कोरोना महामारी का प्रकोप कम हुआ है पर अभी यह खत्म नहीं हुई है। जानकारों का कहना है कि यदि अगस्त तक 70 प्रतिशत भारतीय आबादी को वैक्सीनशन नहीं हुई तो हमें और अधिक भयंकर स्थिति के लिए तैयार रहना होगा।
क्या इसका मुकाबला इस बात से होगा कि बेड्स, ऑक्सीजन, दवाइयां तथा अन्य सुविधाएं अब पहले से बेहतर है? कितना अच्छा हो कि जब इनकी जरूरत ही नहीं पड़े और लोग संक्रमित ही न हो। पर इसकी संभावना अब कम ही लगती है।
वैक्सीनशन का आलम यह है कि इसके प्रति जागरूकता में बहुत ही कमी है। अनपढ़ तो छोड़िए पढ़े-लिखे लोग भी स्वयं को टीका लगवाने में आगे नहीं आ रहे हैं।
कुछ का कहना है कि कोरोना कोई बीमारी नहीं है अपितु सरकार व एजेंसियों का फैलाया भ्रम है। ऐसे लोग टीकाकरण के बारे में भी ऐसी ही बातें करते है कि यह प्रजनन व पौरूष शक्ति को कम करती है। ग्रामीण इलाकों में यह भी दूषित प्रचार है कि सरकार वृद्ध लोगों को टीका लगवाकर इसलिए मरवाना चाहती है ताकि उन्हें वृद्धावस्था पेंशन देने से बचा जाए। दूसरी ओर वैक्सीनशन की कमी ने भी एक अविश्वास पैदा किया है।
लोगों का यह भी कहना है कि यह बीमारी मेहनतकश को कुछ नहीं करती यह अमीरों को ही लगती है। इस बारे में किसान आंदोलन में इसका न पाना उनका आधार है। पर शासन ने भी इस आधार को मजबूत करने में कोई कमी नही छोड़ी। उसके लिए उनके साथ बातचीत न करने का अहंकार व दम्भ काफी हावी है। सरकार जनता की है जिसे असहमति का भी निराकरण करना होता है।
राजनैतिक सभाएं, आयोजन व जुलूस और उन्हें भी भारत के माननीय प्रधानमंत्री व अन्य केंद्रीय मंत्रीगण, राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बिना किसी कोरोना प्रोटोकॉल के शिरकत ने भी कोरोना के विरुद्ध लड़ाई को कमजोर किया है।
धार्मिक आयोजनों ने भी इस महामारी को बढ़ावा दिया है। कुम्भ-हरिद्वार तथा अब कांवड़ यात्रा बेशक आपकी चुनावी जीत को तो भरोसा देगी परन्तु इसकी मार भारतीय जन जीवन पर देगी। थोड़ी ही छूट होने पर पर्यटन स्थलों पर भारी भीड़ भी किसी भी खतरे की घण्टी से कम नहीं है।
भारतीय संविधान में एक कल्याणकारी शासनव्यवस्था का संकल्प है। देश की 80 प्रतिशत गरीब आबादी किसी भी प्रोटोकॉल का पालन तब तक नहीं कर सकती जब तक उनके भूखे पेट को भरने की गारंटी न हो। अन्नदाता किसान सड़कों पर, अतिरिक्त अनाज गोदामो में और रोटी से वंचित लोग घरों में यह तुकबंदी नहीं चल सकती।
मैं तथा मेरा परिवार इस कोरोना आपदा का भुक्तभोगी है। पिछले एक साल में लगभग 10 लोगों को हमने खोया है। दुर्भाग्यवश ये वे लोग थे जिनका टीकाकरण किसी न किसी कारण से नहीं हो पाया था।
जागरूक व सचेतन सरकार व जनता ही महामारी की कथित तीसरी वेव को रोक पाएगी। जिसके लिए सामूहिक इच्छाशक्ति व प्रयास बहुत जरूरी है।
(लेखक सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं।)