केंद्र सरकार आपदा को अवसर में बदल रही है। कृषि भूमि से लेकर एयरपोर्ट, रेलवे औऱ अन्य प्राकृतिक संसाधन कारपोरेट घरानों को सौंप रही है। क्योंकि सरकार को लगता है कि आपदा काल में संगठित विरोध नहीं होगा और केंद्र सरकार अपने मंसूबे में सफल हो जाएगी। लेकिन हरियाणा के किसानों ने हंगामा खडा कर केंद्र सरकार के मंसूबों को चुनौती दी है। हरियाणा के कुरूक्षेत्र में किसानों ने केंद्र सरकार के तीन अध्यादेशों के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया है। प्रदर्शन से हरियाणा की भाजपा सरकार घबरायी हुई है। किसानों से बातचीत के लिए कमेटी बनायी गई है। खुद भाजपा के दो सांसदों विजेंद्र सिंह और धर्मवीर ने किसानों पर हुए लाठी चार्ज का विरोध किया है। दोनों सांसदों को किसानों की नाराजगी की कीमत की जानकारी है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि पंजाब और हरियाणा में किसानों के हितों के चैंपियन होने का दावा करने वाले दो क्षेत्रीय दल किसान विरोधी अध्यादेश पर सिर्फ बयानों तक सीमित हैं। सत्ता की भागीदारी किसानों के हितों के लिए छोड़ने को तैयार नहीं है।
भाजपा की सोच शुरू से ही किसान विरोधी रही है। इसलिए केंद्र सरकार के किसान विरोधी तीन अध्यादेशों पर कोई हैरानी लोगों को नहीं हुई। लेकिन किसानों का वोट लेकर राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों को क्या हो गया? अकाली दल और जनानायक जनता पार्टी किसान विरोधी अध्यादेशों का विरोध क्यों नहीं कर रहे है? कोरोना काल में किसानों की चैंपियन इन दो पार्टियों ने किसानों को धोखा दिया है। किसानों के वोट से इनकी राजनीति चलती है। किसानों के वोट के कारण ही ये भाजपा के साथ सत्ता के भागीदार बन गए है। केंद्र में सत्ता में स्थापित एनडीए गठबंधन की सरकार में अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल मंत्री है। वो चुनाव किसानों के वोट से जीती है। हरियाणा में राज्य में काबिज एनडीए गठबंधन की सरकार में जननायक जनता पार्टी के दुष्यंत चौटाला मंत्री है। उनकी पार्टी हरियाणा में गठबंधन सरकार में शामिल किसानों के वोट के कारण ही हुई। हरियाणा और पंजाब में चौटाला परिवार और बादल परिवार की राजनीति ही किसानों के वोट से चलती है। कुरूक्षेत्र मे किसानों पर हुए लाठी चार्ज से नाराज किसानों ने दुष्यंत चौटाला के सिरसा आवास का घेराव किया।
अकाली दल ने पंजाब में किसानों को धोखा दिया है। जननायक जनता पार्टी हरियाणा के किसानों को धोखा दे रही है। केंद्र सरकार के किसान विरोधी अध्यादेश पर सुखबीर बादल और दुष्यंत चौटाला चुप है। संसद के आने वाले सत्र में अध्यादेश बिल के रूप में पारित हो सकता है। अध्यादेशों पर अकाली दल दवारा केंद्र सरकार का खुलकर विरोध न करने का कारण लोगो को समझ में आ रहा है। दुष्यंत चौटाला की चुप्पी का कारण भी लोगों को समझ मे आ रहा है। दरअसल पंजाब में अकाली दल सत्ता से बाहर है। वैसे में अकाली दल केंद्र सरकार का मंत्री पद नहीं खोना चाहता है। वहीं जननायक जनता पार्टी भी काफी मुश्किल से सत्ता में भागीदार बनी है। दुष्यंत चौटाला राज्य में मंत्री पद खोना नहीं चाहते है। दुष्यंत चौटाला महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री है। दोनों राजनीतिक दलों के नेताओं को केंद्र सरकार की जांच एजेंसियों का भय भी सताता रहता है। दिलचस्प बात है कि पंजाब की कांग्रेस सरकार ने केंद्र सरकार के अध्यादेशों के खिलाफ पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव भी पारित कर दिया।
पंजाब और हरियाणा की अर्थव्यवस्था का आधार खेती है। दोनों राज्यों के किसानों ने देश को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आत्मनिर्भर भारत की बात अब कर रहे है। इन दो राज्यों के किसानों ने देश को खेती के क्षेत्र में चार दशक पहले आत्मनिर्भर बना दिया। उसके बावजूद किसानों के साथ धोखा किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने द फारमर्स प्रोडयूस ट्रेड एंड कॉमर्स आर्डिनेंस, द इंसेसिएल कोमोडोटी (अमेडमेंट) आर्डिनेंस और द फारमर्स एग्रीमेंट ऑन प्राइज एश्योरेंस फार्म सर्विसेस आर्डिनेंस को मंजूरी देकर किसानों को कमर तोड़ने की योजना बनायी है। केंद्र सरकार देश के कृषि क्षेत्र भी रेल, एयरपोर्ट और खदानों की तरह कारपोरेट घरानों को सौंपना चाहती है। केंद्र सरकार के अध्यादेश के बाद कुछ कारपोरेट घराने पंजाब और हरियाणा में कारपोरेट खेती के क्षेत्र में आने की तैयारी में लग गए है।
केंद्र सरकार के तीन अध्यादेशों का गंभीर प्रभाव किसानों पर यह पड़ेगा और पंजाब औऱ हरियाणा की व्यवस्थित कृषि मंडियां तबाह हो जाएंगी। इन मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर हजारों करोड़ रुपये की फसलों की खरीद होती है। नए अध्यादेश के बाद इन मंडियों की स्थिति खराब हो जाएगी। किसानों से सरकार नियंत्रित मंडियों में खरीद रूक जाएगी। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य भी खत्म करने की तैयारी में है। इससे किसान तबाह हो जाएगें। भाजपा लंबे समय से कारपोरेट खेती की समर्थक रही है। इसे शांता कुमार कमेटी की रिपोर्ट से समझा जा सकता है। 2015 में आयी कमेटी की रिपोर्ट में पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश में फसलों की खरीद का काम भारतीय खाद निगम की जगह स्थानीय खरीद एजेंसियों को देने की सिफारिश की गई थी।
पंजाब और हरियाणा में फसलों की सरकारी खरीद बहुत ही व्यवस्थित है। इसके लिए मंडियों का एक बडा चेन पूर्ववर्ती सरकारों ने विकसित किया। किसानों से फसल खरीद एग्रीकल्चर प्रोडयूस मार्केट कमेटी में ही होती है। दोनों राज्य में मंडिया गेहूं और धान की खरीद में पूरे देश में अव्वल है। कुछ राज्यों ने पंजाब और हरियाणा का अनुकरण किया। लेकिन कई राज्य नहीं कर पाए। पंजाब और हरियाणा के मंडी बोर्ड ग्रामीण विकास में भी अपना योगदान देते है। 2019-20 में पंजाब और हरियाणा की मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 226 लाख टन धान की खरीद की गई। दोनों राज्यों की मंडियों मे 201 लाख टन गेहूं की खरीद की गई। दोनों राज्यों की मंडियों से सरकारी एजेंसियों ने लगभग 80 हजार करोड़ रुपये की खरीद की। किसान संगठनों का कहना है कि धीरे-धीरे सरकार इन खरीद एजेंसियों को खत्म कर पूरे देश के किसान को कारपोरेट सेक्टर का हवाले करना चाहती है।