चीन की नीतियों से हांगकांग में तनाव


हांगकांग में आजकल इसलिए तनाव में है कि जब 1997 में इसका हस्तांतरण चीन को हुआ था तब चीन और ब्रिटेन के बीच यह लिखित समझौता भी हुआ था कि अगले पचास साल तक हांगकांग की क़ानून व्यवस्था और प्रशासनिक ढांचे में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। लेकिन चीन ने पचास साल की यह समय सीमा समाप्त होने के पहले ही कुछ ऐसे बदलाव हांगकांग में कर दिए हैं जिनसे इस देश के नागरिकों का परेशान होना स्वाभाविक है।



चीन का द्वीपीय शहर हांगकांग आजकल तनाव के दौर से गुजर रहा है। हांगकांग, सिंगापूर की तरह एक ऐसा द्वीपीय राष्ट्र है जो प्रशासनिक दृष्टि से चीन के नियंत्रण में है लेकिन अपने आप में एक पूर्ण स्वायत्त राष्ट्र भी है। चीन के क़ानून यहां लागू नहीं होते और आर्थिक रूप से मुक्त व्यापार क्षेत्र के सभी लाभ इस द्वीप के नागरिकों को मिलते हैं। हांगकांग 1997 में 99 साल की लीज के बाद चीन को वापस मिला था। लीज की अवधि में हांगकांग पर ब्रिटेन का आधिपत्य था। लीज की इस अवधि से पहले पचास साल तक हांगकांग ब्रिटेन का ही एक उपनिवेश था और इससे पहले इस द्वीप पर जापान का कब्ज़ा था। 

काल के अलग-अलग दौर में अलग- अलग देशों के स्वामित्व में रहा यह द्वीपीय देश आजकल इसलिए तनाव में है कि जब 1997 में इसका हस्तांतरण चीन को हुआ था तब चीन और ब्रिटेन के बीच यह लिखित समझौता भी हुआ था कि अगले पचास साल तक हांगकांग की क़ानून व्यवस्था और प्रशासनिक ढांचे में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा और हांगकांग के नागरिक पहले की तरह मुक्त क्षेत्र में रहने की आजादी का लाभ उठाते रहेंगे लेकिन चीन ने पचास साल की यह समय सीमा समाप्त होने के पहले ही कुछ ऐसे बदलाव हांगकांग में कर दिए हैं जिनसे इस देश के नागरिकों का परेशान होना स्वाभाविक है। चीन के इस तरह के फैसले का ब्रिटेन समेत यूरोप और अमेरिक के कई देशों ने विरोध भी किया है। ब्रिटेन ने तो एक कदम आगे बढ़ कर हांगकांग के हस्तांतरण के समय किये गए समझौते के प्रावधानों के अनुरूप हांगकांग के 30 लाख नागरिकों को ब्रिटेन की नागरिकता देने का मन भी बना लिया है।

गौरतलब है कि चीनी संसद ने हाल ही में एक प्रस्ताव पारित कर हांगकांग को चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के दायरे में शामिल करने का बड़ा फैसला लिया है, इसी से दुनिया के देश चीन से नाराज हैं। नाराजगी की वजह यह है कि जब 1997 में जब हांगकांग शहर चीन को सौंपा गया था तब उसे कानून के तहत पूर्ववत आजाद रहने की  छूट दी गई थी, इसके विपरीत चीन की संसद द्वारा पारित किये गए ताजा क़ानून में देशद्रोह, आतंकवाद, विदेशी दखल और विरोध-प्रदर्शन जैसे गतिविधियों को रोकने के प्रावधान की व्यवस्था है। 

यही नहीं,अब चीनी सुरक्षा एजेंसियां हांगकांग में काम भी कर पाएंगी। और चीन के राष्ट्रगान का अपमान करना भी अपराध के दायरे में आ जाएगा। बीजिंग की यह कवायद एक तरह से हांगकांग के अर्ध-स्वायत्त दर्जे को समाप्त करने के लिए है। हांगकांग में अभी तक ऐसी व्यवस्था नहीं थी लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी की स्थायी समिति द्वारा नए राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून का  विधेयक पारित कर देने के बाद इसे अगस्त में लागू भी किया जा सकता है। इस क़ानून का विरोध तभी से हो रहा है जब से चीनी सरकार ने इसे  लाने की घोषणा की थी।

कई मानवाधिकार संगठनों और अंतराष्ट्रीय सरकारों ने भी इस कानून पर आपत्ति जताई है। आलोचकों को डर है कि इस कानून से बीजिंग में नेतृत्व पर सवाल उठाने, प्रदर्शन में शामिल होने और स्थानीय कानून के तहत अपने मौजूदा अधिकारों का उपयोग करने के लिए हांगकांग निवासियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है। हालांकि, हांगकांग में अधिकारियों का कहना है कि यह कानून बढ़ती हिंसा और आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए आवश्यक है और क्षेत्र के निवासियों को इससे डरने की जरूरत नहीं है।

टेन और यूरोपीय संघ ने नए सुरक्षा कानून की निंदा करते हुए इसे हांगकांग वासियों की आजादी पर हमला बताया है। उधर,‘हांगकांग बार एसोसिएशन’ का मानना है कि चीन का प्रस्तावित नया सुरक्षा कानून अदालतों में दिक्कतों में फंस सकता है क्योंकि बीजिंग के पास अपने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को पूर्व ब्रिटिश कॉलोनी के लिए लागू करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। इसी सन्दर्भ में चीन के अधिकारियों की दलील है कि हांगकांग में किए अपराधों के आरोपियों को नए सुरक्षा कानून के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए चीन नहीं भेजा जाएगा, बल्कि नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को हांगकांग की कानून व्यवस्था में शामिल किया जाएगा।

इस कानून में मुकदमे का सामना करने के लिए आरोपियों को सीमा पार कर चीनी मुख्य भूभाग नहीं भेजा जाएगा। इस नए कानून से चीन की सुरक्षा एजेंसियों को पहली बार हांगकांग में अपने प्रतिष्ठान खोलने की अनुमति मिल जाएगी। पिछली सदी के आठवें दशक की शुरुआत में जैसे-जैसे 99 साल की लीज की समय सीमा पास आने लगी ब्रिटेन और चीन ने हांगकांग के भविष्य पर बातचीत शुरू कर दी।चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने तर्क दिया कि हांगकांग को चीनी शासन को वापस कर दिया जाना चाहिए। दोनों पक्षों ने 1984 में एक सौदा किया कि एक देश, दो प्रणाली के सिद्धांत के तहत हांगकांग को 1997 में चीन को सौंप दिया जाएगा। इसका मतलब यह था कि चीन का हिस्सा होने के बाद भी हांगकांग 50 वर्षों तक विदेशी और रक्षा मामलों को छोड़कर स्वायत्तता का आनंद लेगा।

1997 में जब हांगकांग को चीन के हवाले किया गया था तब बीजिंग ने एक देश-दो व्यवस्था की अवधारणा के तहत कम से कम 2047 तक लोगों की स्वतंत्रता और अपनी कानूनी व्यवस्था को बनाए रखने की गारंटी दी थी। लेकिन 2014 में हांगकांग में 79 दिनों तक चले अंब्रेला मूवमेंट के बाद लोकतंत्र का समर्थन करने वालों पर चीनी सरकार कार्रवाई करने लगी। विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों को जेल में डाल दिया गया। आजादी का समर्थन करने वाली एक पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हांगकांग की अपनी विधान सभा, अपना क़ानून और अपनी सीमाएं हैं, लेकिन हांगकांग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का चयन जो चुनाव समिति करती है उसके ज्यादातर सदस्य चीन समर्थक होते हैं और क्षेत्र के विधायी निकाय के सभी 70 सदस्य, सीधे हांगकांग के मतदाताओं द्वारा नहीं चुने जाते हैं।