प्रखर स्वाधीनता सेनानी कोटमराजू रामा राव की 125वीं जयंती आज


प्रखर स्वाधीनता सेनानी और प्रथम राज्य सभा के सदस्य (1952), कोटमराजू रामा राव की 125वीं जयंती है। के. रामा राव अपने दौर के अकेले ऐसे पत्रकार थे जो 25 से अधिक समाचार पत्रों में कार्यशील रहे।

इन पत्र-पत्रिकाओं में अविभाजित भारत के लाहौर से प्रकाशित (लाला लाजपत राय का) दि पीपुल (1936), कराची का दैनिक दि सिंध आब्जर्वर (1921), मुंबई का दि टाइम्स ऑफ इण्डिया (1924), चेन्नई का दि स्वराज्य (1935), कोलकता का दि फ्री इंडिया (1934), नई दिल्ली का दि हिन्दुस्तान टाइम्स (1938), इलाहाबाद के दि लीडर (1920) और दि पायोनियर (1928) तथा पटना का दि सर्चलाइट दैनिक (1950) शामिल थे।

किन्तु रामा राव को ऐतिहासिक ख्याति मिली जब उन्होंने जवाहरलाल नेहरू के दैनिक दि नेशनल हेरल्ड (1938-1946) का लखनऊ में सम्पादन किया। ढेर सारे अखबार बदलने पर रामा राव के एक साथी ने टिप्पणी की कि: ”वे अपने एक जेब में संपादकीय की प्रति और दूसरे में त्यागपत्र रखते थे।”

महात्मा गांधी ने श्री रामा राव को मेरा जुझारू सम्पादक कहा था। बापू ने दैनिक नेशनल हेरल्ड को ब्रिटिश राज द्वारा बन्द करवा देने की हरकत हो राष्ट्रीय आन्दोलन की त्रासदी बताया था।

नेताजी सुभाषचंद बोस उन्हें ”निष्पक्ष लेखक” मानते थे। चक्रवर्ती रामगोपालाचारी रामा राव को ”निर्भीक संपादक” कहते थे। अटल बिहारी बाजपेयी उन्हें ”भारतीय पत्रकारिता का द्रोणाचार्य मानते थे।” भारत के पूर्व प्रधान न्यायमूर्ति जगदीश शरण वर्मा तथा स्व. उपराष्ट्रपति कृष्ण कान्त ने उनकी जन्मशती पर डाक टिकट जारी किया। इस समारोह में न्यायमूर्ति श्री वर्मा ने कहा था: ”आजाद भारत अपनी मजबूत नींव के लिये स्व. श्री के. रामा राव जैसे संपादक का ऋणी रहेगा।”

चीराला (आंध्र प्रदेष) में 9 नवम्बर 1896 को जन्मे, तेलुगु-भाषी रामा राव ने मद्रास विश्वविद्यालय से 1917 में अंग्रेजी साहित्य से स्नातक परीक्षा पास की और वहीं अंग्रेजी भाषा का अध्यापन भी किया। पत्रकारिता में उनका प्रवेश चेन्नई में ब्रह्मसमाज की पत्रिका दि ह्यूमेनिटी से हुआ। फिर आचार्य टी.एल. (साधू) वासवानी के दि न्यू टाइम्स (1919) में कराची में उन्होंने कार्य किया। अपने अग्रज, संपादक के. पुन्नय्या के दैनिक दि सिंध आब्जर्वर में सह-संपादक बने।

चार दशक के अपने पत्रकारी जीवन में रामा राव ने दो विश्व युद्धों के दौर की घटनाएं, तिलक-गांधी युग का स्वाधीनता-संघर्ष और स्वातंत्रयोत्तर भारत में आर्थिक नियोजन, निर्गुट विदेश नीति तथा मीडिया आधुनिकीकरण को देखा और उन पर लिखा।
अगस्त 1941 में रामा राव को दि नेशनल हेरल्ड में जेल या जंगल शीर्षक के संपादकीय लिखा था। ब्रिटिश हुकूमत ने छह माह का कारावास और जुर्माना की सज़ा दी थी। इस संपादकीय में उन्होंने लखनऊ कैंप जेल में कांग्रेसी सत्याग्रहियों पर हुये बर्बर अत्याचार की भर्त्सना की थी।

कई पुस्तकों के लेखक, रामा राव ने अपनी आत्मकथा दि पैन एज़ माई स्वोर्ड लिखी। अखिल भारतीय समाचारपत्र संपादक सम्मेलन (आल-इण्डिया न्यूजपेपर एडिटर्स कान्फ्रेंस, 1940) के संस्थापकों में रामा राव थे। देश के सम्पादकों ने मुम्बई में 1942 में हुए अपने ।प्छम्ब् अधिवेशन में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिए रामा राव को लखनऊ जेल में कैद रहते ही निर्वाचित किया था। भारतीय श्रमजीवी पत्रकार फेडरेशन (इंडियन फेडरेशन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स) के उपाध्यक्ष (1950) की भूमिका में उन्होंने फेडरेशन के संविधान की रचना की। श्रमजीवी पत्रकारों के देश-विदेश के अधिवेशनों में शिरकत की। प्रथम भाषाई-राज्य आंध्र के निर्माण हेतु जनान्दोलन में सक्रिय रहे।

रामा राव के पिता श्री कोटमराजू नारायण राव संस्कृत के पंडित तथा स्कूल के हेडमास्टर (1898) थे। उनकी मां वेंकायम्मा ने ब्रिटिश कलक्टर (गुंटूर जनपद) के विरुद्ध 1899 में असहयोग करने और टैक्स न देने हेतु ग्रामवासियों को संगठित किया था। उनके चचेरे भाई कोटमराजू ‘बोम्बू’ रामय्या आंध्र के प्रथम क्रान्तिकारी थे, जिन्होंने 1910 में कठ्ठेश्वर (तेनाली) में बम बनाया था।

रामा राव ने अंग्रेजी भाषा की कवियित्री और ज्योतिषी सरस वाणी से सागरतटीय मछलीपत्तनम नगर (आन्ध्र प्रदेश) में 1922 में विवाह किया। इस पाणिग्रहण कार्य को मछलीपत्तनमवासी, बाद में कांग्रेस अध्यक्ष, स्वतंत्रता-सेनानी और मध्य प्रदेश के राज्यपाल स्व. डा. बी. पट्टाभि  सीता रामय्या ने संपन्न कराया था।

लेखक : विक्रम राव