
मंज़ूर अहमद
कोरोना महामारी ने दुनिया की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ कई देशों के लोकतांत्रिक ताने-बाने को भी गहरा जख्म दिया है। इसने हंगरी में जहां संसदीय चुनाव पर रोक लगा दी और प्रधानमंत्री विक्टर ओरवन को अनंतकाल तक पद पर बने रहने का कानून बनवाकर अधिनायकवादी बना दिया वहीं इसने रूस के राष्ट्रपित व्लादिमीर पुतिन को 2036 या यूं कहें आजीवन सत्ता में बने रहने का मार्ग प्रशस्त करने वाले जनमत संग्रह पर भी ब्रेक लगा दिया। इसके अलावा महामारी ने फ्रांस, भारत सहित दुनिया के कई देशों में होने वाले क्षेत्रीय चुनावों पर भी असर डाला है, लेकिन अगर अमेरिकी राजनीति की बात करें तो ऐसा लगता है यह महामारी राष्ट्रपति ट्रंप के लिए एक अभूतपूर्व अवसर साबित हुई है।
वैसे तो बर्नी सैंडर्स के राष्ट्रपित पद की उम्मीदवारी गवांने के बाद विपक्षी उम्मीदवार जो बाईडेन भारत के विपक्ष की तरह ही कमजोर हैं। ऐसे में राष्ट्रपति ट्रंप का जनवरी-2021 का चुनाव काफी आसान लगता है। दूसरी तरफ राष्ट्रपति ट्रंप अमेरिका में कोरोना महामारी को रोकने में दिखाई गई शिथिलता को चीन और डब्ल्यूएचओ पर थोप कर अपनी नाकामी पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं और बहुत हद तक कामयाब भी हुए हैं। आपको हैरानी होगी कि यह वही ट्रंप हैं जो कोरोना से 35 से अधिक लोगों के मरने और हजारों के संक्रमित होने के बाद भी चुनावी रैली में मशगूल थे और जब विपक्षी नेता बर्नी सैंडर्स महामारी की रोकथाम के लिए ट्रंप से ठोस कदम उठाने को कह रहे थे तो ट्रंप चुनावी रैलियों में सैंडर्स का मजाक उड़ा रहे थे, लेकिन जब महामारी ने अमेरिका में हाहाकार मचाया तो ट्रंप ने तुरंत रंग बदला और सारा दोष पूर्व राष्ट्रपति बाराक ओबामा पर थोप दिया। लेकिन जब यह आरोप कारगर साबित नहीं हुआ तो कोरोना को चीनी वायरस नाम देकर अपनी गलती छिपाने की नाकाम कोशिश करने लगे। बाद में जब ट्रंप को लगा कि इस बदनामी से नाराज कहीं चीन मेडिकल सामानों का आपूर्ति बंद कर दिया तो यह शब्द उनको काफी महंगा पड़ जाएगा, तो दिन रात चीनी वायरस करने वाले ट्रंप और वुहान वायरस करने वाले विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने तुरंत रंग बदला और इस शब्द का नाम लेना बंद कर दिया।
बाद में ट्रंप को लगा कि अपने नाकामी को छुपाने के लिए किसको तो बली का बकरा बनाना ही पड़ेगा तो उन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सबसे आसान शिकार लगा और फिर क्या था कोरोना महामारी का सारा दोष डब्ल्यूएचओ पर मढ़ दिया। लेकिन ट्रंप के आरोपों पर पलटवार करते हुए डब्ल्यूएचओ ने सफाई दी कि उसी के आगाह करने पर ट्रंप ने जनवरी में अमेरिका और चीन के बीच उड़ाने बंद किया था, लेकिन प्रभावी कदम मार्च में उठाया। अगर वह ऐहतियाती कदम पहले ही उठाए होते तो अमेरिका में ऐसी भयावह स्थिति कभी नहीं आती।
अब आपको ट्रंप का एक दूसरा बयान याद दिलाते हैं जिसमें उन्होंने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा था कि यदि इस महामारी से हम अमेरिका में मरने वालों की संख्या को दो लाख तक नियंत्रित कर लेते हैं तो यह अमेरिका के लिए कामयाबी होगी। अब जरा गौर करें, ट्रंप के इस बयान के पीछे भी एक राजनीति है, क्योंकि राष्ट्रपति ट्रंप को लगा कि यदि इस महामारी से दो लाख तक मौतें होती हैं तो वे चुनावी रैलियों में इसे अपनी बड़ी उपलब्धि कह कर प्रचारित करेंगे। जबकि अगर देखा जाए तो कोरोना महामारी अमेरिका में अभी अपने सबसे भयानक रुप में हैं और वहां मौतों का आंकड़ा अभी 40 हजार भी नहीं पहुंचा है, लेकिन ट्रंप अभी से ही कोरोना महामारी की रोकथान के लिए उठाए गए कदमों को अपनी दूरदर्शिता और अभूतपूर्व कदम बताते हुए बखान करने में लग गए हैं। बता दें कि ट्रंप स्वयं का महिमामंडन करने से कभी चूकते नहीं हैं और उपराष्ट्रपति, विदेशमंत्री से लेकर दूसरे बड़े अधिकारी भी चारण की तरह उनका महिमामंडन करते रहते हैं।
दूसरी तरफ अमेरिकी डेमोग्राफी और चुनावी परिणाम पर नजर डालें तो महमारी की रोकथाम में ट्रंप की तरफ से हुई बदइंतजामी का उनको कुछ नुकसान होता नहीं दिख रहा है, क्योंकि इस महामारी से सबसे बुरी हालत न्यूयार्क शहर की है जिसको ट्रंप के विरोधियों का गढ़ कहा जाता है। साथ ही देश के दूसरे हिस्से जहां पर इस बीमारी का कुछ अधिक असर हैं वहां भी ट्रंप का जनाधार मजबूत नहीं है, ऐसे में इस महामारी ने ट्रंप को राजनीतिक रुप से कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है। वहीं ट्रंप के सबसे अधिक जनाधार वाले कैलिफोर्निया और दक्षिण अमेरिका के राज्यों और ग्रामीण क्षेत्रों में इसका असर बहुत ही कम है और इससे ट्रंप के वोट पर कोई नाकारात्मक प्रभाव पड़ता नहीं दिख रहा है। दूसरी तरफ अमेरिकी इतिहास पर नजर डालें तो राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का चुनाव जीतना अमेरिका में दक्षिणपंथी और व्हाईट सुप्रीमेसी विचारधारा वालों के लिए एक बड़ा झटका था और अमेरिका के बौद्धिक वर्ग और अफ्रीकी अमेरिकियों के लिए सुनहरा अवसर था, लेकिन ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद दक्षिणपंथ और ह्वाईट सुप्रीमेसी विचारधारा के लोगों को अपने सुनहरे दौर के वापस आने की खुशी है। और यहीं कारण है कि ट्रंप द्वारा ह्वाइट हाउस के कई कायदे-कानूनों को तार-तार करने के बाद भी बाद भी उनके समर्थकों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है और ट्रंप की तमाम गलतियों और झूठे भाषणों पर उनके समर्थक खूब तालियां पीटते हैं।
अब बात करते हैं विश्व राजनीति की। इसमें कोई शक नहीं कि दुनिया के कई देशों खासकर खाड़ी के हुक्मरानों को अमेरिका अपने पिट्ठू की तरह यूज करता रहा है, लेकिन ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की नीति की खामियों ने खाड़ी और यूरोप के देशों में अविश्वास पैदा कर दिया है। इसके कारण ट्रंप के आने के बाद अमेरिका के नए दोस्त तो नहीं बने, लेकिन पुराने दोस्त भी दूर हुए हैं और उस खाली जगह को भरने के लिए रुस खाड़ी में अपनी सामरिक स्थिति और चीन यूरोप व अफ्रीका में अपनी व्यापारिक स्थित मजबूत कर रहा है।
वहीं अगर विश्लेषण किया जाए तो चीन और रुस भी यही चाहते हैं कि अमेरिका में अगले चार सालों के लिए ट्रंप ही राष्टपति बने रहे, क्योंकि ट्रंप की गलतियों का फायदा उठाकर चीन अपने विस्तारवादी और रूस अपने पूराने सोवियत संघ के सुनहरे दौर को वापस लाने के लिए वेताब हैं। अतः अगर बात करेंगे कि इस कोरोना महामारी ने दुनिया को क्या दिया है तो हम यही कहेगें कि इसने दुनिया को पहले से अधिक तानाशाह और चीन व रूस जैसे दो नए लीडर दिए हैं।