कोरोना संकट में धैर्य एवं संयम की जरूरत

देश के प्रबुद्ध नागरिकों और खास कर युवा वर्ग को व्यापक मस्तिष्क के साथ चिंतन करना चाहिए। उनमें आधुनिक तंत्र का विशेष ज्ञान है और प्रतिभा हैं। योग्यता-दक्षता-क्षमता और विशेषज्ञता हैं। इन दिव्य गुणों का उपयोग राष्ट्र निर्माण में लगाने की आवश्यकता है।

भारत वासियों से निवेदन है कि इस संकट की घड़ी में मर्यादा, अनुशासन, संयम, त्याग और राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से सोचें एवं व्यवहार करें। अनेकों लोग इस समय व्यंग और मनोविनोद के लिए अनेकों प्रकार की हल्की बातों को सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं। वे विद्वान हैं परंतु मूर्खतापूर्ण आचरण कर रहे हैं। आधुनिक तकनीक की जानकारी हैं परंतु उसका दुरुपयोग कर रहे हैं। कुछ लोग जिनका समाज मे प्रतिष्ठा हैं और लोग सम्मान करते तथा राजनीतिक दलों में ऊंचे पदों पर आसीन हैं वे भी ऐसे हल्के, मनोरंजक और गंदे विषयों तथा चित्रों को एक-दूसरे को भेज रहे हैं। वे सभी आत्मचिंतन और आत्म मंथन करें। अपना समय समाज में जागरूकता पैदा करने में लगाएं।

देश के प्रबुद्ध नागरिकों और खास कर युवा वर्ग को व्यापक मस्तिष्क के साथ चिंतन करना चाहिए। उनमें आधुनिक तंत्र का विशेष ज्ञान है और प्रतिभा हैं। योग्यता-दक्षता-क्षमता और विशेषज्ञता हैं। इन दिव्य गुणों का उपयोग राष्ट्र निर्माण में लगाने की आवश्यकता है। सबसे बड़ा गुण हैं जोखिम उठाने की क्षमता। वे अध्ययन करें, विश्लेषण करें, खोज करें, गुप्त से गुप्त रहस्यों का पता लगावे। इतिहास का अध्ययन कुछ निकालने के लिए करें। आज सभी देश स्वाधीन और स्वतंत्र हैं, परन्तु विश्व का अंग हैं।

आर्थिक और राजनैतिक तथा व्यवसायिक मामलों में विश्व के तंत्र से जुड़ा हुआ है। विश्व में पूंजीवादी, साम्राज्यवाद और साम्यवादी अधिनायक वाद के बीच निरन्तर वर्चस्व के लिए संघर्ष चलते आ रहा है। वे दोनों कई मामलों में बुनियादी चिंतन में एक हैं। विश्व के छोटे और कमजोर राष्ट्र जो अधिकांशतः अफ्रीका और एशिया के हैं, उनका शोषण करते रहना चाहते हैं। अपना माल बेचने और उनसे सस्ते दर पर कच्चा माल खरीदना उनकी नीति रही हैं। भारत इसी जाल में फंसा हुआ था। अब 2014 से भारत इस चक्रव्यूह से निकलने का निरंतर प्रयास कर रहा है। कमजोर और छोटे देशों के साथ सम्बन्ध बना कर अपनी आर्थिक हैसियत और वैचारिक शक्ति से उन्हें एक मंच पर लाने का प्रयास कर रहा है। कुछ सफलता भी मिल रही हैं।

भारत में भी उस दोनों लॉबी का हित चिंतक आजादी के समय से ही रहा है। आज भी वे सक्रिय हैं। उनका बहुत बड़ा तंत्र सभी क्षेत्रों में रहा हैं। इन शक्तियों का निहित स्वार्थ दोनों महाशक्तियों के हित से जुड़ा रहता हैं। राष्ट्र हित गौण हो जाता हैं। सभी क्षेत्रों में खास कर मीडिया के क्षेत्र में अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए हंगामा खड़ा करवाना, गरीबों में भ्रांति और भ्रम पैदा कर भगदड़ मचवाना तथा देश उन महाशक्तियों के आयात पर निर्भर बना रहे, इसके लिए दबाव बनाते रहना ही उनका लक्ष्य रहा है। दूसरी तरफ भारत के प्रतिभाशाली वैज्ञानिक मौन भाव से प्रति पल नये-नये वैज्ञानिक खोज के द्वारा भारत को आत्मनिर्भर बना कर विश्व में तीसरी शक्ति की धूरी को मजबूत बनाना चाहते हैं।

वैश्विक संकट के समय में निहित स्वार्थी और राष्ट्र विरोधी शक्तियां अनेकों प्रकार के भ्रम फैलाते रहते हैं। युवावर्ग जागे, उठे और अपने घर के दुश्मन को पहचाने। ऐसे देश द्रोहियों की न जाति हैं और न सम्प्रदाय हैं। वे कालनेमी बन कर सभी जाति, समाज, संगठन और सम्प्रदाय में घुसे हुए हैं। युवा वर्ग कृष्ण और अर्जुन बन कर निर्ममता पूर्वक अपने और पराये का भेद भुला कर भारत को विश्व विजयी बनने के अभियान में अविलम्ब कूद पड़े। राष्ट्र उन्हें पुकार रहा है। अगर मेरी जवानी होती और डॉ. राममनोहर लोहिया जिंदा होते तो कुछ कर के दिखा सकते थे। राम-कृष्ण-शिव ये त्रिदेव हमारे आदर्श हैं और रहेंगे। गाँधी-लोहिया-दीनदयाल ये तीनों आधुनिक भारत के आदर्श हैं। डॉ. भीम राव अंबेडकर इस सेतु के महान शिल्पकार हैं।

(लेखक पूर्व सांसद हैं।)

First Published on: April 23, 2021 6:13 PM
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