अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की क्या थी योजना


पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के राजनीतिक उत्तराधिकारियों का मानना है काफी हद तक उसी लाइन पर आगे बढ़ रहा है। मंदिर निर्माण की जो लाइन चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री काल में दोनों पक्षों के बीच आपसी सहमति का आधार बनी थी लेकिन कुछ अपरिहार्य कारणों की वजह से इस लाइन पर अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कार्य आगे नहीं बढ़ सका था।



देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर द्वारा स्थापित लुप्तप्राय राजनीतिक संगठन, समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) के कई नेताओं का कहना है कि देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 5 अगस्त 2020 को  अयोध्या में भूमिपूजन के साथ राम के जिस भव्य मंदिर की आधारशिला रखने जा रहे हैं, उस मंदिर का निर्माण कमोबेश उसी लाइन पर होने जा रहा है जो साल 1991 के शुरू में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार द्वारा गठित एक उच्च स्तरीय सलाहकार समिति ने सरकार को सौंपी अपनी एक ख़ास रिपोर्ट में सुझाया था। सजपा तो अब वजूद में नहीं है लेकिन इस पार्टी के नेता समान विचारधारा वाली दूसरी पार्टियों में किसी न किसी रूप में सक्रिय अवश्य हैं। 

कई सजपा नेता कांग्रेस में हैं तो कई बसपा, राजद अथवा जद (यू ) और बीजद तक अनेक पार्टियों में सक्रिय हैं। सजपा के एक ऐसे पूर्व नेता हैं सीपी राय जो काफी समय तक सपा में सक्रिय थे लेकिन आजकल किसी पार्टी में नहीं हैं लेकिन स्वतंत्र राजनीतिक चिन्तक के रूप में राजनीतिक लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं। राय के मुताबिक देश की सर्वोच्च अदालत (सुप्रीम कोर्ट) ने अयोध्या में विवादित स्थल का स्वामित्व मंदिर पक्ष को सौंपने के साथ ही मस्जिद निर्माण के लिए अलग से भूमि की व्यवस्था करने के आदेश भी सरकार को दिए थे ताकि दोनों ही पक्षों के लोग अपनी-अपनी जरूरत के उपासना स्थलों की स्थापना कर सकें। सुप्रीम कोर्ट के इसी आदेश के अनुपालन में 5 अगस्त को अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन शिलान्यास कार्यक्रमों का आयोजन होने जा रहा है।

सीपी राय के मुताबिक़ यह सब चंद्रशेखर जी को नरेश चन्द्र समिति द्वारा सुझाए गए सुझावों के आधार पर ही हो रहा है। उल्लेखनीय है कि 1990 की शुरुआत में जब छात्र आरक्षण आन्दोलन के चलते वीपी सिंह की सरकार को अधबीच जाना पड़ा था तब कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सजपा नेता चन्द्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने थे। हालांकि यह सरकार भी अधिक समय तक नहीं चल सकी थी क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी की हरियाणा के पुलिस कर्मियों द्वारा की गई कथित ख़ुफ़ियागिरी के आरोप में कांग्रेस ने अधबीच इस सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।

चन्द्रशेखर सरकार जितने महीने भी वजूद में रही उसने कुछ राष्ट्रीय महत्त्व के कई सालों से लंबित ऐसे मसलों को हल करने की दिशा में कदम बढ़ाए थे जो राजनीति को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित कर रहे थे। सीमावर्ती कश्मीर और पंजाब राज्यों की आतंकवादी गतिविधियों को नियंत्रित करने के साथ ही अयोध्या में राम मंदिर मसले का कोई सर्वसम्मत समाधान निकालना भी चन्द्रशेखर सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल था।

इसी काम के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में नियुक्त प्रमुख सचिव नरेश चंद्रा की अध्यक्षता में एक ऐसी कमिटी का गठन तत्कालीन सरकार ने किया था जो मंदिर बनाम मस्जिद विवाद से जुड़े सभी पक्षों के लोगों के साथ ही क़ानून और स्थानीय प्रशासन समेत सभी सम्बंधित एजेंसियों से जुड़े प्रभावशाली व्यक्तियों के साथ बातचीत कर इस मसले का सर्वसम्मत हल निकालने की दिशा में आगे बढ़ सकें। इस कार्य में चन्द्रशेखर के व्यक्तिगत मित्र, वरिष्ठ भाजपा नेता और राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। बताते हैं कि कई दौर की चर्चाओं के बाद सभी पक्षों के बीच इस तरह की सहमति बन चुकी थी कि अयोध्या में मंदिर के साथ ही मस्जिद के निर्माण का भी विकल्प अवश्य रखा जाए।

राय के मुताबिक़ व्यक्तिगत स्तर पर चंद्रशेखर भी हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोगों से अलग- अलग मिल कर उनको यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि दोनों ही लोगों को रहना इसी देश में है तो आपस में लड़ कर रहने के बजाय मिल जुल कर क्यों न रहें। एक तरफ चंद्रशेखर हिन्दू समुदाय के लोगों को बातों-बातों में यह भी समझा देते थे कि जब सोमनाथ के मंदिर पर हमला हुआ था और मुट्ठीभर मुग़ल आक्रमणकारी सबकुछ लूट कर ले गए थे तब कहां थे वो लोग जो आज मारने-काटने की बात करते हैं। इसी तरह मुस्लिम समुदाय के लोगों को वो यह बात आसानी से समझा देते थे कि अल्पसंख्यक लोगों को अपना वजूद बचाए रखने के लिए समझदारी से काम लेना चाहिए।

इस तरह की समझ विकसित होने के बाद दोनों ही पक्षों के बीच इस तरह की सहमति मंदिर बनाम मस्जिद मामले में बन गई थी कि अयोध्या में दस किलोमीटर के आसपास का एक ऐसा बड़ा क्षेत्र चिन्हित किया जाए जिसके पूर्वी छोर पर मंदिर और पश्चिमी छोर पर मस्जिद का निर्माण किया जा सके। इस व्यवस्था के तहत मंदिर और मस्जिद बनाने के बाद भी दोनों धर्म स्थलों के बीच कम से कम 6 -7 किलोमीटर क्षेत्रफल का स्थान तो बच ही जाता। बीच के इसी स्थल का उपयोग खेल का मैदान, पुस्तकालय, स्कूल और अस्पताल जैसे परिसर के लिए किया जा सकता था।
किसी वजह से इस सहमति पर काम आगे नहीं बढ़ सका। बताते हैं कि विश्व हिन्दू परिषद् ने इस बारे में अपना अंतिम पक्ष रखे के लिए कुछ समय और मांगा था लेकिन कभी खुलासा  नहीं किया, जिसकी वजह से मंदिर अधर में लटक गया था।नरेश चंद्रा कमिटी की सिफारिश में यह भी साफ़ था कि मंदिर या मस्जिद निर्माण में किसी भी सरकार की किसी तरह की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए विशुद्ध रूप से धर्मगुरु ही मंदिर और मस्जिद निर्माण के पवित्र कार्यों को संपन्न करें।नौकरशाह के रूप में चंद्रा को यह जिम्मेदारी इसलिए भी दी गई थी क्योंकि वो तत्कालीन प्रधानमंत्री के विश्वासपात्र होने के साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव भी रह चुके थे।