केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों में अहम पदों को संभालने के लिए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने हाल ही में लैटरल एंट्री या कहें कि पार्श्व प्रवेश के माध्यम से योग्य उम्मीदवारों के चयन के लिए एक विज्ञापन अखबारों में निकलवाया था। इसी को लेकर देशभर में गैर-जरूरी हंगामा खड़ा हो गया या निहित स्वार्थ से भरे लोगों द्वारा खड़ा कर दिया गया था। बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर केंद्र सरकार में लैटरल एंट्री पर रोक लगा दी गई है। यूपीएससी से कहा गया है कि वो लैटरल एंट्री से नियुक्ति न करे। कार्मिक विभाग के मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी चेयरमैन प्रीति सूदन को पत्र लिखकर कहा है कि इस नीति को लागू करने में सामाजिक न्याय और आरक्षण का ध्यान रखा जाना चाहिए।
बात बस इतनी सी थी कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने एक विज्ञापन जारी कर कहा था कि केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में वरिष्ठ पदों पर काम करने के लिए “प्रतिभाशाली भारतीय नागरिकों” की तलाश है। इन पदों में 24 मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के शामिल हैं, जिनमें कुल 45 पदों पर भर्ती होनी है। इस विज्ञापन के छपने के बाद कांग्रेस के नेता राहुल गांधी सबसे ज्यादा हंगामा काट रहे थे। कह रहे थे कि केन्द्र सरकार सरकारी विभागों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े लोगों को भर्ती करना चाहती है। हालांकि हमेशा की तरह राहुल गांधी ने आरोप लगाते हुए किसी तरह के प्रमाण देने की जरूरत तक नहीं महसूस नहीं की। वे वैसे भी राहुल गाँधी जी हवाई बातें-दावे करने में माहिर हैं।
काश, राहुल गांधी को यह पता तो होगा ही कि देश के दस सालों तक प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह को देश का वित्त सचिव तक लेटरल एंट्री के माध्यम से ही बनाया गया था। वह तो तब तक तो वे दिल्ली विश्व विद्लाय में पढ़ा रहे थे। इसी तरह से मंटेक सिंह आहलूवालिया को भी कांग्रेस सरकार ने ही योजना आयोग का चेयरमेन बना दिया था। उनकी नियुक्ति भी उसी तरह से हुई थी जिस तरह से डॉ मनमोहन सिंह की खुद की हुई थी। इसलिए यह कहना सरासर गलत है कि मौजूदा सरकार कुछ विभागों के लिए बाहरी अभ्यर्थियों को नौकरी देकर गलत कर रही है।
न जाने क्यों यूपीएससी के इस कदम ने नौकरशाही में लैटरल एंट्री पर बहस छेड़ दी। राहुल गांधी और कांग्रेस के कुछ नेता कह रहे थे कि यूपीएससी की भर्ती की यह प्रक्रिया “पीछे के दरवाजे से भर्ती” है। इसे अंग्रेजी में बैक एंट्री भी कहा जा रहा है। अब कांग्रेस के नेताओं से यह तो पूछा ही पूछा जाना चाहिए कि सैम पित्रोदा और रघुरामन राजन कौन थे ? उन्हें किस आधार पर सरकार में लैटरल एंट्री के तहत ऊंचे पदों पर नौकरी दी गई थी ?
अब जान लेते हैं कि लैटरल एंट्री होता क्या है? दरअसल नौकरशाही में लेटरल एंट्री का मतलब है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) जैसे पारंपरिक सरकारी सेवा कैडर के बाहर के व्यक्तियों को सरकारी विभागों में मध्यम और वरिष्ठ स्तर के पदों पर उनकी योग्यता और अनुभव के आधार पर भर्ती करना। इससे पहले लैटरल एंट्री के जरिए 2018 में पहली बार रिक्तियों की घोषणा की गई थी। लैटरल एंट्री करने वाले व्यक्तियों को आमतौर पर तीन से पांच साल के अनुबंध पर नियुक्त किया जाता है, जिसमें प्रदर्शन और सरकार की आवश्यकताओं के आधार पर विस्तार की संभावना होती है। इन व्यक्तियों से ऐसी विशेषज्ञता लाने की उम्मीद की जाती है जो शासन और नीति कार्यान्वयन में जटिल चुनौतियों का समाधान करने में मदद कर सके।
यूपीएससी के हालिया विज्ञापन से साफ था कि उसे तीन स्तरों पर योग्य उम्मीदवारों की तलाश थी: संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव। इन पदों पर तैनात अफसर अक्सर विभागों के भीतर विशिष्ट विंगों के प्रशासनिक प्रमुख या उनके सहायक के रूप में कार्य करते हैं और प्रमुख निर्णय लेने वाले होते हैं। लैटरल एंट्री के पीछे सरकार का तर्क यह रहा है कि नई प्रतिभा लाना और प्रशासन में कुशल जनशक्ति की उपलब्धता बढ़ाना।
आप गौर करें कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जब बोलते हैं, वे तब सरकार को सदैव कोसते ही रहते हैं। लोकतंत्र में सदा स्वस्थ्य वाद-विवाद और सार्थक संवाद जारी रहना चाहिए। हमेशा ही बेवजह विवाद नहीं खड़े करने चाहिए। खडगे जी कह रहे हैं कि लैटरल एंट्री से सरकारी नौकरियों में हाशिए पर रहने वाले समुदायों को नुकसान होगा। राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को भी लैटरेल एंट्री पर आपत्ति है। अब इन ज्ञानी नेताओं को कोई बताए कि लैटरल एंट्री का विचार तो सर्वप्रथम कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दौरान ही विकसित किया गया था।
लैटरल एंट्री पर महाभारत करने वालों को पता होना चाहिए कि यूपीएससी की भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी है। इसलिए इस मसले पर विवाद खड़ा करने का कोई ठोस आधार नहीं है। ऐसा करने वाले संवैधानिक संस्थानों पर आघात कर रहे हैं। दरअसल यह तो कहना पड़ेगा देश में सियासत के संसार का माहौल बहुत विषाक्त हो चुका है।
सरकार के हरेक कदम का विपक्ष माखौल उड़ाता रहता है या उसमें कमियां निकालने की कोशिश करता रहता है। अगर यही रणनीति विपक्ष अपनाता रहा तो सरकार अपना कोई काम कर ही नहीं सकेगी। यकीन मानिए कि विपक्ष से यह कोई नहीं कह रहा है कि वह सरकार को उसकी किसी जन विरोधी नीतियों पर न घेरे। अवश्य घेरे और उसकी जितनी चाहे निंदा करे। पर विपक्ष को सरकार के फैसलों की सोच-समझकर ही आलोचना करनी चाहिए। अगर उसने यह न किया तो उसकी जनता के बीच छवि तार-तार हो जाएगी और वह एक ज़िम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाने से वंचित हो जायेगा।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)