पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव : महंगाई, बेरोजगारी और हिंदुत्व के बीच फंसा


तृणमूल कांग्रेस के कुछ विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद, भाजपा का आत्मविश्वास और बढ़ा है। हालांकि अहम सवाल यही भी है कि टीएमसी छोड़कर भाजपा में जाने वाले नेता क्या ममता बनर्जी के कोटे वाले वोट को भाजपा में ट्रांसफर करवाने में सफल होंगे ?


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
मत-विमत Updated On :

आखिर भाजपा किस आधार पर पश्चिम बंगाल में सत्ता हासिल करने का दावा कर रही है? 2019 में फिर से दिल्ली की गद्दी पर काबिज होने वाले नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में देश के आर्थिक हालात काफी खराब है। बेरोजगारी बड़े पैमाने पर बढ़ी हुई है। आर्थिक मोर्चे पर सरकार पूरी तरह से विफल साबित हुई है। किसान सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। सरकार पर कुछ बड़े व्यापारिक घरानों के हाथों में खेलने का आऱोप लगाए जा रहे है। इसके बावजूद पश्चिम बंगाल के होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा का आत्मविश्वास गजब का दिख रहा है।

तृणमूल कांग्रेस के कुछ विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद, भाजपा का आत्मविश्वास और बढ़ा है। हालांकि अहम सवाल यही भी है कि टीएमसी छोड़कर भाजपा में जाने वाले नेता क्या ममता बनर्जी के कोटे वाले वोट को भाजपा में ट्रांसफर करवाने में सफल होंगे?

एक और कड़वी सच्चाई है। विकास, अच्छे दिन के नाम पर भाजपा को पश्चिम बंगाल में वोट नहीं मिलने वाला है। इस सच्चाई को भाजपा नेता भी जानते है। लेकिन भाजपा के नेताओं को अपने प्रबंधन पर खासा भरोसा है। पश्चिम बंगाल में भाजपा का अति आत्मविश्वास के कई कारण है। बीते लोकसभा चुनावों में भाजपा को पश्चिम बंगाल में अप्रत्याशित जीत मिली थी। राज्य के अंदर हिंदू मुस्लिम विभाजन ने भाजपा का ग्राफ एकाएक बढ़ा दिया था। यही उम्मीद इस समय भी भाजपा को है। उन्हें लगता है कि हिंदू-मुस्लिम विभाजन विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को मदद करेगा।

भाजपा को तृणमूल कांग्रेस से टूट कर आए नेताओं पर भारी भरोसा है। वहीं नागरिकता संशोधन कानून ने भी भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ाया है। भाजपा को लगता है कि इससे पश्चिम बंगाल की मजबूत मतुआ समुदाय उन्हें वोट करेगा। यह तय है कि भाजपा को नरेंद्र मोदी के विकास और न्यू इंडिया पर कोई भरोसा नहीं है। क्योंकि जनता विकास और न्यू इंडिया की हकीकत समझ चुकी है। पश्चिम बंगाल में भाजपा पूरी तरह से धार्मिक और जातीए विभाजन के आधार पर चुनाव लड़ेगी। ठीक उसी तरह से जैसे दिल्ली और झारखंड का विधानसभा चुनाव भाजपा लड़ी थी।

2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में भाजपा को लोकसभा की 18 सीटों पर जीत मिली थी। भाजपा को इस लोकसभा चुनाव में 128 विधानसभा सीतों पर बढ़त मिली थी। 2014 के लोकसभा चुनावों के मुकाबले यह सफलता अप्रत्याशित थी। अगर विधानसभा क्षेत्रों की बढत से तुलना करे तो 2014 के मुकाबले 2019 में भाजपा को काफी ज्यादा सीटों पर बढ़त मिली थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मात्र 28 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली थी।

वैसे 2019 का लोकसभा चुनाव परिणाम पश्चिम बंगाल की प्रकृति से उलट था। पश्चिम बंगाल में भाजपा की इतनी भारी जीत अप्रत्याशित थी। पहली बार पश्चिम बंगाल में हिदू दक्षिणपंथी विचार का उभार देखा गया। आम तौर पर व्यक्तिगत जीवन में घोर धार्मिक बंगाली लोग राजनीतिक जीवन में सेक्युलर विचारधारा के साथ रहे है, लेकिन 2019 में यह धारणा खत्म होती नजर आयी।

जनसंघ के बड़े नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी का गृह राज्य होने के बावजूद पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा का हिंदुत्ववादी एजेंडा 2019 के चुनाव से पहले कभी नहीं चला था। लेकिन 2019 में बंगालियों की एक बड़ी आबादी ने हिंदुत्व की विचारधारा से प्रभावित होकर वोट दिया था। भाजपा का 40 प्रतिशत वोट मिले थे।

निश्चित तौर बंगाल में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ। भाजपा को 40 प्रतिशत वोट और 18 लोकसभा की सीटें पश्चिम बंगाल में मिली। भाजपा की इस सफलता से देश हैरान था। अब विधानसभा चुनाव में भी यही हिंदुत्व कार्ड भाजपा खेलने जा रही है। भाजपा चाहती है कि पेट्रोल और सरसों के तेल की कीमतों का मुद्दा हिंदुत्व की धारा में बह जाए। क्योंकि महंगाई और तेल की कीमतों ने आम जनता की कमर तोड़ दी है, हालांकि भाजपा के नेता बढ़ती महंगाई को लेकर कुतर्को से भरे जवाब दे रहे है।

भाजपा को उम्मीद है कि उतर बंगाल में भाजपा हिंदू-मुस्लिम विभाजन के बल पर अच्छी सीटें हासिल करेगी। भाजपा को जंगल महल के इलाका में भी भाजपा को इस बार सफलता की उम्मीद है। ममता बनर्जी को इस इलाके में बीते दो विधानसभा चुनावों में खासी सफलता मिली है। नरेंद्र मोदी और भाजपा को खासी उम्मीद टीएमसी से टूट कर आए नेताओं से भी है। हालांकि ये नेता ममता बनर्जी के किले में कितना सेंध लगा पाएंगे यह समय बताएगा?

दरअसल तस्वीर के पीछे भी एक और तस्वीर है, जिसे देखना जरूरी है। भाजपा यह जानती है की ममता बनर्जी जमीन पर संघर्ष करती है। ममता बनर्जी के मुकाबले का कोई नेता भाजपा या कांग्रेस में नहीं है जो जमीन पर लड़ाई लड़ सकने की क्षमता रखता है। ममता बनर्जी इस समय देश के अंदर उन गिने-चुने नेताओं में शामिल है, जो सीबीआई, ईडी जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों से भी टकराने की हिम्मत कर रही है।

यही नहीं भाजपा को ईट का जवाब पत्थर से दे रही है। निश्चित तौर पर भाजपा ममता की लडाकू प्रवृति से डरी हुई है। चुनाव आयोग दवारा चुनावों की तिथि की घोषणा के बाद ही ममता ने आयोग पर हमला किया। ममता ने साफ कहा कि चुनाव आय़ोग ने भाजपा के निर्देश पर पश्चिम बंगाल में 8 चरणों मे चुनाव कराने का फैसला लिया है। ममता ने कहा इसके बावजूद भाजपा को वे पश्चिम बंगाल में साफ खत्म कर देंगी।

ममता बनर्जी के आत्मविश्वास के भी कुछ जायज कारण है। यह एक सच्चाई है कि लोकसभा चुनावों में भाजपा को जो सफलता पश्चिम बंगाल में मिली, वो विधानसभा चुनाव में नहीं मिलेगी। क्योंकि परिस्थितियां बदल गई है। 2019 और 2021 में काफी अंतर है। नागरिकता संशोधन कानून की हकीकत मतुआ समुदाय समझ गए है। उन्हें महसूस हो रहा है कि भाजपा इसे सिर्फ चुनावी मुद्दा बना रही है। मतुआ समुदाय को इसका लाभ नहीं मिलेगा।

2019 में चुनावों से ठीक पहले बालाकोट पर हमला करने का आदेश देकर नरेंद्र मोदी ने अपनी एक मजबूत छवि बनायी थी। 2020 में वो छवि चीन के लद्दाख में घुसपैठ के कारण खत्म हो गई है। पाकिस्तान के खिलाफ जमकर बोलने वाले नरेंद्र मोदी लद्दाख में चीनी घुसपैठ पर चुप हो गए। वे चीन का नाम लेने से बचते रहे। उन्होने यहां तक बोल दिया कि चीन ने भारतीय इलाके में घुसपैठ ही नहीं किया है।

पश्चिम बंगाल की जनता 2019 के नरेंद्र मोदी और 2021 के नरेंद्र मोदी में फर्क समझ रही है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ सबसे बड़ा मुद्दा बढती महंगाई है। 25 पैसे की महंगाई पर भी हंगामा मचाने वाले बंगाली जनता पेट्रोल और सरसो के तेल की बढ़ती कीमत से काफी परेशान है। बंगालियों का सबसे प्रिय भोजन मछली है, जिसे बनाने में सरसो का तेल का ही इस्तेमाल होता है। पैसेंजर ट्रेनों के किराए में कई गुणा वृदि ने बंगाल की बड़ी आबादी को प्रभावित किया है।

दिल्ली और झारखंड विधानसभा के चुनाव परिणामो ने भाजपा के आत्मविश्वास को पहले ही काफी चोट पहुंचाया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली और झारखंड में शानदार सफलता हासिल करने वाली भाजपा दोनों राज्यों में विधानसभा चुनावों में बुरी तरह से हारी। लोकसभा चुनावों के कुछ महीने बाद ही दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक ने झारखंड और दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेला। अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ घृणा से भरे भाषण भाजपा नेताओं ने दिए। लेकिन झारखंड और दिल्ली दोनों जगह की बहुसंख्यक हिंदू आबादी ने विधानसभा चुनावों में भाजपा को खारिज कर दिया।

2019 के लोकसभा चुनाव में झारखंड में भाजपा को 14 में से 11 सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन कुछ महीनें बाद ही दिसंबर महीनें में हुए चुनाव में भाजपा की बुरी हार झारखंड में हुई। झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन को जनता ने चुन लिया। भाजपा को 81 विधानसभा क्षेत्रों में से मात्र 25 सीटों पर जीत मिली। राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास भी चुनाव हार गए।

यही कुछ हाल दिल्ली विधानसभा चुनाव में हुआ। यहां 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सारी 7 सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा बुरी तरह से हार गई। दिल्ली में भी भाजपा ने हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेला। लेकिन दिल्ली के बहुसंख्यक हिंदुओं ने भाजपा को बुरी तरह से खारिज कर दिया।

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को जबरजस्त बहुमत मिला। वे दुबारा सत्ता में लौटे। आम आदमी पार्टी को 70 में से 62 सीटों पर जीत मिली। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2019 के लोकसभा चुनावों के महज कुछ महीनों बाद फरवरी 2020 में हुआ था। 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ।

2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन ने बिहार में विपक्षी दलों का सूपड़़ा साफ कर दिया था। एनडीए को 39 सीटों पर जीत मिली थी। विपक्ष को 1 सीट पर जीत मिली थी। लोकसभा चुनावों के सवा साल बाद बिहार में विधानासभा चुनाव हुए। सत्ताधारी एनडीए मुश्किल से सत्ता बचा पायी।

एनडीए को 125 सीटें मिली तो विपक्षी महागठबंधन को 110 सीटें मिली। दिल्ली, झारखंड और बिहार के विधानसभा चुनाव परिणामों की समीक्षा करते हुए अगर पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव का आकलन करेंगे तो भाजपा के आत्मविश्वास पर ममता भारी पड सकती है ?