आठ दशक का जीवन वृत्त पूरा कर एक भगवा वस्त्र धारी सामाहिक सन्यासी विगत शनिवार देश की राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा के एक महानगर गुरुग्राम के विशेष आश्रम में पंचतत्व में विलीन हो गया। लोग उन्हें स्वामी अग्निवेश के रूप में जानते थे लेकिन उन्होंने अपने जीवन में कई वेश धरे हुए थे। कहना गलत नहीं होगा कि मान्यता के अनुरूप जिन पांच प्रमुख तत्वों से मिल कर मनुष्य का जीवन बनता है और अंत में इंसान इन्हीं पंचतत्वों में विलीन हो जाता है, कम से कम इतने रूप या वेश तो स्वामी अग्निवेश ने अपने जीवन में धारण किये ही थे।
सामजिक विद्रूपताओं, विषमताओं, इंसान के सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक और मानसिक तनाव और शोषण के खिलाफ जंग लड़ने वाले स्वामी अग्निवेश एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ ही विचारक चिन्तक, राजनीतिज्ञ, अभिनेता और टेलीविज़न पत्रकार भी थे। राजनीतिज्ञ के रूप में उन्होंने अपनी एक पार्टी भी बनाई, हरियाणा में चुनाव लड़ा और जीता फिर राज्य में मंत्री भी रहे। केंद्र में भी जनता पार्टी के पदाधिकारी भी रहे। वो धार्मिक नेता भी थे और समाज सुधारक भी इसके साथ ही टेलीविज़न शो बिग बॉस के प्रतिभागी के रूप में भी स्वामी अग्निवेश ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी और देश के प्रथम संसदीय चेनल लोकसभा टीवी के “विचार मंथन” नामक एक कार्यक्रम के एंकर के रूप में भी स्वामी अग्निवेश ने सामाजिक चेतना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
21 सितंबर 1939 आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में वेपा श्याम राव के रूप और नाम से जन्मे स्वामी अग्निवेश को अपने जीवन में पैदा होते ही संघर्ष का सामना करना पड़ गया था। चार साल की उनकी उम्र में ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। उनका लालन पालन उनके नाना ने किया जो कि तत्कालीन रियासत ‘शक्ति’ के दिवान थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी स्वामी अग्निवेश कोलकाता के प्रसिद्ध सेंट जेवियर्स कॉलेज में मैनेजमेंट के अध्यापक रहे। कोलकाता में ही उन्होंने प्रसिद्द वकील सब्यसाची मुख़र्जी के सानिध्य में वकालत भी की। मुखर्जी बाद में भारत के चीफ जस्टिस भी रहे।
स्वामी अग्निवेश आर्य समाज में शामिल होने 1968 में हरियाणा गए थे जहां उन्होंने 25 मार्च 1970 को संन्यास 1970 में अग्निवेश ने आर्य सभा नाम की राजनीति पार्टी बनाई थी। 1977 में वह हरियाणा विधासनभा में विधायक चुने गए और हरियाणा सरकार में शिक्षा मंत्री भी रहे। इसी क्रम में स्वामी अग्निवेश ने 1981 में बंधुआ मुक्ति मोर्चा नाम के संगठन की स्थापनी भी की थी। स्वामी अग्निवेश हरियाणा के एक ऐसे मंत्री भी थे जिसने मजदूरों पर लाठी चार्ज की एक घटना के बाद सरकार और पार्टी से ही इस्तीफ़ा नहीं दिया बल्कि राजनीति से ही किनारा कर लिया था । स्वामी अग्निवेश अपने जीवन के अंतिम इन दिनों में भी माओवादियों और भारत सरकार के बीच बातचीत की कोशिश कर रहे थे उनका का मानना थाकि भारत सरकार और माओवादी दोनों के पास आपस में बातचीत कर समस्या का समाधान खोजने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं है।
स्वामी अग्निवेश एक ऐसे भावाधारी थे जिन्होंने भारत के बंधुआ मजदूर सरीखे वंचितों को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग जैसे विश्वमंच पर भी आवाज दी थी। इस वैश्विक संस्था के एक कार्यकारी समूह के सामने उन्होंने आज से करीब चार दशक पहले भारत में तब प्रचलित बंधुआ मजदूरी की प्रथा जिसे दास प्रथा भी कहा जाता है, के बारे में अपनी गवाही दी थी। अब न तो जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र का वह मानवाधिकार उच्चायोग बचा है और न ही कार्यकारी समूह बचा रह गया है।
अग्निवेश ऐसे भगवाधारी नहीं थे जो जीवन की जिम्मेदारियों से डर कर और मुंह छिपा कर संन्यासी बन जाते हैं। इसके विरीत उन्होंने तो सामाजिक जिम्दारियों के निर्वहन के लिए भगवा बाना धारण किया था ताकि घर-परिवार की रोज मर्रा की चक-चक से अलग रह कर समाज के शोषित और वाचित तबके के लिए अधिक समय दिया जा सके। शायद यही वजह थी कि एक रियासत के दीवान के पोते के रूप में जन्म लेने और कम उम्र में पिता का साया सर से उठ जाने के बाद स्वामी अग्निवेश ने अपना पूरा जीवन समाज के दलित, वंचित और शोषित तबके की सेवा में लगा दिया था और बाद में यही सेवा उनकी एक पहचान भी बन गई थी।
30 साल की उम्र में संन्यास लेने वाले इस सामाजिक सन्यासी ने स्वामी विवेकानंद के पथ का अनुसरण करते हुए अपने जीवन में राजनीति से लेकर सामाजिक चेतना, मनोरंजन और पत्रकारिता के जिस क्षेत्र मेंन भी काम किया उसका मुख्य आधार उनकी यह सामाजिक चेतना ही थी। लोकसभा टीवी के एक एंकर के रूप में भी स्वामी अग्निवेश ने सामाजिक बोध के इसी दायित्व का निर्वहन अपने कार्यक्रम विचार मंथन के माध्यम से किया था।
स्वामी अग्निवेश ने अपने हिन्दुत्व को सामाजिक विश्वास के साथ जोड़ा। इसे वे वैदिक समाजवाद या वैदिक सोशलिज्म कहा करते थे। उनकी सक्रियता उन्हें सड़कों तक ले गयी। स्त्री भ्रूण हत्या से लेकर बाल गुलामी जैसे मुद्दों पर अक्सर उन्होंने देशभर में अथक अभियान चलाए और ऐसा करते हुए कई बार घातक हमलों में वे बालबाल बचे। अखिल भारतीय हिन्दू महासभा की ओर से उनके सिर पर 20 लाख का इनाम रखा जाना और झारखण्ड में लगभग मॉब लिंचिंग जैसी घटना में बचनिकलना ऐसी घटनाओं में शामिल हैं।
उनका एक्टिविज्म उन्हें जेल तक भी ले गया अग्निवेश ने कभी भी अपने विचारों को नरम होने नहीं दिया और अंत तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया कि उनके रुख में कोई नरमी आयी हो।अंधविश्वास और कट्टरता के आलोचक के तौर पर अग्निवेश ने कई हिन्दू समूहों को अपने प्रगतिशील बयानों से नाराज भी किया। मसलन पुरी जगन्नाथ मंदिर को गैर हिन्दुओं के लिए भी खोलने और अमरनाथ में बर्फ से बनने वाले शिव लिंग को सिर्फ ‘बर्फ का टुकड़ा’ कहने के उनके बयानों से हिन्दू समूह बुरी तरह नाराज हुए थे।