प्रणब विरासत की सियासत : पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब और अभिजीत-शर्मिष्ठा


पिछले दिनों प्रणब मुख़र्जी के बेटे और बेटी के उनकी किताब को लेकर अलग-अलग अंदाज में व्यक्त किये गए विचार सुर्ख़ियों में आ गए। अभिजीत प्रणब दा की किताब को छपने से रोकना चाहते हैं तो शर्मिष्ठा को किताब के छपने में कोई गलती नजर नहीं आती।



पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय प्रणब मुख़र्जी के प्रतिभाशाली राजनीतिक व्यक्तित्व ने न केवल कांग्रेस पार्टी और देश की राजनीति में अपनी एक अमिट पहचान छोड़ी थी बल्कि पक्ष-प्रतिपक्ष के वो संभवतः इकलोते ऐसे नेता थे जो लीक से हट कर काम करने के लिए भी जाने जाते थे।

अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नागपुर मुख्यालय में एक कार्यक्रम में भाग लेकर उन्होंने खुद ही एक ऐसे विवाद को जन्म दे दिया था जिसने मृत्यु तक उनका साथ नहीं छोड़ा था।

हालांकि नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में उन्होंने संघ के विचारों के साथ किसी तरह की सहमति व्यक्त नहीं की थी, उलटे अपने संबोधन में उन्होंने संघ की विचारधारा के पलट अपना मत रखा था और इसके साथ ही मुख़र्जी ने संघ के कार्यक्रम के दौरान संघ की विशेष मुद्रा में अभिवादन भी नहीं किया था लेकिन सत्य को तोड़ -मरोड़ कर और गलत सन्दर्भ में प्रस्तुत करने की संघ शैली के चलते सोशल मीडिया में उस कार्यक्रम की जो तस्वीरें प्रकाशित हुईं उनमें पूर्व राष्ट्रपति संघ अभिवादन करने की मुद्रा में देखे गए।

यह काम फोटो शॉप के जरिये किया गया था जसका नतीजा यह निकला कि प्रणब मुख़र्जी की एक ऐसी तस्वीर सोशल मीडिया के जरिये पेश की गई जो उनके वैचारिक दर्शन और व्यक्तित्व के सर्वथा विपरीत थी। डर इसी बात का था कि संघ के कार्यक्रम में उनकी एकदम दूसरी ही तस्वीर पेश की जायेगी। वैसा ही हुआ भी।

कांग्रेस पार्टी और उनके परिजनों में ही कई लोगों को यह शंका थी कि अगर प्रणब मुख़र्जी संघ के बुलावे पर नागपुर कार्यक्रम में शामिल होने के लिए गए तो ऐसा कुछ हो सकता है।

इस तरह का शक जाहिर करने वालों में उनकी बेटी और दिल्ली कांग्रेस की प्रमुख पदाधिकारी शर्मिष्ठा मुख़र्जी भी एक थीं। उनकी मृत्यु के बाद एक विवाद उनकी एक पुस्तक के रूप में भी देखने को मिला। इस विवाद के चलते उनकी किताब, “द  प्रेजीडेंसियल इयर्स” को लेकर उनके बेटे अभिजीत मुख़र्जी और बेटी शर्मिष्ठा मुख़र्जी के बीच एक राय नहीं है। उनका बेटा अपने पिता की किताब का प्रकाशन रोकना चाहता है तो बेटी को अपने पिता की पुस्तक छपवाने में कोई गलत बात नजर नहीं आती।

प्रणब मुख़र्जी के बेटे अभिजीत कांग्रेस के टिकट पर बंगाल से लोकसभा के सांसद बन चुके हैं और शर्मिष्ठा ने अपनी स्कूली और कॉलेज की पढ़ाई दिल्ली से ही की है और वो दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हैं। शर्मिष्ठा, अभीजित से पांच साल छोटी हैं। एक ही परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद दोनों की शैक्षिक और व्यावसायिक पृष्ठभूमि अलग होने के चलते दोनों की सोच का तरीका और दायरा भी थोड़ा बदला हुआ है। इसीलिए प्रणब मुख़र्जी की किताब को लेकर भी दोनों के सोचने का तरीका बदला हुआ है।

पिछले दिनों प्रणब मुख़र्जी के बेटे और बेटी के उनकी किताब को लेकर अलग-अलग अंदाज में व्यक्त किये गए विचार सुर्ख़ियों में आ गए। अभिजीत प्रणब दा की किताब को छपने से रोकना चाहते हैं तो शर्मिष्ठा को किताब के छपने में कोई गलती नजर नहीं आती।

प्रणब की किताब को छपने से रोकने के पीछे अभिजीत का तर्क यह है कि पूर्व राष्ट्रपति का बेटा होने के नाते उनको यह पूरा हक है कि वो अपने स्वर्गीय पिता की पुस्तक को छपने से पहले अच्छी तरह से पढ़ कर यह सुनिश्चित कर लें कि इस पुस्तक में गलती से कोई ऐसे अप्रिय प्रसंग तो नहीं हैं जो बाद में विवाद की वजह बनें।

दूसरी तरफ शर्मिष्ठा का मानना है कि उनके स्वर्गीय पिता पुस्तक लेखन में ऐसी कोई गलती नहीं कर सकते जो बाद में किसी तरह के विवाद का मुद्दा बने। प्रणब की किताब को लेकर उनके बेटे और बेटी के बीच उभर कर सामने आया यह विवाद कुछ लोगों के लिए राजनीतिक गतिरोध का कारण भी बनता नजर आ रहा है।

लेकिन प्रसंगवश यह समझने की जरूरत है कि किसी मुद्दे को लेकर अभिजीत और शर्मिष्ठा के तौर तरीके और सोच विचार में चाहे जितना फर्क हो उनकी राजनीतिक समझ में शायद कोई फर्क नहीं है।

एक बात जान लेना जरूरी है कि अभिजीत मुखर्जी की बंगाल में अपनी एक अलग पहचान है, वहाँ उन्हें प्रणब दा के बेटे अभिजीत के रूप में ही नहीं बल्कि बाबू दा के रूप में भी पहचाना जाता है जो उनकी अपनी एक अलग पहचान भी है। बंगाल की राजनीति में प्रणब मुख़र्जी बट वृक्ष की तरह थी इसलिये अभिजीत को यह फैसला लेने में ही ढाई दशक का समय लग गया कि उन्हें राजनीति में आना चाहिए कि नहीं।

अभिजीत ने बंगाल के अपने गृह नगर को अपनी राजनीति का आधार बनाया तो शर्मिष्ठा के लिए दिल्ली ही आधार बन गया। कहते हैं कि अभिजीत का राजनीति में इतनी देर से प्रवेश इसलिए भी हुआ क्योंकि प्रणब दा नहीं चाहते थे कि उन पर वंशवाद को आगे बढ़ाने का कोई आरोप लगे।

2011 में जब अभिजीत की राजनीति में एंट्री हुई तब यह लगभग तय हो चुका था कि प्रणब दा को सक्रिय राजनीति से अलग कर राष्ट्रपति बनाया जा रहा है। ऐसे में उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए अभिजीत का राजनीति में उतरना लगभग जरूरी हो गया था।

1960 में पैदा हुए अभिजीत ने 24 साल की उम्र में मेकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर कई निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के कारपोरेट घरानों में अपनी सेवायें दीं और जिस वक़्त उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया तब उनकी उम्र 50 की हो चुकी थी। अभिजीत पहले बंगाल विधान सभा में कांग्रेस के विधायक रहे और बाद में 2014 का लोकसभा चुनाव जीत कर संसद में पहुंचे थे। अभिजीत 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं जीत सके थे।

उधर शर्मिष्ठा मुख़र्जी ने अपने भाई से चार साल बाद राजनीति में कदम रखा था। उन्होंने दिल्ली विधान सभा के लिए 2015 में संपन्न चुनाव में दिल्ली की पोश समझी जाने वाली ग्रेटर कैलाश सीट से कांग्रेस के टिकट पर अपना भाग्य आजमाया लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी।

शर्मिष्ठा राजनीति में सक्रिय रहने के साथ ही एक अच्छी कत्थक डांसर भी हैं। उनकी पढ़ाई दिल्ली के लेडी इरविन स्कूल, सैंट स्टीफंस कॉलेज और जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी से हुई है। 2019 में शर्मिष्ठा को दिल्ली महिला कांग्रेस का अध्यक्ष भी बनाया गया था।शर्मिष्ठा आजकल कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि जब प्रणब की किताब को लेकर उनके अपने बड़े भाई के साथ वैचारिक मतभेद सामने आने लगे तो यह भी कहा जाने लगा कि देर-सबेर शर्मिष्ठा भाजपा का दामन भी थाम सकती हैं। उनके भाजपा में जाने संबंधी बातों को इसलिए बल नहीं मिल पाया क्योंकि शर्मिष्ठा उन लोगों में सबसे आगे थीं जिन्होंने प्रणब मुख़र्जी के संघ मुख्यालय नागपुर के कार्यक्रम में जाने का विरोध भी किया था।