ताइवान और जर्मनी ने कोरोना को कैसे हराया


जर्मनी भी उसी यूरोप महाद्वीप का ही एक देश है जिसके ब्रिटेन, इटली, स्पेन और रूस जैसे देश कोरोना वायरस का बुरी तरह शिकार हैं लेकिन जर्मनी ने समय रहते तात्कालिक कदम उठाते हुए इस संकट को काबू में कर लिया। इसके लिए जर्मनी को राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन जैसे उपायों का सहारा भी नहीं लेना पड़ा।



कोरोना वायरस के प्रकोप के ताजा दौर में अब हर रोज नई-नई बातें सुनने को मिल रही हैं। कभी इसके इलाज और दवा की खोज चर्चा में थी तो अब यह भी कहा जाने लगा है कि कोरोना का प्रकोप निकट भविष्य में ख़त्म होने वाला नहीं है। इसके प्रकोप का यह सिलसिला अभी लम्बे दौर तक चलता रहेगा। यूरोप और अमेरिका के कई वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने तो अब यह कहना भी शुरू कर दिया है कोरोना अब कभी भी इंसान की जिन्दगी से नहीं जाएगा। इसकी वजह भी इन वैज्ञानिकों के अनुसार यही है कि कोरोना का जन्म प्राकृतिक रूप से नहीं हुआ है बल्कि इसे प्रयोगशाला में तैयार और पैदा किया गया है इसलिए जब तक प्रयोगशाला में ही इसे ख़त्म करने की कोशिशें नहीं की जायेंगी इसका असर बना ही रहेगा।

यही बात हमारे भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी कही है। प्रसंगवश यह विवाद का विषय हो सकता है कि किस देश ने इस वायरस को अपनी प्रयोगशाला में तैयार किया है लेकिन विवादों के दौर में यह भी एक ओपन सीक्रेट (खुला तथ्य) है कि दुनिया की दो बड़ी शक्तियां अमेरिका और चीन इसके लिए एक दूसरे को दोषी ठहरा रही हैं। विश्व में अमेरिका के पक्ष में इस तरह की सहमति भी बनती दिखाई दे रही है। नितिन गडकरी का इशारा भी संभवतः इसी तरफ है कि चीन ने ही कोरोना वायरस तैयार किया है। बहरहाल ! हमारे चिंतन का यह विषय है ही नहीं कि कोरोना का जन्म प्राकृतिक रूप से हुआ है या फिर इसे प्रयोगशाला में तैयार किया गया है।

हमारी चिंता तो इसी बात को लेकर है कि कोरोना से बचाव का बेहतर तरीका क्या हो सकता है। अगर कुछ देश कम नुक्सान के साथ कोरोना के बेहतर इलाज और प्रबंधन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं तो दुनिया के सभी देशों को ऐसे देशों का अनुसरण करना ही चाहिए। क्योंकि कोरोना के साथ जीना फिलहाल इंसान की एक नियति बन चुकी है। इस लिहाज से देखें तो ताइवान के साथ जर्मनी ने भी इस मामले में एक मिसाल कायम की है। गौरतलब है कि जर्मनी भी उसी यूरोप महाद्वीप का ही एक देश है जिसके ब्रिटेन, इटली, स्पेन और रूस जैसे देश कोरोना वायरस का बुरी तरह शिकार हैं लेकिन जर्मनी ने समय रहते तात्कालिक कदम उठाते हुए इस संकट को काबू में कर लिया। इसके लिए जर्मनी को राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन जैसे उपायों का सहारा भी नहीं लेना पड़ा। 

गौरतलब है कि दो महीने पहले जब मार्च में जर्मनी की चांसलर मर्केल का यह बयान आया था कि उनके देश में 70 फीसदी लोग कोरोना वायरस का शिकार हो सकते हैं, तब वहां हाहाकार पैदा हो गया था क्योंकि जर्मनी की 70 फीसदी आबादी का मतलब वहां के करीब 6 करोड़ नागरिकों का कोरोना से संक्रमित होना हुआ। इसका एक मतलब तो यह भी हुआ कि जर्मनी के हालात भी यूरोप के कोरोना संक्रमित इटली, स्पेन, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों की तरह ही होने वाले हैं। एंगेला मर्केल का ऐसा कहना काफी हद तक ठीक था और लोगों का ऐसा सोचना भी गलत नहीं था क्योंकि तब जर्मनी में भी यूरोप के अन्य देशों की तरह उतनी ही तेजी से कोरोना संक्रमितों के मामले सामने आने लगे थे। जर्मन सरकार के हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहने की नीति से जनता आक्रोशित होने लगी थी इस वजह से सरकार की खासी आलोचना हो रही थी।

लेकिन अब करीब दो महीने बाद अगर आंकड़ों पर गौर करें तो इटली में संक्रमितों की संख्या दो लाख 22 हजार, फ्रांस में एक लाख 78 हजार, ब्रिटेन में दो लाख 29 हजार, स्पेन में दो लाख 71 हजार और जर्मनी में एक लाख 73 हजार है। आंकड़ों से जाहिर है कि जर्मनी संक्रमण के मामले में इटली, स्पेन और ब्रिटेन से काफी पीछे है और फ्रांस के आसपास ही है। लेकिन, दो महीने बाद जो एक बात सभी को हैरान करती है, वह है जर्मनी में कोरोना के मरीजों की मृत्यु दर। इटली, स्पेन, ब्रिटेन और फ्रांस में कोरोना मरीजों की मृत्यु दर की अगर जर्मनी से तुलना करें तो इसमें जमीन-आसमान का अंतर नजर आता है। इटली में 31 हजार और ब्रिटेन में अब तक 33 हजार, स्पेन और फ़्रांस में 27-27 हजार के करीब मौतें हुई है। लेकिन जर्मनी में यह आंकड़ा महज 7,792 ही है। 

जर्मनी में इतनी कम मृत्यु दर का सीधा श्रेय वहां की चांसलर एंगेला मर्केल को दिया जा रहा है जो 1989 से पहले तक एक रिसर्च साइंटिस्ट हुआ करती थीं। बीबीसी के मुताबिक भले ही जर्मनी में कोरोना का पहला संक्रमित फरवरी में सामने आया हो, लेकिन उन्होंने कोरोना संक्रमण को टेस्ट करने की तैयारी जनवरी में ही शुरू कर दी थी। इसके लिए उन्होंने बड़े स्तर पर टेस्टिंग किटों के उत्पादन का आदेश दे दिया था।

मार्च में एंगेला मर्केल के बयान के बाद लोगों को डरा जरूर दिया था, लेकिन इसके बाद जर्मन सरकार ने युद्ध स्तर पर इससे निपटने की तैयारी भी शुरू कर दी थी कोरोना की टेस्टिंग के लिए जर्मनी के कई शहरों में टेस्टिंग टैक्सियां भी चलाईं गई, जिन्होंने घर-घर जाकर लोगों की टेस्टिंग भी की। इसके साथ ही समय रहते आईसीयू और बेड्स की संख्या बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया। प्रसंगवश जर्मनी के सन्दर्भ में गौर करने लायक बात यह भी है कि वहां खेल के मैदान, मॉल्स, चर्च और चिड़ियाघर जैसी जगहों पर प्रतिबंध जरूर लगाए लेकिन ताइवान की तरह उसने भी देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा नहीं की। जर्मनी में सभी सरकारी दफ्तर भी चलते रहे और सार्वजनिक परिवहन की रेल, ट्राम, मेट्रो और बस जैसी सेवाएं भी चलती रहीं अलबत्ता उनकी संख्या कम कर आधी जरूर कर दी गई थी। पर इसके साथ ही कोरोना के नियमों का पालन करने में सख्ती बरतने से उसने इसे काबू में भी कर लिया।