सरकार को पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ की जानकारी तक नहीं थी। खुफिया तंत्र की विफलता इस कदर थी कि इधऱ पाकिस्तान सेना घुसपैठ कर गई थी और उधऱ वाजपेयी लाहौर गए थे। कारगिल युद्ध ने भारतीय खुफिया तंत्र की पोल खोल दी थी। छः महीनों तक पाकिस्तानी सैनिक भारतीय इलाके में घुसपैठ करते रहे। कई महत्वपूर्ण पोस्ट पर कब्जा कर लिया। लेकिन भारतीय खुफिया तंत्र को इसकी जानकारी तक नहीं थी। इसके कारण देश की सेना ने अपने बहुमूल्य सैनिक खोए। 527 जवान और सैन्य अधिकारी कारगिल युद्ध में शहीद हो गए।पाकिस्तान को भी भारी नुकसान हुआ। पाकिस्तान के भी लगभग 450 सैन्य अधिकारी, जवान औऱ आतंकी इस युद्ध में मारे गए। नवाज शरीफ को इस युद्ध का खौफनाक चेहरा तब नजर आया जब वे स्कर्दू स्थित सैन्य अस्पताल में पहुंचे। वहां घायल सैनिकों को देखने के बाद पता चला कि जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तानी सेना को नहीं बल्कि पूरे देश को फंसा दिया है। सैन्य अस्पताल में मौजूद अधिकारियों नें बताया कि गंभीर रूप से घायल सैनिकों को दूसरे अस्पतालों में भी भेजा जा रहा है।
भारतीय खुफिया तंत्र की विफलता यह थी कि भारतीय सेना को मई के पहले सप्ताह में जानकारी मिली कि पाकिस्तानी सेना भारतीय इलाके में घुसपैठ कर गई है। खुद इसे सेना के बड़े अधिकारी स्वीकार करते रहे हैं। भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय में शामिल रहे लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) मोहिंदर पुरी के अनुसार कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय खुफिया तंत्र की विफलता साफ नजर आई थी। उन्होंने कहा कि कारगिल में मिलिट्री इंटेलिजेंस भी विफल था। उन्हें पाकिस्तानी घुसपैठियों का पता नहीं चला। खुफिया तंत्र की विफलता यह थी कि पाकिस्तान के नार्दन एरिया के इलाके में भारतीय खुफिया एजेंसियों का तंत्र कमजोर था। भारतीय खुफिया एजेंसियों का पाकिस्तान के नार्दन एरिया में ट्रांस बार्डर सार्विलांस कमजोर होने के कारण कारगिल-बाटलिक-द्रास इलाके में पाकिस्तानी सेना और आतंकी संगठन अक्सर घुसपैठ कर रहे थे।