सड़क, संसद और कोरोना


लोकसभा की बैठकों के लिए विज्ञान भवन में तैयारियों का सिलसिला शुरू कर दिया गया है। यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि कोरोना के लिए जरूरी सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए अधिकतम स्थान में संसद के दोनों सदनों की बैठकों का आयोजन किया जा सके। गौरतलब है कि लोकसभा की सदस्य संख्या के अनुरूप कोरोना दौर में इस कक्ष में संसद के इस सदन की बैठकों का आयोजन नहीं किया जा सकता।



राह चलते राहगीरों, दफ्तर में काम करने वाले बाबुओं और बड़े अधिकारियों से लेकर मंत्रियों और संसद सचिवालय के कर्मचारियों से लेकर सांसदों तक में कोरोना का भय समाया हुआ है। हर कोई ऑफिस जाने से पहले यह पड़ताल करा लेना जरूरी समझता है कि ऑफिस काम्प्लेक्स पूरी तरह कोरोना मुक्त तो है ना। कोई कोरोना को लेकर काम नहीं होने का बहाना बनाने लगता है तो कोई यह समझता है कि कोरोना का नाम लेकर अपनी लापरवाही, कामचोरी की जा सकती है। इसके साथ ही कोरोना ने रोजमर्रा के कामकाज का सिलसिला भी एकदम बदल दिया है। 

काम करने सिलसिला बदलने के मामले में देश की संसद भी किसी से पीछे नहीं है। संसद ने कोरोना को लेकर किस तरह का बदलाव करने की सोची है, इस पर चर्चा करने से पहले कुछ और बातों को भी जान लेना जरूरी होगा, बात लॉकडाउन के दौरान केंद्र के मंत्रालयों में अधिकारियों की कामचोरी और लापरवाही करने से शुरू की जा सकती है। लॉकडाउन के दौरान यह जुमला कुछ इस तरह अधिकारियों की जुबान से चिपक कर रह गया कि जब भी किसी काम के निर्धारित समयावधि में पूरा न होने का कारण अधिकारियों से पूछा जाता है वो कोरोना का बहाना बना देते हैं। 

अधिकारियों की जुबान का तकियाकलाम बन चुके इस यथार्थपरक मुहावरे का असर एक केन्द्रीय मंत्रालय के अधिकारियों में यहां तक देखने को मिला कि जब उनसे पिछले साल दिसम्बर (2019 दिसम्बर) में पूरा किये जाने वाले एक काम के बारे में पूछा गया तो भी उनका यही कहना था कि कोरोना की वजह से यह काम समय पर पूरा नहीं हो सका। इसकी जो वजह बताई गई और जो तर्क दिए गए वो भी इतने सटीक थे कि वरिष्ठ अधिकारी और मंत्री भी सहमत हुए बिना नहीं रह सके। उनके पास इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं था क्योंकि तर्क ही कुछ ऐसा था। काम न करने वाले अधिकारियों ने बताया, “उनकी तरफ से सारा काम किया जा चुका था, केंद्र की तरफ से राज्यों से सूचना मांगी गई थी। जब तक राज्यों से ये सूचना मिलती उससे पहले ही लॉकडाउन लागू हो गया, अब नए सिरे से राज्यों से सूचना देने को कहा गया है, मिलते ही इस पर काम शुरू हो जाएगा।”

इसी तरह केंद्र या राज्य सरकारों के मंत्रियों को लॉकडाउन काल में भी अपने ऑफिस जाना पड़ता था और अब भी जाना पड़ रहा है। ऑफिस जाने से मना भी नहीं कर सकते लेकिन जिस तरह अनलॉक शुरू होते ही कोरोना मरीजों की संख्या में आश्चर्यजनक तरीके से वृद्धि हो रही है उससे बचने का कुछ केन्द्रीय मंत्रियों ने यह उपाय खोज निकाला है कि वो अपने व्यक्तिगत ख़ुफ़िया सूत्रों से हर रोज यह पता लगाते हैं कि उनके ऑफिस काम्प्लेक्स में कोरोना का कोई केस तो नहीं आया है। मंत्री का खुफिया दूत रोज इसकी रिपोर्ट उनको देता है और जब किसी कोरोना केस के न होने की जानकारी मिलती है तभी मंत्री जी ऑफिस का रुख करते हैं।

केंद्र सरकार के कुछ ऐसे ही काम चोर लापरवाह अधिकारियों को ऐसा लग रहा था कि अगर एक बार लॉकडाउन हट गया तो काम का बोझ कम हो जाएगा। कम से कम  कोरोना और इसके इलाज, प्रबंध और क़ानून व्यवस्था से जुड़े काम तो राज्य सरकारों को शिफ्ट हो जायेंगे और केंद्र सरकार के अधिकारी सूकून से बैठ पायेंगे। इन अधिकारियों की उम्मीदों पर तब पानी फिर गया गया जब केन्द्रीय गृह मंत्री दो महीने का स्वास्थ्य लाभ लेने के बाद काम पर वापस आ गए। गृह मंत्री काम पर वापस ही नहीं आये बल्कि उन्होंने अपने काम की गति और मात्रा दोनों ही तेज भी कर दी, इससे उनके मंत्रालय के साथ ही केंद्र के अन्य मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों की भी नींद उड़ गई है। 

गौरतलब तथ्य है कि मार्च के पहले सप्ताह से ही केन्द्रीय गृह मंत्री अस्वस्थ हो गए थे और पूरे दो महीने तक उनका उपचार चलता रहा था। इसके बाद सवस्थ होने पर वो बड़ी तेजी के साथ सक्रिय हुए हैं। कुल मिला कर हालात कुछ ऐसे बनगए हैं कि कोरोना के बहाने कामचोरी और लापरवाही के नमूने कुछ ज्यादा ही मिलने लगे हैं। पर इसके साथ ही कुछ मामले वास्तव में गंभीर हैं जिनको कोरोना की वजह से काम करने की शैली, स्थान और समय के साथ ही और भी बहुत तरीके के बदलाव करने पड़े हैं ।ऐसे ही गंभीर मामलों में संसद के मानसून सत्र के लिए किया जाने वालाबदलाव भी एक है।

संसद का मानसून सत्र कब से होगा और कब तक चलेगा,अभी इसको लेकर अधिकृत रूप से सरकार और संसदीय सचिवालयों की तरफ से कोई जानकारी नहीं दी गई है,लेकिन संसदीय परम्परों का तकाज है कि हर साल संसद के दोनों सदनों- लोकसभा और राज्य सभा के औसतन तीन सत्र अवश्य होते हैं। संसद के साल में तीन बार होने वाले ये सत्र हैं-बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र। जनवरी के अंतिम सप्ताह से शुरू होने वाला संसद का बजट सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से होती है और यह सत्र दो चरणों में समाप्त होने वाला यह संसद का सबसे अधिक समय तक चलने वाला सत्र होता। इस सत्र का समापन मई के पहले या दूसरे सप्ताह में होता है। 

इसके बाद जुलाई के तीसरे सप्ताह से संसद के मानसून सत्र की शुरुआत होती है और यह सत्र करीब एक महीने तक चलता है। इस सत्र के बाद नवम्बर के दूसरे या तीसरे सप्ताह में किसी दिन संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत होती है और एक महीने तक चलने वाले संसद के इस सत्र को साल का अंतिम सत्र भी कहा जाता है। इस साल संसद का मानसून सत्र इसलिए भी महत्वपूर्ण कहा जाएगा क्योंकि पिछले साल मई के महीने में ही सत्रहवीं लोकसभा के गठन के बाद यह इस लोकसभा का दूसरा मानसून सत्र होगा इससे पहले मार्च के अंतिम सप्ताह में ही सत्रहवीं लोकसभा के बजट सत्र की कार्यवाही का कोरोना संकट के चलते अधबीच ही समापन करना पड़ गया था।

हालात तो अभी भी वैसे ही हैं जैसे उस समय थे जब सत्रहवीं लोकसभा के बजट सत्र के समापन के मौके पर थे लेकिन संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिस्थितियों के अनुरूप बदलाव करते हुए संसदीय व्यवस्था को जारी रखना जरूरी माना जाता है इसलिए इस बार बड़े बदलाव के साथ संसद का मानसून सत्र समय पर संचालित करने की तैयारियां सरकार और संसदीय सचिवालय दोनों ही ने शुरू कर दी हैं। मानसून सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से नहीं होती इसलिए संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष की इस काम के लिए जरूरत नहीं होगी। इस कक्ष में इस बार राज्य सभा की बैठकें होंगी और लोकसभा की बैठकों के लिए विज्ञान भवन  में तैयारियों का सिलसिला शुरू कर दिया गया है।

 यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि कोरोना के लिए जरूरी सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए अधिकतम स्थान में संसद के दोनों सदनों की बैठकों का आयोजन किया जा सके। गौरतलब है कि लोकसभा की सदस्य संख्या के अनुरूप कोरोना दौर में इस कक्ष में संसद के इस सदन की बैठकों का आयोजन नहीं किया जा सकता। इसी तरह राज्य सभा की बैठकों का आयोजन भी राज्यसभा कक्ष से नहीं हो सकता इसलिए इस सदन की बैठके केन्द्रीय कक्ष में कराने की योजना है। पता यह भी चला है कि लोक सभा की कारवाई का सीधा प्रसारण लोकसभा टेलीविज़न के स्थान पर दूरदर्शन करने वाला है। वजह यह है कि दूरदर्शन के कमरे और अन्य उपकरण विज्ञान भवन में पहले से ही फिट हैं।