
हिंदी में विज्ञान लेखन,मानसून के विलम्ब से होने वाले नुक्सान,गलत दवा के उपयोग पर
प्रतिबन्ध,स्कूल में छोटे बच्चों की सुरक्षा कितनी जरूरी, कंप्यूटर के लगातार उपयोग से होने वाले
खतरे,रहस्यमय
क्यों लगता है विज्ञान और घरेलू नुस्खों से कैसे कर सकते हैं जानलेवा बीमारियों से
बचाव ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो आज आम आदमी की रोजमर्रा की जरुरत के हिसाब से बहुत
करीब का रिश्ता रखते हैं और ऐसे मुद्दे हैं जिनके बारे में अद्यतन जानकारी मिलनी
रहनी चाहिए। यह काम मीडिया ही कर सकता है लेकिन मीडिया की प्राथमिकताएं बदली हुई
हैं। इसलिए चाहते हुए भी मीडिया या तो ऐसे मुद्दों पर अपना ध्यान उतनी गहराई और
गंभीरता से नहीं दे पाता जितनी जिम्मेदारी के साथ उसे देना चाहिए या फिर स्थाना
भाव के कारण भी ऐसे समाचार मीडिया में जगह नहीं बना पाते।
इस मामले में किसी भी मीडिया मंच को अपवाद नहीं माना जा सकता सभी की
परिस्थितियां और परेशानियां कमोबेस एक जैसी हैं चाहे वो समाचार पत्र हों या फिर
रेडियो और टेलीविज़न जैसे इलेक्ट्रोनिक चैनल। इस तरह के विषयों को मीडिया में जगह न
मिलने, कम जगह
मिलने या वांछित जगह न मिलने के अनेक कारणों में एक सबसे बड़ा कारण यह भी है कि आज
हर जगह राजनीति बुरी तरह हावी है। गांव-देहात से लेकर, जिला- शहर, कस्बे-महानगर राज्य और देश से लेकर परदेश
तक सभी जगह इसी राजनीति के मायाजाल ने कुछ इस तरह की परिस्थितियां बना दी हैं कि
राजनीति के इतर विषयों पर या तो चर्चा ही नहीं हो पाती या फिर उनके लिए समय ही
नहीं बच पाता। इसी वजह से इन विषयों से जुडी खबरें या जानकारियां समाचार जगत की
सुर्खियां नहीं बन पातीं।
ऐसी ही परिस्थितियों के चलते पिछले
दिनों भारतीय भाषाओं में विज्ञान लेखन के हालत पर एक वेबिनार के आयोजन का समाचार
भी कहीं अधर में ही लटक कर रह गया। विज्ञान लेखन आज समय की सबसे बड़ी जरूरत है। अंग्रेजी
और दूसरी विदेशी भाषाओं में तो वैज्ञानिक चिंतन को लेकर काफी कुछ पढ़ने को मिल जाता
है लेकिन हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में इसका जबरदस्त अभाव है जिसकी वजह से दूर
दराज के गांव और कस्बे में बैठे लोगों के साथ ही महानगरों में बैठे वो लोग भी समय
सापेक्ष जानकारियों से वंचित रह जाते हैं।
कोरोना महामारी के इस जटिल दौर में तो
भारतीय भाषाओं में विज्ञान लेखन की बारीकियों पर और अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
इस वेबिनार का आयोजन भाषा के प्रचार- प्रसार और विज्ञान लेखन से जुडी तीन
संस्थाओं -विज्ञान प्रचार-प्रसार, वैश्विक हिंदी सम्मेलन और हिंदुस्तानी
भाषा अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था। हिंदी में वैज्ञानिक लेखन की
सम्भावनाओं पर विज्ञान के जाने-माने हस्ताक्षर देवेंद्र मेवाड़ी ने अपना बीज भाषण
दिया था।
हिंदी में विज्ञान लेखन की चुनौतियों और उनका समाधान करने के सन्दर्भ में देवन्द्र मेवाड़ी ने कुल मिला कर एक नया दृष्टिकोण सामने रखा था। विज्ञान को लेकर जो कुछ कहा उस में बहुत सी बातें सभी के लिए एकदम नई थीं। मसलन उनका यह कहना सभी के लिए एक अलग तरह का अनुभव भी था कि विज्ञान लेखन कोई दुरुह किस्म का काम नहीं है। खासकर उन लोगो के लिए जो किसी न किसी तरह का लेखन भाषा और साहित्य के सन्दर्भ में करते रहते हैं। मेवाड़ी के अनुसार जिस प्रकार एक वैज्ञानिक, वैज्ञानिक होते हुए भी ललित साहित्य लिख सकता है ठीक उसी प्रकार कोई साहित्यकार चिंतक लेखक तर्कशील बुद्धि पर तथ्यों का प्रयोग करते हुए विज्ञान लेखन भी कर सकता है।
गौरतलब है कि मेवाड़ी न केवल एक विज्ञान
लेखक हैं बल्कि विज्ञानं के साथ ही साहित्य और सामाजिक विषयों पर भी उनकी
दृष्टि बहुत पैनी और साफ़ भी है। विज्ञान लेखन के साथ ही मेवाड़ी ने अपने जीवन के
चार से ज्यादा दशक तक बैंक के साथ भी काम किया है। इसलिए समाज से जुड़े तमाम
मुद्दों पर उनकी पकड़ तेज भी है और साफ़ भी। इस वेबिनार में मेवाड़ी ने अपने जीवन के
इन्हीं अनुभवों के आधार पर इस विषय को एकदम अलग और सर्वथा नए सन्दर्भों की एकदम
साफ़ और तर्क आधारित व्याख्या भी की उन्होंने देश के कई बड़ी साहित्यकारों की
द्वारा विज्ञान लेखन की जानकारी भी दी।
मेवाड़ी के अलावा इस वेबीनार में वरिष्ठ
विज्ञान पत्रकार प्रमोद भार्गव ने भी हिस्सा लिया। भार्गव मूलतः वैज्ञानिक नहीं
हैं लेकिन विज्ञान के प्रति दिलचस्पी के चलते ही बचपन से विज्ञान की पुस्तकें पढ़ने
का शौक था। यही शौक बाद में विज्ञानं लेखन में बदल गया उनके अनुसार यही वजह है कि
आज वैज्ञानिक न होते हुए भी विभिन्न वैज्ञानिक विषयों पर उनके लेख देशभर के
विभिन्न समाचार पत्रों में निरंतर प्रकाशित होते हैं औरऐसे ही कई विषयों पर उनकी
पुस्तकें भी आ चुकी हैं।
सोशल मीडिया पर विज्ञान प्रचार प्रसार
के अंतर्गत विविध सामग्री प्रस्तुत कर रहे राहुल खटे की इस वेबीनार के आयोजन में
प्रमुख भूमिका रही। इस आयोजन में विभिन्न क्षेत्रों के अनेक महत्वपूर्ण लोग
उपस्थित रहे। इस मौके पर आयोजक संस्थाओं में से एक के वरिष्ठ सदस्य डॉ. एम एल गुप्ता ‘आदित्य’ ने
बताया कि वैश्विक हिंदी सम्मेलन के माध्यम से किस प्रकार वैज्ञानिक साहित्य की
जानकारी विद्यार्थियों और विश्वविद्यालयों तक पहुंचाई जा सकती है। हिंदुस्थानी
भाषा अकादमी अध्यक्ष के सुधाकर पाठक ने उनकी संस्था के माध्यम से हिंदी के
शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए किए जा रहे देशव्यापी प्रयासों की जानकारी दी,
साथ
ही संस्था के माध्यम से गठित भारतीय भाषाओं के संगठन ‘शिक्षक प्रकोष्ठ’
के
विषय में भी बताया, जिसमें लगभग 600 शिक्षक जुड़े हुए हैं ।