3 मार्च को सीनेट की एक सीट पर हार के बाद इमरान खान की राजनीतिक प्रतिष्ठा पर चोट पहुंची थी। आनन-फानन में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने खुद ही विश्वास मत हासिल करने का फैसला लिया 6 मार्च को विश्वास मत हासिल करने में खान सफल रहे है।
उन्हें बहुमत हासिल करने के लिए जरूरी संख्या से ज्यादा 178 वोट मिले। इसके बावजूद खान के लिए चुनौतियां बढ़ गई है। क्योंकि सीनेट चुनाव में इमरान खान की पार्टी के उम्मीदवार की हार हो गई। इमरान खान की पार्टी के सदस्यों ने क्रास वोट कर पार्टी के उम्मीदवार को हरा दिया।
इमरान खान के आधिकारिक प्रत्याशी के चुनाव हारने के बाद खान का संकट बढ़ गया था। खान का आरोप है कि उनके उम्मीदवार को हारने वाले पूर्व प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी ने पैसे बांटकर क्रास वोटिंग करवायी है। वहीं विपक्षी दलों का कहना है कि खान अब कमजोर हो रहे है। उनकी पार्टी के लोग भी इस सच्चाई को समझ रहे है।
इन परिस्थितियों में इमरान खान को कार्यकाल के बीच में ही बहुमत साबित करना जरूरी हो गया था। दरअसल बहुमत साबित कर इमरान खान विपक्षी दलों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना चाहते है। क्योंकि हर मोर्चे पर विफल इमरान खान को भारी दबाव झेलना पड़ रहा है। वो किसी तरह से जनता का ध्यान इधऱ-उधर करने में लगे हुए है। विपक्षी दलों की एकजुटता से वे परेशान है। विपक्षी दलों का गठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट उनकी परेशानी दिन प्रतिदिन बढ़ा रहा है।
इमरान खान को 2018 में पाकिस्तान की सत्ता मिली थी। खान ने काफी वादा पाकिस्तानी जनता से किए थे। भ्रष्टाचार खत्म करने का वादा किया था। तब्दीली लाने का वादा किया था। आर्थिक मोर्चे पर जोरदार विकास का वादा किया था। लेकिन अभी तक हर मोर्चे पर वे विफल नजर आए है। हालांकि इसमें इमरान खान की कोई गलती नहीं है। क्योंकि खान को विरासत में सारा कुछ ग़ड़बड़ मिल है।
वे उस मुल्क के प्रधानमंत्री है, जहां प्रधानमंत्री सेना का मुखौटा होता है। बेशक जनता ने उनसे चुनकर भेजा है। खान को विरासत में वो पाकिस्तान मिला है, जो आतंकवाद के कारण जर्जर हो गया है। अर्थव्यवस्था चरमरायी हुई है। क्योंकि पिछले कई दशकों में पाकिस्तान ने अनुदान की राशि से जीना सीखा। अपना विकास किया ही नहीं है।
इमरान खान से पहले सत्ता में आए नवाज शरीफ, युसूऱ रजा गिलानी, बेनजीर भुट्टों भी पाकिस्ताना के लिए कुछ नहीं कर पायी। क्योंकि उनके उपर सेना का कंट्रोल बना रहा है। वो स्वतंत्र फैसले लेने मे विफल रहे। सेना ने लोकतांत्रिक सरकारों पर पाकिस्तान को भारत से उलझाए ऱखने की सलाह दी। दबाव बनाया।
दरअसल पिछले कई दशकों में पाकिस्तान पर सामने और पीछे से राज करने वाली सेना ने पाकिस्तान के आतंरिक विकास करने में कोई रूचि नहीं दिखायी। इन परिस्थितियों में खान पाकिस्तान के लिए क्या कर सकते है? अफगानिस्तान और भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने में पाकिस्तानी सेना को खूब मजा आता रहा है।
दुनिया के कुछ ताकतवर देश पाकिस्तान को अपने जियोपॉलिटिकल इंटरेस्ट में इस्तेमाल करते रहे है। इसके एवज में ताकतवर देश पाकिस्तानी सेना को जमकर अनुदान राशि देती रहे। पाकिस्तान में उधोग, कृषि और सर्विस सेक्टर का विकास नहीं हो पाया। कराची जैसा आर्थिक केंद्र भी सेना की गलतियों के कारण आतंकवाद के चपेट में गया। कराची के अलावा कोई और आर्थिक केंद्र विकसित करने में पाकिस्तान विफल रहा।
आतंकवाद से खुद पीडित पाकिस्तान को युद की मानसिकता से बाहर निकलना होगा। क्षेत्रीए सहयोग को बढ़ाना होगा। अगर क्षेत्रीए सहयोग बढ़ाने में पाकिस्तान विफल रहा तो आने वाले समय में पाकिस्तान का संकट और बढेगा। पाकिस्तानी सेना के अंदर सबकुछ ठीक नहीं है।
इमरान खान ने जनरल कमर जावेद बाजवा को बतौर आर्मी चीफ सेवा विस्तार दे दिया। इससे सेना के दूसरे जनरलों में खासी नाराजगी बढ़ गई। क्योंकि बाजवा के सेवा विस्तार से दूसरे जनरलों के कैरियर पर बुरा प्रभाव पड़ा है। उधऱ आर्थिक संकट बढ़ने से सेना के बजट पर भी फर्क पड़ रहा है।
कोविड के दौरान पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति और चरमराई है। सेना को समझ में आ रहा है कि आर्थिक संकट इतना ज्यादा है कि आने वाले समय में पाकिस्तानी सेना के सैन्य बजट पर भी ग्रहण लग सकता है। पाकिस्तान सरकार अपने कुल बजट का लगभग 25 प्रतिशत सेना पऱ खर्च करती है।
इमरान खान आने वाले समय में भी पाकिस्तान के लिए कुछ नहीं कर पाएंगे। क्योंकि आतंकवाद ने पाकिस्तान की कमर तोड़ दी है। पाकिस्तान में राजस्व का संकट है। बाहर से आर्थिक मदद मिल नहीं रहा है। कोरोना के कारण आर्थिक संकट और बढ़ गया है। सऊदी अरब जैसे मददगार देशों से पाकिस्तान के संबंध खराब हो गए है। पाकिस्तान के सऊदी अरब से संबंध खराब होने के कई कारण है।
अभी तक पाकिस्तान को सऊदी अरब और इसके मित्र देश जिसमें संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश शामिल है, अच्छी आर्थिक मदद मिलती रही है। यहां से पाकिस्तान को अनुदान राशि भी मिलती रही है। वहीं इन मुल्कों में अच्छी संख्या में पाकिस्तानी काम करते है। लगभद 35 लाख पाकिस्तानी सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में है। ये अच्छा पैसा पाकिस्तान को भेजते है। इन मुल्कों से पाकिस्तान को सलाना 20 अरब डालर की आमदनी होती है।
लेकिन कोरोना का प्रभाव सऊदी अरब और इसके सहयोगी देशों पर भी पड़ा है। इसलिए इन मुल्कों में बाहरी लोगों को रोजगार देने में अब कंजूसी हो रही है। बाहरी वर्कफोर्स की संख्या में भविष्य में अब ये मुल्क कम करेंगे। इस संबंध में योजनाएं भी बनायी जा रही है। वैसे में इमरान खान हो या पाकिस्तानी सेना इन्हें अपने पड़ोसी मुल्कों से अच्छा संबंध विकसित करना ही पाकिस्तान के विकास के लिए बेहतर उपाय है।