भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोरा ने विगत शुक्रवार 25 सितम्बर 2020 को बिहार विधान सभा के चुनाव की तिथियों का एलान क्या किया ऐसा लगा जैसे सरकार (चुनाव आयोग) के साथ ही राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को ही नहीं हमारे देश के भोंपू मीडिया को भी कोई बहुत बड़ा काम लिया गया हो।
अभी तक काम की तलाश में भटक रहे इस मीडिया के पास सरकार की लाज बचाने के लिए ले-देकर फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत का ही एक मुद्दा बचा हुआ था। मौत का यह सिलसिला पहले तो आत्म हत्या को हत्या का भ्रम समझ कर उसकी पड़ताल में उलझा रहा। फिर उस हत्या के कारणों की तलाश में फिल्म उद्योग से ड्रग माफिया के कारोबार और इस कारोबार से होने वाले कथित नुक्सान तक पहुंच गया।
बात दरअसल आत्महत्या बनाम हत्या वाले इस मामले को बिहार चुनाव की देहरी तक पहुंचाने की थी ताकि राजपूतानी शान का सन्दर्भ इस चुनाव से जोड़ा जा सके। सरकारी कारिंदों को सरकारी पार्टी का ध्यान रखते हुए ऐसा इसलिए भी करना था क्योंकि राजनीति के इस शहीद का रिश्ता बिहार से जो था। अब बिहार चुनाव का बिगुल बज गया है और काम की बागडोर पार्टी नेताओं के हाथ में चली गई है और यह देखना अब नेताओं का काम है कि आत्महत्या बनाम हत्या के इस पेचीदा मामले को चुनाव में इस्तेमाल कैसे किया जाए।
नेता चुनाव की जो भी, जैसी भी तरकीब बनायेंगे उसे प्रचारित करना इस भोंपू मीडिया का एक बड़ा काम होगा। बिहार विधान सभा के चुनाव आयोग की घोषणा के मुताबिक़ तीन चरण में 28 अक्टूबर, 3 और 7 नवम्बर 2020 को संपन्न होने हैं और 10 नवम्बर को वोटों की गिनती के बाद परिणाम की घोषणा भी कर दी जायेगी। सब कुछ ठीक रहा तो दिवाली और छठ के पर्व से पहले ही राज्य में नई विधान का गठन होने के साथ ही नई सरकार भी वजूद में आ जायेगी।
भोंपू मीडिया का एजेंडा पहले से तय है उसे एक विशेष पार्टी और गठबंधन के पक्ष में हवा बनाने और उसके उम्मीदवारों को चुनाव में जितवाने के लिए काम करना है। इसलिए मीडिया पहले ही दिन से ओने काम में लग गया है। इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि जिस दिन मुख्य चुनाव आयुक्त ने बिहार चुनाव की तिथियों का एलान किया था उसी दिन से भोंपू मीडिया (टीवी) में होने वाली बहसों में एंकर और ख़ास विशेषज्ञ कुछ इस अंदाज में बात करने लग गए थे नीतीश कुमार के सामने कोई विकल्प नहीं है।
लालू जेल में हैं और उनके विकल्प का प्रतीक बने उनके दोनों बेटे तेजस्वी और तेज प्रताप नीतीश के सामने बच्चे हैं। इस मीडिया के अनुसार राजग विरोधी संप्रग आपसी कलह का शिकार है लिहाजा विकल्प के अभाव में बिहार की जनता के पास नीतीश के स्थान पर किसी और को सता दने का का कोई रास्ता ही नहीं बचा है। इसलिए सीटें चाहे पहले से कम मिलें लेकिन बिहार विधान सभा में इस बार भी नीतीश के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ही वापसी होगी।
कुछ इस अंदाज में भोंपू मीडिया ने अपना प्रचार शुरू कर दिया है। ये तो रही माहौल बनाने की बात, इसके बाद शुरू होगा प्रथम चरण में होने वाले चुनाव का विश्लेषण, उम्मीदवारों का पोस्ट मार्टम और हार जीत के दावे। यह सिलसिला तीन चरण के चुनाव में अलग अलग तरीके से संपन्न होगा और उसके बाद होगा चुनाव पूर्व सर्वे और ऐसी ही दूसरी गतिविधियों का दौर। चुनाव तक सुशांत सिंह राजपूत भी किसी न किसी रूप में चर्चा के केंद्र में रहेंगे ही, उसके बाद चुनाव के नतीजों के आधार पर हार-जीत का एक बार फिर अंत में भी विश्लेषण किया जाएगा। इसके साथ ही सब लोग यह भूल जायेंगे कि बिहार के किसी सुशांत नाम के प्रतिभाशाली कलाकार ने आत्महत्या भी की थी या फिर उसकी ह्त्या की गई थी।
बहरहाल सबसे बड़ी बात यह है कि कोरोना महामारी के वैश्विक संकट दौर में दुनिया के किसी देश में इतने बड़े पैमाने मतदान होने जा रहा है। भारत में उत्तर प्रदेश के बाद आबादी, राजनीति, भूगोल, इतिहास और क्षेत्रफल के लिहाज से बिहार देश का दूसरे नंबर का प्रमुख और महत्वपूर्ण राज्य माना जाता है। दुनिया के कई देश तो आबादी और क्षेत्रफल के हिसाब से इसके आधी और कुछ तो चौथाई भी हैं। इसलिये बिहार विधान सभा के चुनाव का इस समय प्रादेशिक और राष्ट्रीय ही नहीं वैश्विक महत्त्व भी है।
कोरोना ने जीवन का सिलसिला ही बदल कर रख दिया है। शायद इसीलिए चुनाव तिथियों की घोषणा करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा भी था कि कोरोना वायरस ने हमारे जीने का तरीका बदल दिया है। सामाजिक और आर्थिक जिंदगी बदल गई है। कोरोना वायरस की वजह से दुनिया भर 70 से ज्यादा देशों में चुनाव टाल दिए गए। लेकिन भारत ने नागरिकों का लोकतांत्रिक अधिकार कहे जाने वाले इस अधिकार की रक्षा करते हुए किसी भी हालत में चुनाव की इस प्रक्रिया को बचा कर रखने और बना कर रखने का संकल्प लिया है।
बिहार विधानसभा चुनाव का कार्यकाल 29 नवंबर को खत्म हो रहा है। चुनाव आयोग की घोषणा के अनुसार पहले चरण में 28 अक्टूबर 2020 को 16 जिलों की 71 सीटों पर मतदान होगा। दूसरे चरण में तीन नवंबर 2020 को 17 जिलों की 94 सीटों पर चुनाव होगा और राज्य विधान सभा की शेष सीटों के लिए 7 नवम्बर को चुनाव कराये जायेंगे। 10 नवंबर 2020 को मतगणना के बाद चुनाव परिणाम घोषित किये जायेंगे। मुद्दों की बात करें तो इस चुनाव में विपक्ष बेरोजगारी को मुख्य मुद्दा बनाने की पूरी कोशिश करेगा।
आमतौर पर बिहार के चुनाव में नेताओं के ऊपर निजी हमले, साम्प्रदायिक रंग, आरक्षण, विकास आदि की बातें मुद्दे बनते रहे हैं। लंबे समय बाद बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल आरजेडी बेरोजगारी को मुद्दा बनाने की कोशिश में है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि कोरोना संकट की वजह से करीब 26 लाख बेरोजगार युवा राज्य में वापस लौटे हैं। इन लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट है। इसमें से ज्यादातर बेरोजगार 30 साल की उम्र के हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बेरोजगारी को मुद्दा बनाने की कोशिश में हैं।
बेरोजगारी के अलावा संसद द्वारा मानसून सत्र में पारित किये गए विवादास्पद किसान विधेयक, मजदूर विधेयक भी विपक्ष की नाराजगी का सबब बनेंगे। बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग भी चुनाव का एक मुद्दा बन सकती है। यही नहीं विपक्ष इस कोशिश में भी रहेगा कि कोरोना काल की अव्यवस्था और बाढ़ समेत तमाम तरह की प्राकृतिक आपदा में हुए जान और माल की क्षतिपूर्ति का हिसाब भी चुनाव के बहाने सरकार से माँगा जाए। बिहार विधानसभा की कुल 243 सीट में से 38 सीटें अनुसूचित जाति के लिए और 2 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं।