
भारत-चीन सीमा पर तनाव कम होने की खबरें आ रही
है। खबर है कि गलवान घाटी से चीनी सेना कुछ पीछे हटी है। उधर कुछ और इलाकों में
तनाव कम होने के संकेत हैं। तनाव कम होने की खबरों के बीच रूस चर्चा में है। कहा जा रहा है
कि रूस की कोशिशों से भारत और चीन के बीच तनाव कम हुआ है। हालांकि जब लद्दाख इलाके
में चीन घुसपैठ की शुरूआती खबरें आयी थी उस समय रूसी डिप्लोमेट सक्रिय हो गए थे।
लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के मास्को दौरे के बाद सीमा पर तनाव कम करने की
वास्तविक कवायद शुरू हुई।
रूस, चीन और भारत के विदेश मंत्रियों की
बैठक से भी लद्दाख सीमा पर तनाव कम होने में मदद मिली है। दरअसल राजनाथ सिंह के
मास्को से वापस लौटते ही भारत ने रूस से फाइटर जेट की खरीद पर मुहर लगा दी।
हालांकि रूस पर चीन का दबाव था कि रूस भारत को हथियार न बेचे। लेकिन रूस के एशिया
में अपने आर्थिक हित है। रूस की अपनी जियोपॉलिटिक्स है। बताया जा रहा है कि
अंदरखाते रूस की कूटनीति के कारण दोनों मुल्कों के बीच तनाव कम हुआ है। चीन रूस की
कूटनीति के कारण गलवान घाटी में वर्तमान स्थिति से पीछे हटा है।
रूस और चीन के बीच पिछले कुछ सालों में आर्थिक साझेदारी बढ़ी है। चीन से बढ़ी आर्थिक साझेदारी के कारण रूस की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली। दोनों मुल्कों के बीच इस समय आपसी व्यापार 111 अरब डालर के करीब है। 2014 में चीन और रूस के बीच 400 अरब डालर के गैस खरीद को लेकर समझौता हुआ। इस समझौते के तहत चीन को गैस आपूर्ति रूस ने शुरू कर दी है। इसमें कोई शक नही है कि पश्चिमी देशों के दबाव में जब रूस आर्थिक संकट में फंसा था तो चीन ने रूस की मदद की थी। इसके बावजूद एशियाई भूगोल में रूस चीन को नियंत्रित रखना चाहता है।
एशिया में चीन को नियंत्रित रखने के पीछे रूस का अपना खेल है। एशिया में चीन का ज्यादा ताकतवर होना रूस के हितों के खिलाफ है। इस कारण रूस किसी भी कीमत पर चीन को एशिया में एकतरफा ताकतवर नहीं होने देने चाहता है। रूस चीन पर नकेल रखना चाहता है। रूस की इस योजना में भारत रूस का मददगार साबित हो सकता है। दरअसल रूस की अपनी जियोपॉलिटिक्स है। रूस की रूचि सेंट्रल एशिया, वेस्ट एशिया से लेकर अफगानिस्तान तक में है।
रूस जानता है कि चीन अगर भारत जैसे देश को दबाने में सफल हो गया तो कल को उन इलाकों में भी चीन विस्तार करेगा जहां रूस का इस समय दबदबा है। रूस ने अपने आर्थिक हितों के मद्देनजर इराक से लेकर सीरिया तक में अमेरिका के खिलाफ मोर्चेबंदी पिछले कुछ सालों में की है। अमेरिकी कूटनीति को इस इलाके में रूस ने विफल भी कर दिया। वैसे में रूस कभी नही चाहगे कि भविष्य में चीन रूस की इतनी बड़ी मेहनत पर पानी फेर दे।
इसमें कोई शक नहीं है कि इस समय चीन रूस के गैस
का बड़ा खरीदार है। रूसी हथियारों का बड़ा खरीदार भी चीन है। इसके बावजूद रूस कई
और फैक्ट की विवेचना गहराई से कर रहा है। रूस को पता है कि भारतीय क्षेत्र पर चीन
की दावेदारी भविष्य में रूस के लिए भी संकट बनेगा। क्योंकि सीमा विवाद रूस और चीन
के बीच भी रहा है। रूस और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर एक जंग 1969
में हो गई है। उसरी नदी के एक दीप को लेकर चीन और रूस के बीच जंग हो गई थी। सोवियत
संघ टूटने के बाद चीन रूस से कुछ इलाकों को हासिल करने में भी सफल हो गया।
अब चीन ने नया खेल शुरू किया है। रूस के व्लादिवोस्तोक शहर पर चीन ने अपना दावा ठोका है। चीन का दावा है कि यह शहर 1860 से पहले चीन का हिस्सा था। चीन का आरोप है कि व्लादिवोस्तोक को चीन से रूस ने एकतरफा संधि का लाभ उठाते हुए हड़प लिया था। रूस की परेशानी ये चीनी दावा है। दरअसल चीन की जमीन संबंधी भूख से तमाम देश परेशान है। वैसे में रूस यह अच्छी तरह से समझता है कि अगर लद्दाख में सीमा विवाद के दौरान चीन भारत को दबाने में सफल हो गया तो भविष्य में चीन रूस को भी टारगेट करेगा।
वैसे रूस के मजे है। भारत भी रूसी हथियारों का बड़ा खरीदार है। चीन भी रूसी हथियारों का बड़ा खरीदार है। रूस और चीन के बीच एस-400 मिसाइल और सुखोई लडाकू विमान खरीद सौदा 2015 में हुआ। इधर भारत ने भी रूस से एस-400 मिसाइल खरीदने का आर्डर दे रखा है। भारत और रूस के बीच एस-400 का सौदा लगभग 5 अरब डालर का है। भारत मिग और सुखोई विमानों का खरीदार पहले से ही है। भारत रूस से सुखोई और मिग खरीदता रहा है।
अब चीन रूस से पांचवी जनरेशन का सुखोई एसयू-57 खरीदने पर भी विचार कर रहा है। दिलचस्प बात यह है कि रूस यही लड़ाकू विमान चीन के साथ-साथ भारत को भी बेचना चाहता है। सच्चाई तो यही है कि एशियाई देशों के आपसी विवादों के बीच रूस के हथियार उत्पादकों के मजे लगे है। ईरान भी अमेरिका, इजरायल और सऊदी अरब से तनाव के कारण रूसी हथियारों कों खरीदने की योजना लंबे समय से बना रहा है। ईऱान रुस से एस-400 मिसाइल और सुखोई फाइटर जेट खरीदने की योजना पर विचार कर रहा है।