जिससे भी पूछो, वो यही कहता है कि धर्म कोई भी हो आपस में दोस्ती की ही बात करता है, कोई भी धर्म या मजहब नफरत की वकालत नहीं करता, शायद इसीलिए जब कभी भारत जैसे देश में किसी तरह के साम्प्रदायिक तनाव की आशंका होती है तो यह कह कर मन को समझाने की कोशिश भी की जाती है, “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिंदी हैं हम वतन है हिदोस्तां हमारा।”
भारत जैसे विविध संस्कृतियों और धर्मों वाले देश में तो विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच आपसी सद्भाव और सौहार्द जरूरी ही नहीं है बल्कि ऐसा करना तो इसकी सांस्कृतिक पहचान का एक हिस्सा है और देश के चतुर्दिक विकास के लिए हर देशवासी के लिए ऐसा करते रहना एक अनिवार्यता भी है। इसी अनिवार्यता को ध्यान में रखते खुदाई खिदमतगार नामक एक स्वैच्छिक संगठन के कार्यकर्ताओं ने मंदिर में नमाज पढ़ने और मस्जिद में पूजा करने का एक अभियान चलाने की योजना पर काम करने का विचार बनाया।
इसकी शुरुआत मथुरा के नन्द बाबा मंदिर में नमाज पढ़ने से करने का कदम भी उठाया। मंदिर के पुजारी से बाकायदा अनुमति लेकर मंदिर में नमाज पढ़ी भी गई लेकिन बाद में कुछ लोगों की शिकायत पर नमाज पढ़ने वाले युवाओं को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई।
यहां सरकार और पुलिस पर किसी तरह की टिप्पणी करना तो ठीक नहीं है क्योंकि पुलिस ने शिकायत पर अमल करते हुए ऐसा किया है, पुलिस ऐसा नहीं करती तो भी उसकी आलोचना होती लेकिन उन लोगों को माफ़ नहीं किया जा सकता जिन्होंने सच्चाई का पता किये बगैर नमाज पढ़ने वालों की शिकायत कर दी।
अब पुलिस को यह पता चल चूका है कि मंदिर में नमाज पढ़ने का असली मकसद साम्प्रदायिक सद्भाव को तोडना नहीं बल्कि उसे मजबूत बनाना था तो उसी इस कथित आरोप में गिरफ्तार किये लोगों को अविलम्ब रिहा करना चाहिए और दुर्भावना फैलाने की कोशिश करने वाले उन लोगों के खिलाफ किसी तरह की कानूनी कार्रवाई करने की युक्ति सोचनी चाहिए जिन्होंने झूठी शिकायत कर निर्दोष लोगों को फंसाने की कोशिश की है।
गौरतलब है कि खुदाई खिदमतगार के संस्थापक सदस्य फैसल खान और उनके साथी चांद मोहम्मद, आलोक रतन व निलेश गुप्ता के खिलाफ मथुरा के नन्द बाबा के मंदिर में नमाज पढ़ने और उसकी फोटो खींचने, उसे वायरल करने के लिए मुकदमा दर्ज किया गया है। तीन-चार दिन पहले दर्ज किए मुकदमें में फैसल खान को दिल्ली स्थित उनके “अपना घर” से गिरफ्तार कर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के बरसाना ले जाया गया है। उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153(ए), 295 तथा 505 के तहत मुक़दमे की कार्रवाई की गई है।
यहां एक गौरतलब जानकारी यह भी है कि मथुरा-वृन्दाबन जैसे धार्मिक क्षेत्र में 84 कोसी परिक्रमा करने का सांस्कृतिक और धार्मिक विधान है और यह परिक्रमा किसी भी धर्म का अनुयायी कर सकता है। खुदाई खिदमतगार संगठन के कार्यकर्ताओं ने भी धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने की गरज से यह यात्रा करने की योजना बनाई थी और जैसा कि विधान है इस परिक्रमा का समापन किसी मंदिर में ही होगा, फैसल खान की इस 84 कोसी परिक्रमा का समापन भी नंदगांव के नन्द बाबा मंदिर में हुआ और उन्होंने मंदिर के पुजारी की पूर्व अनुमति के बाद वहीँ नमाज पढ़ कर अपनी यात्रा का समापन भी किया।
इस बाबत फैसल खान ने खुद ही 29 अक्टूबर को अपनी फेसबुक में यह लिखा था। “Yatra Completed # बृज 84, कोस परिक्रमा यात्रा” सर्वधर्म समभाव प्रेम, करुणा और धार्मिक सहष्णुता के लिए 26 से 29 अक्तूबर @यात्रा का समापन नन्द गांव के “नन्द बाबा मंदिर” में हुआ। ब्रज की ख़ाक में घूमते हुए मुहब्बतों और इनायतों से भरा सफर खत्म हुआ।”
हैरानी की बात यह है कि कई दिन तक चली खुदाई खिदमतगार की इस यात्रा के दौरान कहीं भी किसी ने किसी तरह का विरोध नहीं किया उलटे हर किसी ने आगे बढ़ कर उनका स्वागत किया। इस यात्रा को लेकर फेसबुक समेत सोशल मीडिया के अनेक माध्यमों से जो जानकारी पता चली उसके मुताबिक़ इस पूरी यात्रा के दौरान कहीं ये यात्री मंदिर में माथा टेकते हुए दिखाई दे रहे हैं तो कहीं संत रामनामी दुशाला ओढ़ा कर और गले में फूलों की माला पहना कर उनका स्वागत करते दिखाई दे रहे हैं।
हर जगह उनका प्रेम से स्वागत ही हुआ। यात्रा के दौरान सोशल मीडिया के माध्यम से ऐसे सन्देश भी लगातार उनकी तरफ से पर आते रहे जिसमें बृज भूमि को प्रेम का संदेश देने वाली, सब को जोड़ने वाली भूमि मानते हुए, सहिष्णुता प्रेम मोहब्बत का संदेश देने की बात कही गई थी। इस तरह के सन्देश के साथ ही चार दिन चली यह यात्रा 29 अक्टूबर 2020 को नंद बाबा के मंदिर में समाप्त हुई।
यात्रा की ओर से संदेश था कि “मंदिर देखने के बाद नमाज का समय होने पर उन्होंने अनुमति लेकर वही नमाज अदा की।” यह यात्रा के संदेश और भारतीय साधारण जन-मानस की आपसी सहिष्णुता का प्रतीक है। ऐसे में कोस परिक्रमा के बाद मंदिर में नमाज अदा करने वाले फैसल खान और उनके साथियों की गिरफ्तारी को निंदनीय ही कहा जाएगा।
खुदाई खिदमतगार की ओर से लगातार विभिन्न यात्राओं का आयोजन किया जाता रहा है। जिसमें सब को जोड़ने की बात, प्रेम-विश्वास बढ़ाने की बात का प्रचार किया गया है। खुदाई खिदमतगार सभी धर्मों के संतों से भी जाकर मिलता रहा हैं। काफी संत दिल्ली में जामिया नगर स्थित “अपना घर” में आते रहे हैं। देश भर से विभिन्न धर्मों के तमाम युवा शांति-भाईचारे का संदेश “अपना घर” से लेते रहे हैं।
सीमान्त गांधी “खान अब्दुल गफ्फार खान” द्वारा स्थापित “खुदाई खिदमतगार” के साथी इस तरह की यात्रा के माध्यम से देश के संविधान को संजीवनी देने का काम कर रहे हैं। इस तरह की यात्राएं सांप्रदायिक ताकतों को शूल की तरह चुभती हैं इसीलिए वो हर उस उस व्यक्ति को समूह को अपने निशाने पर ले जाकर आपसी सद्भाव की ऐसी कोशिश करते हैं और ऐसे लोगों को किसी भी तरह के झूठे इल्जाम लगा कर उनकी आवाज बंद करने की कोशिश करते हैं।