किसान आंदोलन ने दिए है कई संदेश, तोड़े है मिथक


मोदी हर जगह नया मजबूत भारत की बात करते थे। अपने कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री पिछली सरकारों के कामकाज को पूरी तरह से नकारते थे। लेकिन किसान आंदोलन ने मजबूत भारत के मोदी कैंपेन को काफी नुकसान पहुंचाया है।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
मत-विमत Updated On :

किसान आंदोलन ने गांधीवाद को प्रासंगिक बनाया है। किसानों का आंदोलन अभी तक पूरी तरह से अहिंसात्मक है। सरकार के सामने किसान आंदोलन का गांधीवादी तरीका परेशानी बना हुआ है। सरकार की अहम इच्छा है कि आंदोलन हिंसक हो। ताकि पुलिस कार्रवाई का बहाना मिल जाए। लेकिन किसानों ने सरकार की हार चाल विफल कर दी है।

किसान आंदोलन गांधीवाद के तौर तरीकों को जिंदा कर दिया है। एक तरफ जहां नव उदारवाद और घोर पूंजीवादी व्यवस्था ने गांधीवादी विचार को मुल्क में खासा नुकसान पहुंचाया है, वहीं लोकतंत्र की आड़ में तानाशाही भी देश के लिए बड़ी चुनौती है।

हालांकि नवउदारवाद के बुरे परिणाम पूरे दुनिया में सामने आ गए है। कई देशों में लोकतंत्र की आड़ में डेमोक्रेटिक डिक्टेटरशीप का उदय हुआ है, और यही चिंता की बात है। भारत भी इसका शिकार हुआ है।

21 वीं सदी में कारपोरेट प्रायोजित शासक वर्ग ने सामाजिक, आर्थिक मोर्चों पर गांधीवाद, समाजवाद की विचारधारा को खत्म कर दिया है। शासक वर्ग ने कारपोरेट हितों को साधने के लिए घृणा की राजनीति को बढ़ावा दिया गया।

समाज में धर्म और जाति के नाम पर घृणा फैलायी जा रही है। भारत में पिछले कुछ दशकों में बड़ा अहिंसक आंदोलन देखने को नहीं मिला था। लेकिन किसानों ने इसकी फिर से शुरूआत की है।

किसानों ने सविनय अवज्ञा किया है। इसका लाभ यह हुआ है कि देश में मौजूद तमाम दूसरे तबके भी किसानों के साथ जुड़ रहे है। कुछ कारपोरेट फर्मों का बहिष्कार गांधीवाद से प्रेरित है।

इसका असर इस हद तक दिखा है कि दो बड़े कारपोरेट घराने अंबानी और अदानी ग्रुप इस समय सफाई पर सफाई दे रहे है। इन कारपोरेट घरानों को ईस्ट इंडिया कंपनी का अवतार बताने में किसान सफल हो गए है। किसानों की इस बड़ी सफलता का मुख्य कारण उनका गांधीवादी अहिंसात्मक आंदोलन है।

किसान आंदोलन ने समाज में सहकारिता और सहयोग की भावना बढ़ायी है। किसान आंदोलन की शुरूआत पंजाब से हुई है। पंजाब गुरुओं की धरती है। गुरुनानक देव ने पंजाब की धरती पर लंगर की परंपरा शुरू की थी।

पंजाब में लंगर परंपरा सदियों से चल रहा है। गरीब भूखा नहीं मर सकता है। लंगर में सहयोग, सहकारिता की भावना है। लंगर संदेश देता है कि मिलकर संसाधनों का उपयोग करो। संसाधन किसी एक व्यक्ति की संपति नहीं हो सकता।

आज इसी लंगर परंपरा ने किसान आंदोलन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। दिल्ली की सीमा पर बैठे किसानों ने लंगर लगाकर संदेश दिया है कि लंगर की परंपरा दुनिया को भूख बचा सकती है। लंगर खाद्य पदार्थों पर कारपोरेट कंट्रोल के विरोध का प्रतीक है। संदेश यही है कि खेती पर कारपोरेट के कब्जे के बाद खाद्य पदार्थों इतना महंगा हो जाएगा कि मिलना ही मुश्किल होगा। लोग मिल बांटकर नहीं खा पाएंगे, जो भारतीय परंपरा में है।

खादय पदार्थों पर अगर कुछ घरानों का कब्जा हो गया तो इसका खामियाजा अरबों की आबादी भुगतेगी। जब किसी महामारी, अकाल में लोग भूख से मरने लगेंगे तो लोगों की मदद के लिए कारपोरेट आगे नहीं आएगा। क्योंकि उसके शब्दकोष में सिर्फ मुनाफा है। लेकिन लंगर व्यवस्था अकाल, महामारी से निपटने में निपटने में हमेशा सफल रही है। लंगर सहकारिता के सिदांत पर आधारित है।

सहकारिता समानता को बढ़ाती है। सहकारिता गरीबी को दूर करने में अहम भूमिका निभाती है। यह सच्चाई हे कि किसान आंदोलन ने सहकारिता की भावना को मजबूत किया है।

आंदोलन ने संदेश दिया है कि एकजुट होकर सहयोग करें, तमाम बाधाओं को पार करने में आसानी होगी। इससे समाज की हर बुराई को दूर की जा सकती है। सहकारिता सामाजिक टूट को रोकती है, समाज में शांति और सदभाव को बढाती है। साथ ही हुक्मरानों की गलतियों को तरीके से लोगों के सामने लाती है।

दिल्ली की सीमा पर चल रहा किसान आंदोलन राजनेताओं के लिए बड़ी चुनौती है। राजनेताओं की फूट डालों और राज करों की नीति को इस किसान आंदोलन न एक्सपोज किया है। किसान आंदोलन ने हरियाणा और पंजाब की बीच की दूरियां खत्म कर दी है। दोनों राज्यों के नेता कई मुद्दों पर अपने प्रदेश की जनता को भड़काते थे।

नदियों के पानी समेत कुछ और मुद्दों पर लंबे समय से हरियाणा और पंजाब के बीच तनाव है। एसवाईएल को लेकर दोनों राज्यों के बीच लंबे समय से विवाद है। दोनों राज्य के नेता लंबे समय से इन मुद्दों पर राजनीतिक रोटी सेंकते रहे है। चुनावों में मुद्दा यह बनता ही है। हरियाणा के नेता तो हर चुनाव में इसे मुद्दा बनाते है। पंजाब वाले भी पीछे नहीं रहते। इन मुद्दों पर दोनों राज्यों में मतों का ध्रुवीकरण किया जाता रहा है।

लेकिन किसान आंदोलन ने दोनों राज्यों के किसानों को आपस में नजदीक ला दिया। हरियाणा के किसानों ने पानी के मुद्दे पर अपने ही नेताओं को बुरी तरह से लताड़ा। उन्होंने साफ कहा कि अब महापंजाब की बात होगी। पानी को लेकर वे आपस में नहीं लड़ेंगे।

जब किसानी ही नहीं बचेगी तो पानी लेकर क्या करेंगे। जैसे ही किसान आंदोलन हरियाणा में पहुंचा और पंजाब के किसानों के साथ हरियाणा के किसान आंदोलन में शामिल होने लगे, भाजपा ने एसवाईएल के पानी के मसले को हरियाणा में उठाया।

हरियाणा के किसानों ने ही भाजपा की चाल को विफल कर दिया। उन्होंने पंजाब के किसानों को सिर्फ सहयोग ही नहीं किया बल्कि दिल्ली सीमा पर बैठे पंजाब के किसानों को जरूरत की हर चीज की आपूर्ति भी कर रहे है। हरियाणा के किसान पंजाब के किसानों का गांवों में स्वागत कर रहे है। वे किसानी के विभिन्न मुद्दों पर आपस में सलाह कर रहे है।

पंजाब के किसान संगठन हरियाणा के गांवों में जागरूकता अभियान चला रहे है। रोहतक, सोनीपत, झज्जर, रेवाड़ी आदि इलाकों में पंजाब के किसान संगठनों के नेताओं का दौरा हो रहा है। वे गांवों में जाकर किसानों को किसानी संकट पर जागरूक कर रहे है। यह जागरूकता अभियान से किसान अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो रहे है। कारपोरेट लूट और कृषि क्षेत्र के अधिकारों को लेकर किसानों की समझ विकसित की जा रही है। यह अभियान अब देश भर में चलाए जाने की संभावना है।

अभी तक किसानों की समस्या और इस पर होने वाली बहस ड्राइंग रूम से बाहर नहीं थी। सरकार किसानी क्षेत्र के कुछ एक्सपर्ट लोगों के साथ मिलकर नीतियां बनाती थी। इसमें कई एक्सपर्ट कारपोरेट के खास थे। वे कारपोरेट हितों के साधने के लिए कृषि क्षेत्र की नीतियां तैयार कर रहे थे। लेकिन अब एक्सपर्ट के हाथों से बहस निकलकर आम जनों के बीच पहुंच गया है। बिहार, बंगाल और पूर्वी यूपी के के गांवों में भी किसानी की समस्या पर गंभीरता से बहस हो रही है।

इसमें सोशल मीडिया का महत्वपूर्ण रोल है। सोशल मीडिया पर व्हाट्सएप और यू टयूब चैनलों के माध्यम से किसानों की समस्या पर जोरदार बहस हो रही है। सरकार की नीतियों की धज्जियां उड़ायी जा रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को किसान समझने की कोशिश कर रहे है।

किसान बहस कर रहे है कि अगर उधोगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए एमआरपी है तो किसानों के लिए एमएसपी क्यों नहीं ? कई राज्यों के किसानों को यह भी पता नहीं है कि सरकार किसानों की फसलों कीमत तय करती है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है, जो किसानों को जमीन पर नहीं मिलता है। दूसरे राज्यों के किसान पंजाब के किसानों के शुक्रगुजार हो रहे है। क्योंकि उनके हितों की आवाज भी पंजाब के किसानों ने उठायी।

किसान आंदोलन ने काश्तकार और खेत मजदूर की एकजुटता को प्रदर्शित किया है। दिल्ली सीमा पर खेत मजदूर भी भारी संख्या मे आंदोलन में शामिल है। खेत मजदूरों को लग रहा है कि किसानी अगर कारपोरेट हाथों में गया तो वे भूख से मर जाएंगे।

किसान आंदोलन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मजबूत छवि को चोट पहुंचायी है। प्रधानमंत्री के न्यू इंडिया के नैरेटिव को काफी नुकसान पहुंचा है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पिछले कार्यकाल में कई विदेश यात्राएं की थी। उन्होंने अपनी यात्राओं में न्यू इंडिया का नैरेटिव बनाया था। विदेशों में पीएम के कई कार्यक्रम आयोजित हुए थे।

मोदी हर जगह नया मजबूत भारत की बात करते थे। अपने कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री पिछली सरकारों के कामकाज को पूरी तरह से नकारते थे। लेकिन किसान आंदोलन ने मजबूत भारत के मोदी कैंपेन को काफी नुकसान पहुंचाया है। दुनिया भर में यही संदेश गया है कि भारत के किसान बहुत ही बुरी हालत में है। देश की सरकार सिर्फ पूंजीवादी कारपोरेट घरानों की मदद कर रही है।

किसान आंदोलन ने पूरी दुनिया की मीडिया का ध्यान खींचा। सरकार की मजबूत छवि को किसानों ने खत्म कर दिया है। दुनिया भर में संदेश यही गया है कि मोदी की नीतियों से भारत के किसान खुश नहीं है, जो देश की पचास प्रतिशत आबादी का पेट पाल रहा है।

इस किसान आंदोलन का दूसरा पक्ष यह है कि यूरोप, अमेरिका और कनाडा में भारत के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे है। ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका में सांसद किसानों के पक्ष में बोल रहे है। इससे पता चलता है कि भारत सरकार की छवि विदेशों में खराब हुई है।