कोरोना की लहर के बीच वैक्सीन का खेल


भारत में सीरम इंस्टीटयूट दवारा बनाया गया एस्ट्रोजेनेका की जिस कोविशील्ड वैक्सीन का इस्तेमाल भारत में किया जा रहा है, उस वैक्सीन को यूरोप के कई देशों ने प्रतिबंधित कर दिया है। यूरोप में वैक्सीन लगाने के बाद कुछ लोगों की मौत की खबरें भी आयी। इसके के बाद यूरोप के कई देशों ने एस्ट्रोजेनेका की वैक्सीन को प्रतिबंधित कर दिया है।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
मत-विमत Updated On :

कोरोना की एक लहर फिर आ गई है। कई राज्य कोरोना के चपेट में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की है। उन्होंने मुख्यमंत्रियों से वैक्सीनेशन में तेजी लाने को कहा है। लेकिन प्रधानमंत्री की इस अपील के बीच एक महत्वपूर्ण खबर यह आ रही है। वैक्सीन लगवाने वाले लोग भी कोरोना पॉजेटिव हो रहे है। ये खबरे वैक्सीन की सफलता पर ही सवाल खड़ी कर रही है। इसका मतलब साफ है। वैक्सीन लगाने का लाभ लोगों को कितना होगा, वैक्सीन कोरोना से कितना बचाव कर पाएगा, यह वक्त बताएगा।

फिलहाल वैक्सीन लगाने वाले लोगों के कोरोना पॉजेटिव पाए जाने की खबरों ने वैक्सीन की गुणवता और असर पर सवाल तो खड़ा कर ही दिया है। दूसरी तरफ वैक्सीन के साइड अफेक्ट पर भी सवाल उठ रहे है। भारत में सीरम इंस्टीटयूट दवारा बनाया गया एस्ट्रोजेनेका की जिस कोविशील्ड वैक्सीन का इस्तेमाल भारत में किया जा रहा है, उस वैक्सीन को यूरोप के कई देशों ने प्रतिबंधित कर दिया है। यूरोप में वैक्सीन लगाने के बाद कुछ लोगों की मौत की खबरें भी आयी। इसके बाद यूरोप के कई देशों ने एस्ट्रोजेनेका की वैक्सीन को प्रतिबंधित कर दिया है।

सीरम इंस्टीटयूट की कोवीशील्ड वैक्सीन एस्ट्रोजेनेका की वैक्सीन है। इसी एस्ट्रोजेनेका के वैक्सीन पर यूरोपीए देशों ने प्रतिबंध लगाया है। यूरोप के 14 देशों ने इस वैक्सीन को प्रतिबंधित कर दिया है। इसमें नीदरलैंड, आयरलैंड, डेनमार्क, ऑस्ट्रिया, इटली, बुल्गारिया, रोमानिया, एस्टोनिया, लिथुआनिया, लक्जमबर्ग, लातविया और गैर-यूरोपीय संघ (EU) के देश नॉर्वे और आइसलैंड शामिल है।

इन देशों में वैक्सीन लगवाने वाले लोगों में ब्लड क्लॉटिंग की रिपोर्ट आयी। इसके बाद यहां की सरकारों ने एहतियातन वैक्सीन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। एशियाई देश थाईलैंड ने भी इसी कारण से थाईलैंड में इस वैक्सीन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है।

दिलचस्प बात है कि कई यूरोपीए देशों में प्रतिबंध के बावजूद भारत में इस वैक्सीन का इस्तेमाल लोगों पर किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में यहां तक कह दिया कि वैक्सीन के वेस्टेज पर सतर्क रहें। वैक्सीन को एक्सपायरी डेट से पहले जरूर इस्तेमाल करें। उन्होंने वैक्सीन एक्सपायर न हो जाए इसलिए वैक्सीनेशन ड्राइव को और तेज करने को कहा। उन्होंने राज्यों से आग्रह किया कि वैक्सीन के वेस्टेज पर ध्यान रखे।

प्रधानमंत्री के अनुसार फिलहाल प्रतिदिन करीब 30 लाख वैक्सीन रोज लग रहे है, इसे और तेज किया जाए। प्रधानमंत्री को वैक्सीन की एक्सपायरी डेट की चिंता दिखी। उन्होंने मुख्यमंत्रियों से कहा कि जो वैक्सीन पहले आई है, उसका उपयोग पहले होना चाहिए।

आखिर कोविशील्ड वैक्सीन पर क्यों सवाल उठ रहे है ? भारत में भारी संख्या में फ्रंट लाइन वर्करों को इस वैक्सीन का दूसरा डोज भी लगाया जा चुका है। भारत में ज्यादातर लोगों पर कोविशील्ड वैक्सीन का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन बुरी खबर यह है कि 28 दिनों के अंतराल पर दूसरा डोज दिए जाने के बाद भी कई राज्यों में हेल्थ वर्कर कोरोना पॉजेटिव हो गए है।

विशेषज्ञों का दावा है कि 28 दिन के अंतराल के बाद लगने वाले दूसरे डोज के कुछ दिनों पर शरीर में एंटीबॉडी बनने लगती है। लेकिन दिलचस्प बात है कि दूसरे डोज के कुछ दिनों के बाद भी वैक्सीन लगवाने वाले कई लोग कोरोना पॉजेटिव हो गए है। मध्य प्रदेश, चंडीगढ़ और उतरांचल में वैक्सीन लगवाने के बाद भी कुछ फ्रंट लाइन वर्कर कोरोना पॉजेटिव पाए गए। दूसरी डोज लगवाने वाले डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी भी कोरोना पॉजिटव पाए गए है। इसलिए वैक्सीन की सफलता पर सवाल खड़ा हो गया है।

लेकिन वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां किसी भी कीमत पर वैक्सीन की खपत करना चाहती है। पीछे खबर आयी थी कि सीरम इंस्टीटयूट ने सरकार की मंजूरी के बिना ही 20 करोड़ करोना वैक्सीन बना लिए थे। अब यह वैक्सीन एक्सपायरी के नजदीक है। वैसे में वैक्सीन बनाने वाली कंपनी किसी भी कीमत पर एक्सपायरी के नजदीक पहुंच चुके वैक्सीन का इस्तेमाल लोगों पर करना चाहती है।

करोड़ों वैक्सीन मार्च महीनें के अंतिम तक एक्सपायर हो सकती है, यह खबर भी आ रही है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री ने एक्सपायरी डेट के नजदीक पहुंच चुके वैक्सीनों के इस्तेमाल पर जोर दिया है। ताकि वैक्सीन बनाने वाली कंपनी का वैक्सीन बेकार न जाए, जिसे बिना अनुमति के ही बनाया गया था।

इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन भी अपना खेल खेल रहा है। वैक्सीन की गुणवता पर उठते सवालों के बीच विश्व स्वास्थय संगठन ने नया राग अलापा है। कई लोगों को वैक्सीन लगाए जाने के बाद भी कोरोना पॉजेटिव आने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कोरोना वेक्सीन की दूसरी डोज लगवाने में चार हफ्ते का अंतर काफी नहीं है। बल्कि यह अंतर 12 हफ्ते का होना चाहिए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन कह रहा है कि विभिन्न अध्धयनों से यह पाया गया है कि दो डोज के बीच का अंतराल बढ़ाने पर वैक्सीन का प्रभाव 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। जबकि कुछ समय पहले तक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय यह थी कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के दो खुराकों के बीच 28 दिनों का अंतराल होने पर अच्छा असर होगा। अब विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि यह अंतराल बढ़ाया जाना चाहिए।

यह तय है कि कोरोना से बचाव के लिए जिन वैक्सीनों का इस्तेमाल लोगों पर हो रहा है, उसके भी खतरे है। भारत जैसे देश में भी वैक्सीन लगवाने वालों में कुछ साइड अफेक्ट नजर आए है। कुछ लोगों की जान भी गई है। यह भी सच्चाई है कि दुनिया भर में अनुसंधानकर्ताओं ने कोरोना के वैक्सीन विकसित करते वक्त वैज्ञानिक मानदंडों का घोर उल्लंघन किया है। वैक्सीन विकास के स्टैंडर्ड फारमूले की धज्जियां वैजानिकों ने उड़ायी गई है। किसी भी बीमारी की वैक्सीन के विकास में कम से कम 6 साल लगते है। लेकिन कोरोना की वैक्सीन 1 साल में बना ली गई।

इस वैक्सीन का भविष्य में मानवजाति पर क्या असर होगा, यह वैज्ञानिकों को खुद ही नही पता है। कई समाजशास्त्री और अर्थशास्त्री इसे आपदा में अवसर बता रहे है, जिसमें मानव जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है। ये खिलवाड़ सिर्फ पैसे के लिए किया जा रहा है। इसमें दुनिया भर के कई देशों की सरकारें और फार्मा कंपनियां शामिल है। यही कारण है कि बिना चरणबद अनुसंधान के वैक्सीन को विकसित किया गया। तमाम विकसित वैक्सीनों के प्रति लोगों में इतना ज्यादा अविश्वास पैदा हो गया है कि अब तो हेल्थ वर्कर और डॉक्टर भी इस वैक्सीन को लगवाने को तैयार नहीं हो रहे है।