कोविड -19 रिकवरी में एसडीजी की प्रासंगिकता और विकेन्द्रीकरण


हाल ही में जारी विश्व बैंक के ड्राफ्ट इंडिया डेवलपमेंट अपडेट (आईडीयू) ने यह चेताया है कि भारत अपने आर्थिक सुधारों के कारण गरीबी के खिलाफ जो लड़ाई सफलतापूर्वक जीत रहा था, उसे कोविड-19 महामारी ने भारी क्षति पहुंचाई है। यह रिपोर्ट आगे यह भी कहती है कि दरअसल अब यह आशंका है कि कहीं देश गरीबी के दलदल में वापस ना फिसल जाए।


naagrik news naagrik news
मत-विमत Updated On :

नई दिल्ली। सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के महत्व और भारत जैसे विकासशील देश में उन्हें समय पर प्राप्त करने की तात्कालिकता पर जोर देने की आवश्यकता नहीं है। वैसे तो सभी सत्रह एसडीजी लक्ष्य ( SDGs) देश के सर्वांगीण विकास से जुड़े हुए हैं, पर कोविड-19 से उत्पन्न परिस्तिथियों में कुछ लक्ष्यों की प्राथमिकता अपेक्षाकृत अधिक हो जाती है। 

हाल ही में जारी विश्व बैंक के ड्राफ्ट इंडिया डेवलपमेंट अपडेट (आईडीयू) ने यह चेताया है कि भारत अपने आर्थिक सुधारों के कारण गरीबी के खिलाफ जो लड़ाई सफलतापूर्वक जीत रहा था, उसे कोविड-19  महामारी ने भारी क्षति पहुंचाई है। यह रिपोर्ट आगे यह भी कहती है कि दरअसल अब यह आशंका है कि कहीं देश गरीबी के दलदल में वापस ना फिसल जाए। 

यहां यह गौरतलब है कि 2011 और 2015 के बीच, अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा के आधार पर, भारत में गरीबी दर 21.6% से घटकर 13.4% हो गई थी। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए एसडीजी, विशेषतः एसडीजी 1, 2, और 3, की तेज़ दर से लक्ष्य प्राप्ति ना केवल एक वैश्विक प्रतिबद्धता मात्र है बल्कि अब तो यह हमारी आतंरिक, आधारभूत आवश्यकता बन गई है।

भारत के नीति आयोग ने 13 जुलाई को सतत विकास पर संयुक्त राष्ट्र के उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (the United Nations High Level Political Forum on Sustainable Development) को अपनी दूसरी स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा 2020 (India VNR 2020) प्रस्तुत की। यह रिपोर्ट बताती है कि एसडीजी के लिए भारत की प्रतिबद्धता राष्ट्रीय विकास एजेंडा से जुड़े ‘सबका साथ सबका विकास’ के वाक्य में परिलक्षित होती है। 

भारतीय दृष्टिकोण को विस्तारपूर्वक बताते हुए यह समीक्षा आगे कहती है कि भारत के एसडीजी ढांचे की नींव के पत्थर हैं- सशक्त भारत-सबल भारत, स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत, समग्र  भारत-सक्षम भारत, सतत भारत-सनातन भारत, एवं संपन्न भारत-समृद्ध भारत।

इस नज़रिये से भी अगर हम गौर करें तो एक बात स्पष्ट होती है कि इनमें से ‘सशक्त भारत-सबल भारत’,  ‘स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत‘, और  ‘समग्र भारत-सक्षम भारत‘ की सोच ही कोविड-19 की रिकवरी के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होगी। 

रिपोर्ट के अनुसार, एसडीजी लक्ष्य प्राप्ति और विकास की दिशा में केंद्र, राज्य, और केंद्रशासित प्रदेश सहकारी संघवाद (को आपरेटिवफेडरेलिस्म) के तहत आपसी सहयोग से काम करते हैं। वास्तव में हमारा एसडीजी इंडिया इंडेक्स साक्ष्यों के आधार पर, राज्य और जिला स्तरों पर प्रगति को मापता है।

पिछले चार महीनों में कोरोना वायरस महामारी के दौरान एक बात जो काफी उभरकर आ रही है कि केंद्रीय नीतियों और स्थानीय स्तर पर उनको लागू करने के बीच में एक बड़ा फासला है। 

एक बात साफ है कि चाहे वह कोविड-19 की रिकवरी से जुड़े प्लान हों या फिर एसडीजी लक्ष्य, सही मायनों में उनका असरकारक अमल स्थानीय स्तर पर, स्थानीय प्रशासनों द्वारा ही संभव है।  दूसरे शब्दों में, शासन और संसाधनों का वास्तविक विकेन्द्रीकरण, शहरों और ग्रामों के स्तर पर होना बेहद आवश्यक है, चाहे वह कोविड-19 से मुकाबले के लिए हो या फिर उससे रिकवरी के लिए या फिर वह हो एसडीजी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए।  

इसमें कोई संशय नहीं है कि हमारी फ्लैगशिप योजनाएं जैसे स्वच्छ भारत अभियान, राष्ट्रीय पोषण मिशन, और आयुष्मान भारत आदि बहुत कम समय में दूरगामी परिणाम दिखाने में सफल रहीं हैं। कोविड-19 महामारी के लिए आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज, फ्रंट-लाइन श्रमिकों के लिए व्यापक स्वास्थ्य कवरेज और सबसे कमजोर लोगों के लिए प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण सरकार के व्यापक जनकल्याणवादी दृष्टिकोण के उदाहरण हैं। परन्तु धरातलीय सच्चाई यह भी है कि इन सभी योजनाओं के बावजूद कई ज़रूरतमंद लोगों को समय पर सहायता नहीं मिली। इनकी एक बड़ी वजह है संसाधानों की वहां पर कमी जहाँ उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है।  यह ना केवल वित्तीय संसाधन हैं बल्कि इसके अतिरिक्त ये सम्बंधित हैं मानव संसाधनों से – उनकी कमी एवं उनकी क्षमताओं की कमी से। 

2013 में सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस अकाउंटेबिलिटी (CBGA) ने ‘विकास योजनाओं में धन का उपयोग कैसे हो?’ नामक एक शोध अध्ययन किया। इस शोध का उद्देश्य था चुनिंदा राज्यों में जिला स्तर पर छह विकास योजनाओं में वित्तीय संसाधनों के उपयोग का मूल्यांकन।

अध्ययन में सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम,निर्मल भारत अभियान, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और मनरेगा जैसी योजनाओं को परखा गया। अध्ययन में स्थानीय स्तर पर कई कमियां उभर कर आयीं जिनमें प्लानिंग गतिविधियों के लिए अपर्याप्त कर्मचारी, उनके क्षमतावर्धन पर कम ध्यान और योजना प्रक्रिया में सामुदायिक भागीदारी की कमी शामिल थी।  

कई बार ऊपर से दिए हुए आदेश अर्थहीन हो जाते हैं यदि उनके कार्यान्वय के लिए स्थानीय स्तर पर या तो लोग ही ना हों या जो हों भी उनमें क्षमता का अभाव हो। हर क्षेत्र में स्किलिंग तथा अपस्किलिंग पर इस समय ज़ोर है और सरकारी तंत्र के लोगों के लिए भी ये उतना ही ज़रूरी है। 

यह मात्र संयोग नहीं है कि एसडीजी 1 (गरीबी से मुक्ति), 2 (भूख की समाप्ति), और 8 (अच्छे रोज़गार) को प्राप्त करना कोविड-19 से उबरने में भी मदद करेगा और साथ ही इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोज़गार भी हैं।

इस तरह सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की यात्रा हमें कोविड-19 महामारी से लड़ने में भी मदद करेगी। 

एसडीजी को सामुदायिक एवं स्थानीय सरकारों के स्तर पर विकास योजना प्रक्रियाओं में एकीकृत करने के व्यापक प्रयासों को और अधिक सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। परन्तु इन सभी लक्ष्यों की समयबद्ध सफलता इस बात पर आधारित है कि सही मायनों में संसाधनों के विकेन्द्रीकरण पर ज़ोर दिया जाए और समाज के सभी वर्गों की इन अभियानों में सक्रिय रूप से सहभागिता हो।