
देश में अनेक हिन्दू संगठन चल रहें हैं। उनको मैंने तीन प्रकार में बांटने की आवश्यकता महसूस की है। यह सत्य है संघ परिवार (आरएसएस ) से जुड़े हजारों -लाखों समर्पित कार्यकर्ताओं की तपस्या के बल पर 21 वीं सदी में हिंदूवादी उभार देश में आया है। जिस देश में 80 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या हिंदुओं की हो, उस देश में हिन्दू उभार को कोई भी नकार नहीं सकता है। फिर स्वतंत्रता के बाद धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जो हिन्दू भावनाओं को अपमानित करने की लगातार कोशिश हुई, उसकी प्रतिक्रिया तो होनी ही थी। इसलिए आप भले हिन्दू उभार को सही न मानते हों, पर आप उस उभार को नकार बिल्कुल नहीं सकते हैं।
पर इस हिन्दू उभार ने अनेक हिन्दू संगठनों को नव संजीवनी दी है या नए हिन्दू संगठनों को उभारने का अवसर भी दिया है। इसलिए ऐसे सभी हिन्दू संगठनों की सही पहचान प्रबुद्धजनों को होनी चाहिए। इसी निमित्त से मैंने भी व्यक्तिगत रूप से इस विषय पर विचार किया है।
मैंने सभी हिन्दू संगठनों को तीन भागों में बांटा है-हिंदूवादी, हिंदुत्ववादी और गोडसेवादी संगठन। इसे अधिक स्पष्ट करने की कोशिश करते हैं। जो परम्परा से हिन्दू हैं या जिन्हें हिन्दू धर्माचार्य हिन्दू कहते हैं, उन्हें हिन्दू स्वीकारना और स्वयं हिन्दू कौन हैं, इस पचड़े में न पड़ते हुए हिन्दू हितों के कार्य करने वाले संगठन हिंदूवादी हैं। डॉ हेडगेवार ने संघ (आरएसएस) को ऐसा ही हिंदूवादी संगठन बनाया था। जो संगठन हिन्दू कौन है, धर्म क्या है, इस अधिकार को भी धर्माचार्यों से हड़प कर स्वयं तय करने लगते हैं कि किसे हिन्दू कहना है और धर्म क्या है, वे सभी संगठन हिंदुत्ववादी हैं। वीर सावरकर के नेतृत्व में हिन्दू महासभा ऐसा ही संगठन था और डॉ हेडगेवार के बाद आये गुरुजी गोलवलकर के नेतृत्व में संघ (आरएसएस) भी ऐसा ही संगठन बन गया।
गोडसेवादी संगठन वे हैं जिनका केवल हिंसा पर विश्वास है और सोते-जागते मारो-काटो चिल्लाते रहते हैं। इसी प्रकार ऐसे संगठन महात्मा गांधी की हत्या को सही ठहराते घूमते हैं। वर्तमान में हिन्दू महासभा के अधिकांश टुकड़े ऐसे गोडसेवादी संगठन हैं। संघ परिवार (RSS)से निकले-निकाले गए अनेक घटक समूह (Fringe Elements) भी गोडसेवादी हैं। यह मोटा-मोटा विभाजन है। शायद आपको ऐसे सभी प्रकार की प्रवृत्ति के लोग लग अलग समय में एक ही संगठन में दिख गए हों। पर उस संगठन का वर्गीकरण उनके वरिष्ठ नेतृत्व के चाल चरित्र पर किया है, निचले स्तर पर के कार्यकर्ताओं के आधार पर ऐसा वर्गीकरण असम्भव हो जाता है।
हिन्दू संगठनों का ऐसा विवेक पूर्ण विभाजन सभी अपने अपने अनुसार करने के लिए स्वतंत्र हैं। जरूरी नहीं कि आप मेरे द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण से सहमत हों। पर सभी हिन्दू संगठनों को एक ही प्रकार में लपेटना सर्वथा अनुचित है।