
अमेजन प्राइम पर तांडव एक वेब सीरीज के रूप में प्रस्तुत की गयी है। यह वेब सीरीज राजनीति को लेकर बनी है लेकिन इसका नाम तांडव क्योंकर रखा गया है यह समझना थोड़ा मुश्किल है। क्या सिर्फ इसके नाम के साथ तालमेल बिठाने के लिए वह दृश्य डाला गया जिसे लेकर अब विरोध का तांडव हो रहा है?
तांडव नृत्य की वो अवस्था है जो सीधे भगवान शिव से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि जब सती की मृत्यु हो गयी तो उनके शव को लेकर भगवान शिव ने क्रोध में जो नृत्य किया था उसे तांडव नृत्य कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी नृत्य के फलस्वरूप सती के जो अंग जहां-जहां गिरे वहां शक्तिपीठ का निर्माण हुआ जो आज भी देश के अलग अलग हिस्सों में विद्यमान हैं। तो क्या फिल्मकार अली अब्बास जाफर कोई ऐसा कथानक रचा है जिसमें शिव की इस अवस्था से जुड़ी किसी कहानी को चुना गया है? नहीं। ऐसा बिल्कुल नहीं है। तांडव राजनीति पर आधारित कथानक है जिसमें एक दृश्य ऐसा रखा गया है जिसमें भगवान शिव का मजाक बनाते हुए उनसे कुछ डॉयलाग बुलवाये गये हैं।
बीते कुछ सालों में नव उधारवादी पूंजीवादी व्यवस्था के कोढ़ में मची खाज का एक नया चलन है स्टैंड अप कॉमेडी। स्टैंड अप कामेडियन अपने आसपास की व्यवस्थाओं का मजाक उड़ाता है। इस वेब सीरीज में इसी माध्यम का सहारा लेते हुए भगवान शिव के वेष में एक स्टैंड अप कामेडियन भगवान राम के भक्तों का मजाक उड़ाता है। शिव के वेष में जो अभिनेता यह मजाक उड़ाता है उसका नाम मोहम्मद जीशान है।
इसी दृश्य में मोहम्मद जीशान आजादी मांगने वाले उस संवाद को भी दोहराता है जो कुछ समय पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में लगा था। वेब सीरीज के इसी दृश्य में यह स्पष्ट किया जाता है कि ये जो आजादी मांगी जा रही है वह देश से नहीं बल्कि देश के अंदर वाली बुराइयों से मांगी जा रही है। संकेत में ही सही रामभक्तों को देश की बुराई भी ठहरा दिया जाता है।
वेब सीरीज के इसी दृश्य पर पहले सोशल मीडिया पर हंगामा हुआ और अब राजनीतिक बयानबाजी भी शुरु हो गयी है। भाजपा नेताओं के अलावा बसपा प्रमुख मायावती ने भी “किसी की भावना को आहत न करने” की अपील किया है। भारत में भगवान के रूप को प्रतिरूप बनाकर प्रस्तुत करना कोई नयी बात नहीं है। भारत के गांव गांव में बहुरूपिये घूमते हैं जो किसी न किसी देवता का रूप धारण करते हैं। ऐसे में अगर किसी फिल्म के दृश्य में कोई व्यक्ति भगवान शंकर या देवी का रूप धारण कर लेता है तो इससे किसी हिन्दू की भावना आहत नहीं होती है।
कुछ साल पहले आई फिल्म फुकरे में एक दृश्य ऐसा भी होता है जिसमें दिल्ली में माता के जगराते के बहाने एक कामेडी सीन दिखाया गया था लेकिन तब किसी ने विरोध नहीं किया कि ये तो माता दुर्गा का अपमान किया जा रहा है। लेकिन इस वेब सीरीज के सीन पर संभवत: विरोध इसलिए हुआ क्योंकि इसमें विवादास्पद तरीके से आस्था का राजनीतिक शिकार किया गया।
संभवत: वेब सीरीज के निर्माता नहीं जानते कि भारत में शैव और वैष्णव का ऐतिहासिक विरोध रहा है। इसी विरोध को पाटने के लिए तुलसीदास ने शिव को राम का और राम को शिव का उपासक बताया है। लेकिन यहां इस सीन में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर शिव को हथियार बनाकर राम को शिकार बनाने का प्रयास किया गया है जिसमें सीन में बैठे लोग हठाका लगाते हैं।
निश्चित तौर पर ये सीन न तो वेब सीरीज की मांग रही होगी और न ही इसकी जरूरत। लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी तब हेट स्पीच में बदल जाती है जब इसका इस्तेमाल जानबूझकर एक वर्ग को निशाना बनाने के लिए किया जाता है। इस वेब सीरीज के सीन को देखकर भी यही लगता है कि जानबूझकर भगवान शिव और राम का सहारा लेकर वर्तमान राजनीति में एक वर्ग को निशाना बनाया गया है।
इसकी प्रतिक्रिया होनी ही थी और हुई भी। भाजपा के नेताओं ने न सिर्फ तांडव के खिलाफ बयानबाजी किया है बल्कि लखनऊ में वेब सीरिज के निर्माता, निर्देशक और लेखक के खिलाफ केस भी दर्ज हो गया है। यूपी पुलिस मुंबई पहुंचकर इस बारे में पूछताछ भी कर रही है। कानून के तहत ऐसे मामलों में धार्मिक भावना भड़काने की कार्रवाई होती है जो भारत में बहुत कठोर नहीं है। इस मामले में भी कोई कठोर कार्रवाई होगी, ऐसा लगता नहीं है।
लेकिन सवाल तो ऐसे निर्माता और निर्देशकों के सामने हैं कि हिन्दू धर्म की उदारता का इस्तेमाल क्या सिर्फ उसका मजाक बनाने के लिए ही किया जाएगा? हिन्दू धर्म इस्लाम या इसाइयत जैसा अब्राहमिक कल्ट नहीं है जो अपनी आलोचना या विरोध को अस्वीकार करता हो। आलोचना और असहमति तो धर्म में कभी अस्वीकार हो ही नहीं सकता। भारत में तो स्यादवाद एक दर्शन ही है जो सिर्फ धर्म पर सवाल ही खड़े करता है लेकिन ये सवाल किसी को बदनाम करने के लिए नहीं बल्कि तत्व तक पहुंचने के लिए होता है।
अच्छा हो कि भारत की फिल्म इंडस्ट्री के कलुषित मानसिकता के लोग इस उदारता का गलत इस्तेमाल करने से बचें। वरना देश में एक बार धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचानेवाले कानून पाकिस्तान की तरह कठोर कर दिये गये तो इससे न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में पड़ेगी बल्कि धर्म भी अपनी उदारता खो देगा।