क्यूबा एक द्वीपीय देश है, जो पूंजीवाद के सबसे बड़े प्रतीक अमेरिका की दक्षिण- पूर्वी सीमा से महज़ 366 किमी दूर स्थित है। लगभग डेढ़ करोड आबादी वाला यह देश अपने महकते सिगार, ह्वाइट रम, बेपरवाह जिंदगी, संगीत, रिंग में फुर्तीले बॉक्सर और खूबसूरत समुद्री किनारों के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन वर्तमान में यह दक्षिण अमेरिकी देश आतंरिक संकट से गुजर रहा है। वहाँ सरकार के विरुद्ध11जुलाई से व्यापक विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत हुईं थी। प्रदर्शनकारी अपने नारों में ‘तानाशाही के खात्मे’ और ‘आजादी’ कि माँग कर रहें हैं।
इस दौरान सरकार ने इन प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध सख्त रूप अपनाते हुए इन्हें क्रांति के दुश्मन बताते हुए इनका दमन प्रारम्भ कर दिया हैं। अब तक सैकड़ो प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किये जा चुके हैं। सड़कों पर मशीनगन लगी गाड़ियां गश्त लगा रही हैं। क्यूबा सरकार विरोध प्रदर्शनों के दमन के लिए कुख्यात है। इससे पहले कास्त्रो युग में मालेकोनाजो विद्रोह (सन् 1994) के समय लोग कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरे थे। तब भी साम्यवादी सरकार ने सख़्ती से उसका दमन किया था।
वास्तव में इस विरोध प्रदर्शन के पीछे कई कारण हैं। क्यूबा सामाजिक और आर्थिक और मोर्चे पर संकटों से घिरा है। वर्ष 2020, बीते तीन दशकों में क्यूबा कि अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बुरा था, जब उसमें तक़रीबन 10 से 11 फीसदी कि गिरावट दर्ज कि गई। वहीं जून 2021 में इसमें 2 फीसदी की गिरावट हुईं। चीनी निर्यात से प्राप्त होने वाले राजस्व में भी भारी कमी आयी है। इसके अतिरिक्त कारीगर, छोटे व्यापारी, टैक्सी ड्राइवर जैसे सीमित आर्थिक गतिविधियों वाले लोग हैं तथा मध्यम श्रेणी के उद्योगों का पर्याप्त विकास नहीं हो पाया है।
क्यूबा में सर्वाधिक संभावना पर्यटन उद्योग को है, जो कोरोना महामारी और अमेरिकी प्रतिबधों के कारण संकट में है। देश में मुद्रास्फीति बढ़ गयी है। खाद्य पदार्थों और दवाओं समेत कई बुनियादी चीज़ों की भारी किल्लत हो गयी है। हालत ये है कि गेहूँ के आटे की कमी के कारण लोग कद्दू से बनी ब्रेड पर गुजारे को विवश हो रहें हैं। मेडिकल स्टोर्स में साधारण सी एनलजेसिक दवा एस्पिरिन तक उपलब्ध नहीं है। विद्युत आपूर्ति लगातार बाधित है। क्यूबा में विदेशी मुद्रा का भी संकट है। जून माह में क्यूबा सरकार ने डॉलर में नगदी लेने पर रोक लगा दी। इससे भी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
इसी में कोरोना संक्रमण के प्रसार के कारण स्थिति और विकट हो गयी। कोरोना संक्रमण के नये प्रसार के दौर में पूरे दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप में क्यूबा इस महामारी से सर्वाधिक पीड़ित रहा। 10 जुलाई को ही 47 लोगों की मृत्यु हो गयी और 6900 संक्रमण के नये मामले सामने आए। देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गयी है। स्थानीय लोग इन सबके लिए चिकित्सा सुविधाओं और दवाओं के अभाव तथा अस्पतालों में फैली कुव्यवस्था के साथ- साथ सरकार को दोषी ठहरा रहें हैं। हालात इस कदर गंभीर हो गये है कि लोग सोशल मिडिया के माध्यम से अंतराष्ट्रीय समुदाय से मदद की अपील कर रहें हैं। वहाँ टीकाकरण की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है।
इस आतंरिक संकट के विषय में यह सम्भावनाएँ भी जताई जा रही हैं कि कहीं क्यूबा में साम्यवाद का अंत निकट तो नहीं है। वैसे ऐसी संभावनाएं पहले भी व्यक्त की जाती रहीं हैं। USSR के विघटन के बाद क्यूबा में कास्त्रों युग के अंत तथा कम्युनिस्ट व्यवस्था के ध्वंस की जो भविष्यवाणी की जा रही थीं, वो सारे कयास गलत साबित हुए थे।
वर्ष 2016 में फिडेल कास्त्रो की मृत्यु के पश्चात् भी क्यूबा में कम्युनिस्ट युग के अवसान तथा व्यवस्था परिवर्तन की पुनः भविष्यवाणी की जाने लगी। फिदेल कास्त्रो पूरी ठसक के साथ सत्ता पर काबिज़ रहें। लेकिन वर्ष 2006 से ही राष्ट्रध्यक्ष का पद संभाल रहें फिडेल के भाई राउल कास्त्रो ने सत्ता पर अपनी पकड़ कायम रखी। किंतु वह भी अपनी बढ़ती उम्र के कारण अपना उत्तराधिकारी चयन करने पर विवश हो गये।
1961 बे ऑफ पिग्स’ की वर्षगांठ पर देश के नेता के तौर पर डियाज कैनल के नाम की औपचारिक पुष्टि की गयी। ‘1961 बे ऑफ पिग्स’ की घटना क्यूबा के इतिहास में एक विशेष महत्त्व रखती है। इस दिन एक छोटे किंतु निर्णायक संघर्ष में कास्त्रो के सुरक्षा बलों ने 1,400 अमेरिका समर्थित उन विद्रोहियों को हराया था जो उनके शासन को उखाड़ फेंकना चाहते थे। मिगेल दियाज़ कनेल क्यूबा के पहले राष्ट्रध्यक्ष बने जो कम्युनिस्ट क्रांति के बाद पैदा हुए हैं। लेकिन मिगेल दियाज़ के पास ना कास्त्रो बंधुओ सरिखा आभामण्डल हैं और ना ही जनता और सरकार पर वैसी पकड़। संभवतः जनता भी साम्यवादी नीतियों से उकता गयी है।
वर्तमान में परिस्थितियां थोड़ी परिवर्तित सी प्रतीत हो रही है। यह परिवर्तन मात्र राजनीतिक ही नहीं बल्कि आर्थिक क्षेत्र में भी दिख रहा है। इस वर्ष (2021) कि शुरुआत में हीं क्यूबा सरकार ने निजी क्षेत्र को अधिकांश क्षेत्रों ने काम करने कि इजाजत देने कि घोषणा कर दी। क्यूबा कि श्रम मंत्री मार्टा एलीना फेइतो के अनुसार केवल कुछ उद्योगों, जिनका संचालन सरकार करेगी, को छोड़कर बाकी क्षेत्रों में निजी व्यवसाय को बढ़ावा दिया जाएगा।
हालांकि इन परिवर्तनों की शुरुआत तभी हो गई जब 2008 में राउल कास्त्रो सत्ता में आए। वर्ष 2011 में व्यापारिक गतिविधियों के लिए कुछ सीमित अधिकार दिये जाने लगे। संविधान में संशोधन के पश्चात संपत्ति पर निजी मालिकाना अधिकार को मान्यता प्रदान किया गया। इसके साथ हीं साम्यवादी समाज के निर्माण के लक्ष्य से एक कदम पीछे हटते हुए समाजवादी स्वरुप की बात की जाने लगी, साथ ही बाजार की भूमिका का जिक्र होने लगा। जिस तरह निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ती जा रही है, उसे लंबे समय तक अनदेखा नहीं किया जा सकता था।
इधर विश्व समुदाय की तरफ से प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गयी। इस सप्ताह की शुरुआत में, अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने क्यूबा में प्रदर्शनकारियों के लिए समर्थन व्यक्त किया और क्यूबा सरकार से उनकी बात सुनने का आह्वान किया। सोशल मिडिया के कारण इस प्रदर्शन में तेजी आ रही है। अतः साम्यवादी सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों द्वारा चलाए जा रहे व्यापक प्रदर्शनों को दबाने के प्रयास में इंटरनेट और टेलीफोन सेवा को बंद कर दिया है। इस पर राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने गुरुवार को कहा कि अमेरिका क्यूबा में इंटरनेट बहाल करने के लिए कदम उठा सकता है।
राष्ट्रपति मिगेल दियाज़ कनेल ने इस संकट के लिए सीधे तौर पर अमेरिकी प्रतिबधों और ट्रंप प्रशासन के दौरान लिए गये निर्णयों को दोषी ठहराया। उन्होंने अमेरिका से अपने देश पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की माँग की है।विदेशमंत्री ब्रूनो रोड्रिगेज ने स्पष्ट आरोप लगाया कि अमेरिका इन प्रदर्शनों को भड़काने के साथ हीं वित्तीय मदद भी मुहैया करा रहा है। राष्ट्रपति कनेल ने विरोधियों को ‘किराये के लोगों’ के रूप में चिन्हित किया है। राष्ट्रीय टेलीविजन पर अपने संबोधन में कनेल ने अपने समर्थकों को इस उकसावे का जवाब देने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि, “हम देश के सारे क्रांतिकारियो, सारे कम्यूनिस्टों का आह्वान करते हैं कि जहां भी इस तरह भड़काने वाली गतिविधियां हों, वहीं सड़कों पर उतरें।”
क्यूबा और अमेरिका की शत्रुता सर्वविदित है। आधी सदी से अधिक की दुश्मनी के पश्चात् सन् 2015 में जब तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा और क्यूबा के राष्ट्रपति राउल कास्त्रो कि मुलाक़ात हुईं तो लगा की दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य होने की प्रक्रिया शुरू हो गयी। इस मुलाक़ात में क्यूबा ने अमेरिकियों को अपने यहाँ आने देने और निजी व्यवसायों को उचित अवसर उपलब्ध कराने की बात स्वीकार की थी। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में ये सारी प्रक्रिया ठप पड़ गयी।
ट्रंप प्रशासन ने ओबामा सरकार के प्रयासों को कम्युनिस्ट क्यूबा के तुष्टिकरण का प्रयास माना तथा क्यूबा के विषय में पुरानी नीति की तरफ लौट गये। किंतु ओबामा कार्यकाल के दौरान उपराष्ट्रपति और वर्तमान राष्ट्रपति बाईडेन ने क्यूबा के साथ सम्बन्ध सुधारने के प्रयास के संकेत दिये हैं। क्यूबा नीति की समीक्षा कर बाइडेन प्रशासन ने ट्रंम्प सरकार की क्यूबा नीति की समीक्षा करने की घोषणा की है।
जबकि अब क्यूबा अपने आतंरिक संकट के लिए अमेरिका और उसकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए को दोषी ठहरा रहा है, तब एक बार फिर इन देशों के बीच तनाव बढ़ने की आशंका है। संभवतः अमेरिका अब तक अपने पड़ोसियों के प्रति शीतयुद्धकालीन कूटनीति से प्रेरित है। इधर अमेरिका के परम्परागत प्रतिद्वंदी चीन ने इस विषय पर प्रतिक्रिया देते हुए क्यूबा सरकार का समर्थन किया है। चीन ने इस मामले में किसी भी बाहरी पक्ष के दखल की आलोचना की है। साथ ही क्यूबा के राष्ट्रपति की अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने की माँग का समर्थन भी किया है। उसके अनुसार इस कारण से मूलभूत चीज़ों कि आपूर्ति में कठिनाईयां आ रही हैं।
वजह जो भी क्यूबा का संकट वैश्विक राजनीति विशेषकर अमेरिकी महाद्वीप के लिए एक नई चुनौती हैं। इस संकट का देर तक प्रभाव में रहना विश्व समुदाय के लिए उचित नहीं। साथ ही यह क्यूबा को वैश्विक महाशक्तियों का अखाड़ा बनाने के साथ ही नये तरह की प्रतिद्वंदिता को जन्म दे सकती है।