अब असंगठित क्षेत्र के मुलाजिमों को भी मिले पेंशन और सामाजिक सुरक्षा


नई पेंशन योजना प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का एक अहम फैसला मानी जाएगी। इसका लक्ष्य सरकारी कर्मियों को सामाजिक सुरक्षा देना है। इस तरह की नीति कोई दूरदर्शी नेतृत्व ही ला सकता है।


आरके सिन्हा
मत-विमत Updated On :

सरकार ने हाल ही में एकीकृत पेंशन योजना यानी यूनीफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) को लागू करने की अंततः घोषणा कर ही दी। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है, जो देश भर में सेवानिवृत्त सरकारी कर्मियों के हितों की रक्षा करती है। नई पेंशन योजना 1 अप्रैल 2025 से लागू होगी। इससे कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद निश्चित पेंशन मिलेगी। इसकी रकम सेवानिवृत्ति से पहले के 12 महीने के औसत मूल वेतन का 50 फीसदी होगी। 25 वर्ष तक की सेवा पर ही यह रकम मिल सकेगी। 25 वर्ष से कम और 10 साल से ज्यादा की सेवा पर उसके अनुपात में भी पेंशन मिलेगी। किसी भी कर्मचारी के निधन से पहले पेंशन की कुल रकम का 60 फीसदी हिस्सा परिवार को मिलेगा।

दरअसल नई पेंशन योजना के लागू होने से सरकारी बाबुओं को बहुत बड़ी दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता मिलेगी। केंद्र सरकार के कर्मचारियों की नई पेंशन योजना (एनपीएस) में सुधार की लंबे समय से मांग की जा रही थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2023 में टीवी सोमनाथन के नेतृत्व में इस पर एक समिति का गठन भी किया था। जेसीएम (संयुक्त सलाहकार तंत्र) सहित व्यापक परामर्श और चर्चा के बाद समिति ने एकीकृत पेंशन योजना की सिफारिश की थी।

भारत में, वृद्धावस्था में वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पेंशन सबसे महत्वपूर्ण साधन है। यह न केवल कर्मचारियों को काम करने के बाद जीवन स्तर बनाए रखने में मदद करता है, बल्कि ; सेवा निवृत्त कर्मचारियों को बाक़ी जीवन परिवार और समाज में , यहाँ तक कि अपने बच्चों की नज़र सम्मानपूर्वक बिताने का ज़रिया देता है ।जब कर्मचारी सेवानिवृत्त होते हैं, तो उनके आमदनी का स्रोत अचानक खत्म हो जाता है। पेंशन, भले ही सेवा के दौरान प्राप्त होने वाली आय से आधी हो , एक नियमित आय तो प्रदान करता ही है, जो उन्हें आवश्यक खर्च जैसे भोजन, स्वास्थ्य सेवा, और आवास के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराता है। इससे वित्तीय अनिश्चितता के खतरे को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 2004 में राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) शुरू की थी। उसमें कर्मचारियों और सरकार दोनों ने कर्मचारी के मूल वेतन और महंगाई भत्ते (डीए) का 10% योगदान सेवानिवृत्ति निधि में दान किया। इस फंड को बाजार-जुड़े साधनों के मिश्रण में निवेश किया गया था, और रिटर्न में प्राप्त आय से पेंशन राशि का निर्धारण किया। हालाँकि, इस प्रणाली ने बहुत आवश्यक वित्तीय अनुशासन भी लाया और सरकार की बिना फंड वाली पेंशन देनदारियों को कम किया। लेकिन, उसने सेवानिवृत्त लोगों के लिए अनिश्चितता भी पैदा की, क्योंकि पेंशन बाजार के प्रदर्शन पर निर्भर थी। उदाहरण के लिए, बाजार में गिरावट के दौरान, सेवानिवृत्त लोगों ने कम रिटर्न देखा, जिससे उनकी वित्तीय सुरक्षा के बारे में चिंताएं बढ़ीं। एक बात जान लें कि नई पेंशन का राज्य सरकार के कर्मचारियों को भी लाभ मिलेगा यदि कोई राज्य सरकार इसे लागू करना चाहती हैं तो।

कांग्रेस का एनपीएस पर रुख सदैव अस्पष्ट रहा और लगातार बदलता भी रहा। शुरू में, कांग्रेस ने एनपीएस की सराहना की। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे एक बेहतर पेंशन मॉडल बताया। हालांकि, बाद में कांग्रेस ने इसकी कमियां निकालनी शुरू कर दीं, मात्र अपने सियासी स्वार्थों के कारण। पुरानी पेंशन योजना को खत्म करने के लिए केंद्र की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा था। केंद्र से लेकर राज्यों के भी सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन स्कीम को वापस लाने की मांग करते ही रहे थे। राजस्थान में जब कांग्रेस की सरकार थी तो उन्होंने पुरानी पेंशन को लागू किया था, जोकि आज तक लागू है। हिमाचल प्रदेश में भी पुरानी पेंशन योजना को लागू किया जा चुका है। अब एकीकृत पेंशन योजना पर मोहर लग गई है।

एकीकृत पेंशन योजना की सबसे बड़ी खूबी यही है कि इसमें पुरानी पेंशन योजना यानी ओपीएस और राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) की खासियतों को शामिल किया गया है। ओपीएस की तरह यूपीएस में भी निश्चित पेंशन सुनिश्चित की जा रही है और यही मांग कर्मचारियों की लगातार रही है। यूपीएस प्रति माह 10 हजार रुपए की न्यूनतम पेंशन गारंटी पेश देती है।

यूपीएस से लाखों सरकारी कर्मियों को रिटायरमेंट के बाद आर्थिक सुरक्षा मिलेगी। वर्ना जिन लोगों को किसी तरह की पेंशन रिटायरमेंट के बाद नहीं मिलती है, उन्हें बहुत कष्ट और जलीलत की ज़िंदगी झेलना पड़ता है। देश के निजी क्षेत्र से जुड़े लाखों-करोड़ों लोगों को हर माह बड़ी मुश्किल से दो-ढाई हजार रुपए ही पेंशन मिलती है। अब आप सोच सकते हैं कि इतनी कम राशि से तो कोई इंसान अपने महीने का चाय-पानी का खर्च भी नहीं निकाल सकता है। मेरे बहुत सारे पत्रकार मित्रों को रिटायर होने के बाद मात्र दो-तीन हजार रुपए मिलते हैं पेंशन के रूप में। यही हाल अन्य विभागों से जुड़े रिटायर कर्मियों का भी है।

नई पेंशन योजना प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का एक अहम फैसला मानी जाएगी। इसका लक्ष्य सरकारी कर्मियों को सामाजिक सुरक्षा देना है। इस तरह की नीति कोई दूरदर्शी नेतृत्व ही ला सकता है। यह एक ऐसी योजना है जो पिछली पेंशन योजनाओं की सारी अच्छी बातों का निचोड़ है।

सवाल पूछा जा रहा है कि क्या सरकरी कर्मियों को रिटायर होने पर ग्रेच्युटी के अतिरिक्त एकमुश्त भुगतान का भी लाभ मिलेगा? इस सवाल का जवाब यह है कि कर्मियों को सेवानिवृत्ति पर ग्रेच्युटी के अतिरिक्त एकमुश्त भुगतान का लाभ भी मिलेगा।

सेवानिवृत कर्मियों के पास वित्तीय सुरक्षा होने का अर्थ है कि वे अपने परिवारों की देखभाल करने, बच्चों की शिक्षा में योगदान देने, और अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिए अधिक संसाधन रख सकते हैं। यह बुढ़ापे में आश्रित होने के बजाय स्वतंत्र जीवन जीने में मदद करता है।

एक स्थिर पेंशन प्रणाली कर्मचारियों को अपनी नौकरी के प्रति अधिक प्रतिबद्धता और निष्ठा पैदा करती है। उन्हें लगता है कि रिटायर होने के बाद उन्हें वित्तीय सुरक्षा मिलेगी, इसलिए वे अपनी नौकरी में अधिक ध्यान केन्द्रित करते हैं।

एक बात यह भी है कि पेंशन योजनाएं आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देती हैं। निवेश योजनाओं में पेंशन फंडों के निवेश से आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है, रोजगार के अवसर बढ़ते हैं, और देश की समग्र आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

भले ही पेंशन के कई लाभ हैं, भारत में अभी भी कई चुनौतियां हैं। भारत के असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले अनगिनत मेहनतकशों को कोई पेंशन नहीं मिलती। इनकी कुल संख्या सरकारी कर्मचारियों की संख्या से कई गुना ज़्यादा है और उनकी आय भी कम और अनिश्चित है। आख़िर, वे भी तो भारतीय नागरिक ही हैं। सरकार को इनके बारे में भी गम्भीरतापूर्वक सोचने की आवश्यकता है।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)