विशाखापट्टनम में कैसे लीक हुई गैस? चली गई 11 लोगों की जान


सड़क दुर्घटना या किसी प्राकृतिक हादसे में इंसान की तत्काल मौत हो जाती है। कोरोना वायरस भी 14-15 दिन या एक महीने में अपना काम पूरा कर देता है लेकिन गैस रिसाव का मारा एक दिन, महीना साल नहीं बल्कि कई साल में तिल- तिल कर मरता है।मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आज से करीब 36 साल पहले 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के ठीक एक माह बाद हुई गैस रिसाव की घटना आज भी दिल दहला देती है।



भारत जैसा गरीब देश कोरोना जैसी वैश्विक आपदा का सामना कर ही रहा है। इसी बीच आन्ध्र प्रदेश के खूबसूरत समुद्रतटीय शहर विशाखापत्तनम में गुरूवार 7 मई की सुबह हुई गैस रिसाव की घटना ने एक और आफत से दो -चार करा दिया। शहर के एक पोलिमर कारखाने में तकनीकी गलती और रखरखाव संबंधी लापरवाहियों के चलते हुई गैस रिसाव की इस घटना में कई लोगों के मारे जाने और कईयों के हताहत होने की खबर है। जब चारों तरफ से किसी न किसी रूप में लोगों के मरने और घायल होने की ख़बरों का सिलसिला जारी हो तब गैस रिसाव की घटना भी उन घटनाओं में एक हिस्सा बन कर रह जाती है। गैस रिसाव से होने वाली मौत बहुत अधिक पीड़ाजनक और लम्बा समय लेकर इंसान को मारने का पर्याय मानी जाती है। 

सड़क दुर्घटना या किसी प्राकृतिक हादसे में इंसान की तत्काल मौत हो जाती है। कोरोना वायरस भी 14-15 दिन या एक महीने में अपना काम पूरा कर देता है लेकिन गैस रिसाव का मारा एक दिन, महीना साल नहीं बल्कि कई साल में तिल- तिल कर मरता है। इसका शिकार कई लोग तो पुनर्जन्म होने तक गैस रिसाव से होने वाली मौत का इन्तजार करते रहते हैं। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आज से करीब 36 साल पहले 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के ठीक एक माह बाद हुई गैस रिसाव की घटना आज भी दिल दहला देती है। उस हादसे का शिकार कई लोग तो अभी कुछ साल पहले तक गैस रिसाव के तनाव को झेलते हुए मौत का शिकार हुए हैं। 

गैस की मार न केवल बहुत कष्टदायक बल्कि एक लम्बे अरसे तक इंसान को पीड़ा देने वाली हो जाती है। गैस के रिसाव से जो इंसान किसी तरह बच भी जाते  हैं तो भी उनके जीने की राह बहुत कष्टप्रद हो जाती है। भोपाल गैस हादसे के असंख्य उदाहरण ऐसे भी हैं जो या तो तो किसी तरह की विकलांगता का शिकार हैं या फिर उनकी अगली पीढ़ी किसी तरह की विकलांगता का शिकार हो गई। आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम गैस हादसे के बाद भी इसी तरह के खतरे फिर से परेशान कर सकते हैं।

गौरतलब है कि विशाखापत्तनम का यह हादसा ऐसे समय में हुआ है जब कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते पूरे देश में लगाए गए लॉक डाउन की वजह से तमाम औद्योगिक, व्यावसायिक  और व्यापारिक संस्थानों को अचानक बंद करना पड़ गया था। मार्च के तीसरे सप्ताह (22 मार्च के आसपास) बंद किये गए इन औद्योगिक संस्थानों में विशाखापत्तनम का यह पोलिमर कारखाना भी एक है। जिला प्रशासन ने प्रारंभिक जांच में पाया है कि फैक्ट्री के दो टैंकों में रखी स्तायिरिन styrene गैस से जुड़ी प्रशीतन प्रणाली (Refrigeration System) में तकनीकी खराबी आने के कारण उसमें गैस बनी और फिर उसका रिसाव हुआ। इस गैस का रिसाव इतना ज्यादा था कि कारखाना प्रबंधन को सुबह करीब साढ़े नौ बजे ही पूरा माजरा समझ में आ सका। 

आमतौर पर स्तायिरिन नामक यह पदार्थ तरल रूप में रहता है और उसके भंडारण का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस के नीचे रहने पर वह सुरक्षित रहता है। लेकिन प्रशीतन (रेफ्रीजेरेशन) इकाई में गड़बड़ी के कारण इसके निर्धारित तापमान में बदलाव आ गया और यह रिसाव का कारण बन गया। भोपाल हादसे को याद करते हुए अब विशाखापत्तन की इस घटना के बाद स्थाने लोगों के मन में भी जीने और भविष्य में स्वास्थ्य रहने को लेकर भय पैदा हो गया है। एक अनुमान के हिसाब से इस गैस काण्ड से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में एक वेंकटपुरम में तो रिसाव के समय सुबह पौने चार बजे से लेकर पौने छः बजे तक इतनी धुंध फ़ैल गई थी कि किसी का भी वेंकटपुरम में घुस पाना ही संभव नहीं था। 

जानकारी के मुताबिक फैक्टरी में स्टाइरीन के भंडारण के लिए 3,500 किलोलीटर और 2,500 किलोलीटर के दो टैंक हैं। यह रिसाव 2,500 किलोलीटर वाले टैंक में हुआ। हादसे के वक्त टैंक में 1,800 किलोलीटर स्टाइरीन गैस वेंकटपुरम समेत आसपास के तमाम इलाके में फैल गई। गुरुवार को सुबह तीन बजे के आसपास प्लांट से गैस लीक होना शुरू हो गया था। शुरुआत में इसका असर तीन किमी के दायरे में हुआ इसके बाद लोग बदहवाश होकर घरों से बाहर निकल आए और सेफ ठिकानों की तलाश में इधर-उधर भागने लगे। कई लोग गश खाकर सड़कों पर गिर पड़े। स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने प्रभावित इलाके के लोगों से घर से बाहर निकलने की अपील की। 

कारखानों अथवा इस तरह के किसी औद्योगिक संस्थान में होने वाला यह पहला हादसा नहीं है लेकिन कोरोना संकट के दौर में विशाखापत्तनम की यह पहली घटना है। कहा यह भी जा रहा है कि एक लम्बे अरसे तक बंद रहने की वजह से किसी भी औद्योगिक कारखाने में इस तरह की हादसे हो सकते हैं। इस तर्क में कोई वजन नजर नहीं आता क्योंकि देश में अधिकांश चीनी मिलें ऐसी हैं जहां साल में केवल छः महीने काम होता है और छः महीने ये मिलें बंद रहती हैं अगर बंद होने की वजह से विशाखापत्तनम के इस पोलिमर कारखाने में गैस रिसाव की यह घटना हो सकती है तब तो छः महीने बंद रहने वाली हर चीनी मिल में साल में दो बार ऐसे हादसे दोहराए जाने चाहिए। पर ऐसा होता नहीं है। 

इस सम्बन्ध में एक बात यह जरूर समझ में आती है कि पूरे देश में लॉकडाउन लागू करने का फैसला चूंकि बहुत जल्दबाजी में और तीन घंटे की अल्प अवधि में लिया गया इसलिए ऐसे संस्थानों को व्यवस्थित तरीके से बंद नहीं किया जा सका और कहीं न कहीं कोई चूक जरूर रह गए जिसने इस तरह के हादसों को जन्म दिया, माना जा रहा है कि अगर लॉकडाउन के लिए पर्याप्त समय दिया गया होता तो ऐसे कारखानों को लम्बे समय तक बंद करने के पुख्ता इंतजाम किये जा सकते थे। सवाल यह भी है लॉकडाउन के बाद अभी तो धीरे-धीरे ही कारखानों का खुलना शुरू हुआ है, अगर बंद करते समय ऐसी ही लापरवाहियां दूसरे संस्थानों में भी की गई होंगी या फिर हो गई होंगी, तब तो निकट भविष्य में ऐसे कई अन्य हादसों के लिए हमको तैयार रहना होगा। 

दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ये है कि हमने भोपाल गैस त्रासदी से भी ज्यादा सबक नहीं लिया। 2 और -3 दिसंबर 1984 की वो दरम्यानी रात आज भी कोई कैसे भूल सकता है। भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड कंपनी से मिथाइलआईसोसाइनेट गैस के साथ-साथ कुछ अन्य कैमिकल लीक हुए,अब तक उस हादसे की वजह से करीब 16 हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई है। भोपाल जैसे करीब एक दर्जन ऐसी घटनाएं हैं जिनसे भी हम सबक नहीं ले सके। इनमें 1 नवंबर 2017 को यूपी के ऊंचाहार में स्थित एनटीपीसी के एक प्लांट में हुआ दर्दनाक हादसा, 27 दिसंबर 1975 को झारखंड के धनबाद में स्थिति चासनाला में हुआ हादसा, 29 अक्टूबर 2009 को राजस्थान के जयपुर  स्थित इंडियन ऑयल के एक डिपो में हुआ हादसा और 23 सितंबर 2009 को छत्तीसगढ़ के कोरबा में हुआ हादसा ये देश में होने वाली कुछ ऐसी घटनाएं हैं जिनसे हम सबक नहीं ले सके। भोपाल त्रासदी तो दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी मानी जाती है। भोपाल के बाद विश्व की अन्य नौ बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में चेर्नोबिल और फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के साथ ही ढाका के राणा प्लाजा इमारत ढहने की घटना भी इसमें शामिल हैं।