
कोविड की बड़ी लहर से देश भर में हाहाकार मच गया है। जनप्रतिनिधि गायब है। सरकारी तंत्र लोगों को राहत देने के बजाए धक्का दे रहा है। सरकार आपदा में अवसर का फायदा उठाते हुए लोगों से जमकर वसूली कर रही है। मॉस्क नहीं पहने हुए है तो पिटाई भी हो सकती है। जुर्माना तो हजारों रुपये का है। पिछले साल कोरोना काल के दौरान सरकार ने गरीबों को कुछ राशि उपलब्ध करवायी थी। एक परिवार को कुछ किलो राशन और कुछ सौ रुपये की सहायता राशि उपलब्ध करवा वाहवाही लूटने वाले सरकारी तंत्र अब आम नागरिको से मॉस्क के चालान के नाम पर 2 हजार रुपये तक वसूल रही है।
मॉस्क न लगाने के अपराध मे जुर्माना वसूला जा रहा है। दूसरी तरफ जो जायज काम सरकारी तंत्र को करना है, वो नहीं हो रहा है। कोरोना बीमारी में इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयों की कालाबजारी हो रही है। रेमडेसिविर का एक इंजेक्शन 50 हजार रुपये से 1 लाख रुपये तक में बेचा जा रहा है। मुल्क का सरकारी तंत्र जरूरी दवाइयों की ब्लैक मार्केटिंग रोकने के बजाए गरीबों पर जुर्माना ठोक रही है। ताकि सरकारी खजानों को आपदा में अवसर के नाम पर भरा जा सके।
बाकी देश भर में अस्पतालों की हालत तो लोग देख ही रहे है। अस्पतालों में न बेड मिल रहा है, न ऑक्सीजन उपलब्ध है। वेंटिलेटर की बात मत कीजिए। घटिया वेंटिलेटर अस्पतालों को उपलब्ध करवाए गए। दूसरी तरफ वेंटिलेटर को चलाने वाले प्रशिक्षित स्टॉफ अस्पतालों में उपलब्ध नहीं है।
कुछ समय पहले तक ही वैक्सीन डिप्लोमेसी को लेकर खूब वाहवाही भारत सरकार ने लूटी थी। भारत ने पूरी दुनिया को वैक्सीन उपलब्ध करवाया, इसका जोरदार प्रचार किया गया। अखबारों से लेकर टीवी चैनलों में इसी की चर्चा की जा रही थी। भारत ने दुनिया को वैक्सीन उपलब्ध करवाया, लेकिन जब अपने ही मुल्क के लोगों को वैक्सीन की जरूरत पडी, तो देश में वैक्सीन की कमी हो गई है। रूस से वैक्सीन आयात की अनुमति देनी पड़ी। जो सीरम इंस्टीटयूट भारत में वैक्सीन को उपलब्ध करवाने को लेकर तमाम बड़े बड़े दावे कर रहा था वो सरकार से 3 हजार करोड़ रुपये का अनुदान मांगने लगा।
अब केंद्र सरकार ने वैक्सीन उत्पादन के लिए अग्रिम राशि उपलब्ध करवायी है। सरकार की गलत रणनीतियों के कारण जब जनता में हाहाकार मच गया तो सरकार अपनी गलतियों को छुपाने के लिए तमाम कवायद कर रही है। पहले रूसी वैक्सीन स्पूतनिक के आयात की मंजूरी दी। अब फाइजर और माडर्ना की वैक्सीन भी भारत में उपलब्ध करवाने की तैयारी हो रही है। इसे आयात किया जाएगा।
दरअसल सीरम इंस्टीटयूट की वैक्सीन को लेकर खूब ढोल पीटा गया। खूब वाहवाही लूटी गई। जबकि सच्चाई तो यह है कि सीरम इंस्टीटयूट की कोविशील्ड वैक्सीन तो ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन है। सीरम इंस्टीटयूट इसे सिर्फ बना रहा है। वैक्सीन के विकास और अनुसंधान में सीरम का कोई योगदान नहीं है। वैक्सीन निर्माण का एक दिलचस्प पहलू और भी है। भारत में वैक्सीन बनाने की सिर्फ फैक्ट्री है। भारत आज भी वैक्सीन बनाने के लिए जरूरी रॉ मैटेरियल के लिए बाहरी मुल्कों पर निर्भर है।
अब एक खबर और आयी है। भारत में बनने वाले कोविड के दोनों वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन के लिए जरूरी कच्चे माल की कमी पड़ गई है। भारत में वैक्सीन बनाने के लिए कच्चा माल बाहर के देशों से आता है। वैक्सीन बनाने के लिए लगभग 9 हजार अलग-अलग कच्चे माल की जरूरत पड़ती है। इनका आयात दुनिया के कई देशों से होता है।
वैक्सीन के लिए जरूरी कच्चा माल के मुख्य निर्यातक देशों में यूरोपीए देश और अमेरिका भी शामिल है। लेकिन हाल ही में बाइडेन प्रशासन ने यूएस डिफेंस प्रोडक्शन एक्ट-1950 लागू कर दिया है। इस एक्ट के लागू होने से वैक्सीन के लिए कई जरूरी कच्चे माल का निर्यात अमेरिकी कंपनियां नहीं कर पा रही है। इसके बावजूद आत्मनिर्भर भारत का ढोल पीटा जा रहा है।
भारत सरकार कोविड नियंत्रण में विफल होती नजर आ रही है। अब केंद्र सरकार अपना बचाव करते हुए सारी जिम्मेवारी राज्य सरकारों पर डाल रही है। वैक्सीन भी खुले बाजार में उपलब्ध करवाने पर भारत सरकार विचार कर रही है। रूसी वैक्सीन स्पूतनिक का आयात भारत में होगा। जल्द ही फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन भी भारत में उपलब्ध होगी। लेकिन सवाल यह है कि आखिर विदेशों से आयातीत वैक्सीन का खर्च कौन उठाएगा?
सरकारी नियंत्रण से बाहर खुले बाजार में वैक्सीन बेची जाएगी और लोगों से मनमानी कीमतें वसूली जाएगी। केंद्र सरकार चालाकी से वैक्सीन की सारी जिम्मेवारी राज्यों पर डालना चाहती है। केंद्र सरकार को यह अहसास हो गया है कि कोविशील्ड और कोवैक्सीन से देश की बड़ी आबादी को राहत नहीं मिलेगी। वैसे में फाइजर समेत कई और कंपनियों की वैक्सीन आयात करना पड़ेगा। लेकिन अब सरकार के सामने बड़ी समस्या है वैक्सीन की कीमत है।
फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन की एक डोज की कीमत लगभग 1000 से 1500 रुपये के बीच होगी। उधर कोविशील्ड बनाने वाले सीरम इंस्टीटयूट ने भी साफ कहा है कि खुले बाजार में कोविशील्ड की कीमत 1000 रुपये प्रति डोज होगी। रूस से आयात होने वाली वैक्सीन स्पूतनिक की कीमत भी कम से कम 750 रुपये प्रति डोज होगी।
अब बात करें आक्सीजन की। देश भर से ऑक्सीजन की कमी की खबरें आ रही है। ऑक्सीजन की कमी के कारण देश भर में कोरोना से पीडित मरीजों की मौत हो रही है। विशेषज्ञों की राय है कि अगर देश भर के अस्पतालों में आराम से ऑक्सीजन उपलब्ध हो, प्रतिदिन कोरोना से होने वाली मौतों में काफी कमी आ सकती है। लेकिन हालात यह है कि ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबजारी हो रही है। उधर मुल्क में सरकारें अपने नागरिकों को अस्पतालों में बेड भी उपलब्ध नहीं करवा रही है। ऑक्सीजन तो दूर की बात है।
सरकारी तंत्र को पता था कि कोरोना की दूसरी लहर आएगी। लेकिन कोई तैयारी नहीं की गई। भारत के गरीब नागरिकों को वैक्सीन उपलब्ध करवाने के बजाए विदेशों में वैक्सीन निर्यात किया गया। भारत में बीमार मरीजों को ऑक्सीजन उपलब्ध करवाने के बजाए विदेशों में ऑक्सीजन निर्यात करवाया गया। आपदा में अवसर का लाभ उठाते हुए जोरदार मुनाफा कमाया गया। आश्चर्य की बात है कि 2020-21 की तीन तिमाही में 9294 मिट्रिक टन ऑक्सीजन भारत से निर्यात किया गया। यह 2019-20 में ऑक्सीजन के हुए निर्यात से दोगुना था।
मतलब कोरोना काल में ऑक्सीजन का निर्यात बढ़ाकर मुनाफा कमाया गया। अब हालात यह है कि देश की राजधानी दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन खत्म होने के कागार पर है। बाकी राज्यों की बात ही मत करें। वहां तो हाल और खराब है। पिछले साल अप्रैल में कोरोना का संकट भारत में आया था। सरकार ने कोरोना नियंत्रण के लिए कई स्तर पर टॉस्क फोर्स बना रखा है। क्या टॉस्क फोर्स को इतना भी ज्ञान नहीं है कि कोविड का दौर अभी चलेगा?
कोविड के इलाज में ऑक्सीजन की भारी जरूरत पड़ेगी? अब जब हालात खराब हो रहे है, तो ऑक्सीजन आयात करने का फैसला लिया गया है। क्या कोरोना के नियंत्रण के लिए बनायी गई टीम के सदस्यों को विज्ञान, बीमारी और आपदा प्रबंधन का कोई ज्ञान नहीं है? वैसे देश के नागरिको को इतना अहसास हो गया है कि सरकारें सिर्फ सरकारी संपतियों को बेचने के लिए होती है। नागरिकों को तो अपनी जरूरी जरूरतों का खुद ही ख्याल रखना होगा।