आजादी का अमृत महोत्सव : भारतीय महिलाओं की स्थिति में कितना बदलाव

संपूर्ण भारत में आजादी के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ का आयोजन किया जा रहा है। चूंकि, महिलाएं भी भारत में आधीआबादी के नाम से जानी जाती हैं तो इस महोत्सव के अवसर पर यह पड़ताल करना भी जरूरी है कि वर्तमान में आधीआबादी की क्या स्थिति है? जहां तक हिंसा को लेकर बात की जाए तो देखा जा सकता है कि, आज आजादी के 75 सालों बात भी भारत में महिलाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। आधुनिकता के विस्तार के साथसाथ देश में दिनप्रतिदिन बढ़ते महिलाओं के प्रति अपराधों की संख्या के आंकड़े चौकाने वाले हैं। ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट-5’ के अनुसार, लगभग एक तिहाई महिलाएं तमाम तरह के यौनहिंसा की शिकार हो रही हैं। लेकिन, इनमें से सिर्फ 14% महिलाएं हीं इस मुद्दे को सार्वजनिक कर पाई। उसी तरह घरेलूहिंसा के आंकड़े बताते है कि कर्नाटक पहले स्थान पर रहा है। यहाँ घरेलूहिंसा का दर 48% रहा। इसके बाद अन्य राज्य आते हैं जिसमें सबसे कम प्रतिशत लक्षद्वीप का है, यहाँ घरेलूहिंसा की दर 2.1% रहा है। हालांकि पिछले कुछ दशकों में रक्षा और प्रशासन सहित लगभग सभी सरकारी तथा गैरसरकारी क्षेत्रों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी, उनकी स्वायत्तता तथा अधिकारों का कानूनी एवं राजनैतिक संरक्षण, सुधरते शैक्षणिक स्तर, अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धाओं में उनकी प्रतिभागिता एवं कौशल, विज्ञान तथा तकनीकि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कई बड़े बदलाव भी देखने को मिले हैं। लेकिन, यह तो महज शुरुआत भर है।

आजादी के बाद के वर्षों में महिलाओं के लिए समान अधिकार (अनुच्छेद-14), राज्य द्वारा कोई भेदभाव नहीं करने (अनुच्छेद-15), अवसरों की समानता (अनुच्छेद-16), समान काम के लिए समान वेतन (अनुच्छेद-39), अपमानजनक प्रथाओं के परित्याग के लिए (अनुच्छेद-51 .&.) , प्रसूति सहायता के लिए (अनुच्छेद-42) जैसे आदि अनेक प्रावधान भारतीय संविधान में किए गए । इसके अतिरिक्त अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956, दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1994, घरेलू हिंसा से महिलाएं का संरक्षण अधिनियम 2005, बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006, कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न (प्रतिषेध) अधिनियम 2013, दंडविधि (संशोधन) 2013 भारतीय महिलाओं को अपराधों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने तथा उनकी आर्थिक एवं सामाजिक दशा में सुधार करने के लिए बनाए गए प्रमुख कानूनी प्रावधान हैं। कई राज्यों की ग्राम व नगर पंचायत में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान भी किया गया है। इसी क्रम में लगातार नएनए कानून पास हो रहें हैं।

लेकिन, विडंबना तो यह है कि इतने सारे कानूनी प्रावधानों के होने के बावजूद देश में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में कमी होने के बजाए वृद्धि हो रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में प्रतिदिन 100 महिलाओं का बलात्कार हुआ और 364 महिलाएं यौनउत्पीड़न का शिकार हुई। इस वर्ष केवल बलात्कार के 36735 मामले दर्ज किए गए जो 2012 में दर्ज 24923 मामलों से कहीं ज्यादा अधिक थे। यूनिसेफ की रिपोर्ट ‘हिडेन इन प्लेन साइट’ के मुताबिक भारत 15 साल से 19 साल की उम्र वाली 34% विवाहित महिलाएं ऐसी हैं जिन्होने अपने पति/साथी के हाथों यौन हिंसा झेली है। गृहमंत्रालय भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 2014 से 2016 के बीच देश भर में बलात्कार 1,10,333 मामले दर्ज किए गए हैं। NCRB के अनुसार पिछले 10 वर्षों में महिलाओं के विरुद्ध हुए अत्याचारों में दोगुने से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है। इस संबंध में देश में हर घंटे करीब 26 आपराधिक मामले दर्ज किए जाते हैं। यह स्थिति बेहद ही भयावह है।

इसके अतिरिक्त कई अन्य चिताएँ भी जैसेस्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक सारिकार, घर के महत्वपूर्ण निर्णय लेने में भूमिका की कमी, दोहरा सामाजिक रवैया, प्रशिक्षण का अभाव, पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता, गरीबी एवं धार्मिक प्रतिबंध शामिल हैं। पौष्टिक आहार की अनुपलब्धता की वजह से स्त्रियॉं में बीमारी और मृत्यूदर बढ़ रही हैं। UNDP (मानव विकास रिपोर्ट) 1997 के अनुसार भारत में 88% महिलाएं खून की कमी (एनिमीया) का शिकार हैं। ‘नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-5’ के रिपोर्ट के अनुसार भारत की 50% महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण पाने के बहुत कम उपाय अपनाए जाते हैं, जिससे बारबार गर्भधारण और शारीरिक अक्षमता के चलते कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएँ आए दिन देखने में आती रहती हैं। हालांकि, कुछ महिलाएं इन सभी चुनौतियों से पार पाकर विभिन्न क्षेत्रों के देशों के सम्माननीय स्तरों तक भी पहुँची हैं, जिनकी संख्या बहुत ही सीमित है।

भारत में 70 के दशक से महिलासशक्तिकरण शब्द प्रकाश में आए। 1990 के बाद विदेशी निवेश द्वारा स्थापित गैरसरकारी संगठनों में अभूतपूर्व तेजी आई। इन संगठनों ने भी महिलाओं को जागरूक कर उनमें उनके अधिकारों के प्रति चेतना विकसित करने तथा उन्हें सामाजिक/आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में महती भूमिका अदा की है। साथ की मुस्लिम महिलाओं में प्रचलित निकाह, हलाला तथा तीन तलाक जैसे पुरातनपंथी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने में मदद की। हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तरप्रदेश आदि में कन्याभ्रूण हत्या को रोककर लिंगानुपात के घटते स्तर को संतुलित करने तथा शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति सुधारने के प्रक्रम को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा ‘बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्धि योजना’ ‘सुरक्षित मातृत्व आश्वाशन सुमन योजना’ जैसे तमाम योजनाएँ चलाई जा रही है।

स्त्रीसुरक्षा और समता में उठाया गया हमारा प्रत्येक कदम किसीकिसी हद तक स्त्रियॉं की दशा सुधारने में कारगर साबित हो रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं, किन्तु सामाजिक सुधार की गति इतनी धीमी है कि इसके यथोचित परिणाम स्पष्ट रूप से सामने नहीं आ पाते। हमें और भी द्रुत गति से इस क्षेत्र में जनजागृति और शिक्षा पहुंचाने का कार्य करने की आवश्यकता है। शिक्षा सभी दोषों से छुटकारा दिलाने का आधारभूत साधन है। एक शिक्षित स्त्री न केवल अपना बल्कि, परिवार की तीन पीढ़ियों का कल्याण करने की छमता रखती है। इसलिए शिक्षा को केंद्र बनाकर तथा समुचित साधन और क़ानूनों का व्यावहारिक तौर पर पालन सुनिश्चित करके ही देश को महिलाओं के प्रति अपराध/हिंसा मुक्त बनाया जा सकता है।

(डॉ. आकांक्षा, सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र लेखन – कार्य।)

First Published on: August 13, 2022 2:13 PM
Exit mobile version