सिर्फ ट्रंपवाद ही नहीं, बल्कि बर्नी सैंडर्स के मुद्दे भी बाइडेन के लिए है चुनौती

बाइडेन प्रशासन ने अपनी विदेश नीति को लेकर कुछ संकेत दे दिए है। उन्होंने ट्रंप के कई फैसले बदल दिए है। अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन में वापसी कर रहा है। बाइडेन ने पेरिस क्लाइमेट एकॉर्ड में भी वापसी का फैसला लिया है।

राष्ट्रपति पद संभालते ही जोसेफ बाइडेन ने डोनाल्ड ट्रंप के कई फैसलों को बदल दिए हैं। यह अमेरिका की आंतरिक से लेकर वाह्य नीतियों में कई बदलाव के संकेत है। यही नहीं जो बाइडेन के कार्यकाल में अमेरिका में काफी कुछ ‘पहली बार’ दिख रहा है। मसलन अमेरिका में पहली बार अश्वेत, एशियाई मूल की कमला हैरिस उप-राष्ट्रपति बन गई है। कमला हैरिस उप-राष्ट्रपति पद पर पहुंचने वाली पहली महिला है।

पहली बार अमेरिका में रक्षा मंत्री के पद पर एक अश्वेत मूल का व्यक्ति बैठा है। लॉयड ऑस्टिन पहले अश्वेत हैं जिन्हें अमेरिका का रक्षामंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। ऑस्टिन अमेरिकी सेना में 41 सालों तक बड़े पदों पर काम कर चुके हैं। इराक मे लंबे समय तक काम करने का अनुभव उनके पास है। किसी भी अश्वेत के लिए सेना में 41 साल तक कार्य करना अमेरिका में आसान काम नहीं है, जहां पुलिस से लेकर सेना में नस्ली भेदभाव जमकर होता है।

बाइडेन यही नहीं रूके उन्होंने पहली बार अमेरिकी इतिहास में किसी नेटिव अमेरिकन को कैबिनेट सचिव नियुक्त किया है। उसे आंतरिक मंत्रालय का कार्यभार भी दिया है। नेटिव अमेरिकन महिला देब हालेंद को बाइडेन ने कैबिनेट सचिव नियुक्त किया है। निश्चित तौर पर बाइडेन के फैसले संकेत देते है कि वे अमेरिका में नस्लों के आधार पर बढ़ रहे विभाजन को रोकने के लिए गंभीर है। इसलिए उन्होंने अमेरिकी प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर तमाम वैसे लोगों को जगह दी है, जिनका समुदाय अमेरिकी समाज में उपेक्षा का शिकार रहा है।

हालांकि सिर्फ प्रशासन में अलग-अलग वर्ग के लोगों की नियुक्तियों से ही अमेरिका की समस्या खत्म नहीं होगी। अमेरिकी समाज की समस्या को खत्म करने के लिए बाइडेन को जमीन पर कई और कड़े फैसले लेने होंगे जो शायद अमेरिकी कारपोरेशनों को मंजूर नहीं होंगे। चूंकि डोनाल्ड ट्रंप ने पहले से ही विभाजित अमेरिकी समाज को और हिंसक कर दिया है, इसलिए बाइडेन को समाज के तमाम गरीब तबके के कल्याण के लिए कई बड़े फैसले लेने होंगे। लेकिन बड़े कल्याणकारी फैसले अमेरिकी कारपोरेशनों को मंजूर नहीं होंगे।

बाइडेन प्रशासन ने अपनी विदेश नीति को लेकर कुछ संकेत दे दिए है। उन्होंने ट्रंप के कई फैसले बदल दिए है। अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन में वापसी कर रहा है। बाइडेन ने पेरिस क्लाइमेट एकॉर्ड में भी वापसी का फैसला लिया है। बाइडेन ईऱान से संबंधों को ठीक करने का संकेत दे चुके है। जल्द ही बाइडेन ईरान से अपने संबंधों को सामान्य करने की कोशिश करेंगे। बाइडेन ईऱान के साथ हुए परमाणु करार को दुबारा बहाल करने के लिए तैयार है, बशर्ते ईऱान भी अपनी तरफ से कुछ लचीलापन दिखाए।

बराक ओबामा के कार्यकाल में ईऱान के साथ हुए परमाणु करार को ट्रंप प्रशासन ने खत्म कर दिया था। ट्रंप प्रशासन ने ईऱान पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। अब अमेरिका की ईऱान नीति में बदलाव के संकेत है। यही नहीं अमेरिका अपने मिडल ईस्ट की प़ॉलिसी में भी बदलाव लाएगा।

दरअसल सीआईए के मुखिया पद पर विलियम बर्न्स की नियुक्ति ने अमेरिकी विदेश नीति की कुछ रूपरेखा तय की है। विलियम बर्न्स अमेरिकी विदेश नीति के विशेषज्ञ है। बराक ओबामा के कार्यकाल में ईरान के बीच हुए परमाणु करार के पीछे मुख्य दिमाग विलियम बर्न्स का ही था। दरअसल विदेश नीति के विशेषज्ञ विलियम को सीआईए का निदेशक बनाकर बाइडेन ने साउथ एशिया और वेस्ट एशिया में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की भूमिका को अमेरिकी विदेश नीति के साथ संतुलित करने का संकेत दिया है।

यह तय है कि ईऱान और अमेरिका के संबंधों में सुधार होंगे। अमेरिका इजरायल, सऊदी अरब और ईऱान के बीच अमेरिका विदेश नीति को संतुलित करने का प्रयास करेगा। दरअसल ट्रंप ने मिडल-ईस्ट में कई कांटे बाइडेन प्रशासन के लिए पहले ही बो रखे है। ट्रंप ने इजरायल और सऊदी अरब को नजदीक लाकर ईरान विरोधी मोर्चे को काफी मजबूत किया था।

लेकिन बाइडेन ट्रंप के इन प्रयासों के दुष्परिणामों को समझते है। इसलिए वे मिडल ईस्ट के तमाम देशों को लेकर अमेरिकी कूटनीति को संतुलित करने की कोशिश करेंगे। वैसे बाइडेन प्रशासन के सत्ता संभालने से पहले ही कतर औऱ सऊदी अरब के बीच आपसी संबंध सामान्य होने लगे है। वहीं तुर्की भी सऊदी अरब से संबंधों को सामान्य करने की कोशिश में लगा हुआ है। गौरतलब है कि कतर-तुर्की-ईरान के त्रिगुट के खिलाफ सऊदी अरब और उसके सहयोगी देशों ने काफी सख्त रवैया अपना रखा है।

हालांकि बाहर से यह लग रहा है कि बाइडेन को अमेरिका में चुनौती सिर्फ ट्रंपवाद से मिलेगी। लेकिन बाइडेन को चुनौती डेमोक्रेटिक पार्टी में भी बर्नी सैंडर्स जैसे लोगों से मिलने वाली है। बाइडेन को चुनौती बर्नी के उन आर्थिक विचारों से मिलेगी जिसपर वे पिछले कई सालों से अमेरिका में बहस चला रहे है।

बर्नी सैडर्स ने डेमोक्रेटिक पार्टी में बाइडेन के खिलाफ राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बनने के लिए प्राइमरी में अच्छा संघर्ष किया। कई राज्यों में सैंडर्स ने बाइडेन को प्राइमरी में मात भी दी। हालांकि बाद में बर्नी ने हार मानी और बाइडेन की उम्मीदवारी स्वीकार कर ली। लेकिन उन्होंने अपनी नीतियों को लेकर हार नहीं मानी है।

बाइडेन के शपथग्रहण में बर्नी सैंडर्स के पहनावे को लेकर अमेरिका में चर्चा हो रही है। दरअसल बर्नी सैंडर्स ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था, अमेरिकी गरीबों की हालात पर लंबे समय से चर्चा छेड़ रखी है। डेमोक्रेट पार्टी में प्राइमरी के दौरान उन्होंने फ्री मेडिकेयर फॉर ऑल की बात की थी। उन्होंने अमेरिकी छात्रों की कर्ज माफी को लेकर बहस की थी। पूरे अमेरिका में फ्री क़ॉलेज का वादा किया था।

अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाने की वकालत की थी। आज भी बर्नी के ये उठाए गए ये मुद्दे अमेरिका में ज्वलंत है। वे बाइडेन के सामने ये चुनौतियां पेश करेंगे। क्योंकि अमेरिका में गरीबी, बेरोजगारी, महंगी चिकित्सा, महंगी शिक्षा एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आयी है,इसमें दो राय नहीं है।

अमेरिका में इस समय गरीबी एक प्रमुख समस्या है। अमेरिका में 3 करोड़ से ज्यादा लोग गरीब है। अमेरिकी जनगणना ब्यूरो के आंकडे बताते है कि 2019 में अमेरिका में 3.4 करोड़ लोग गरीब थे। कोरोना के कारण हालात और खराब हुए। कोरोना के कारण आबादी एक हिस्से को खाने की भी दिक्कत हुई। दूसरी तरफ कोरोना ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था की हालत खराब की है।

अमेरिका में बेरोजगारों की संख्या बढ़ी है। इस समय अमेरिका में बेरोजगारी दर 7 प्रतिशत के करीब है। आखिर घरेलू मोर्चे पर जो बाइडेन इन समस्याओं से कैसे निकलेंगे यह समय बताएगा। क्योंकि बदलते अमेरिका और बदलते वैश्विक स्थिति में बाइडेन की चुनौतियां और बढ़ेगी।

First Published on: January 23, 2021 3:13 PM
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