जब रिफार्म से अमेरिका-यूरोप के किसानी में तब्दीली नहीं आयी तो भारत में कैसे आएगी


भारत सरकार को यह पता होना चाहिए कि अमेरिका में रिफार्म के बाद भी खेती का संकट बढ़ा है। वहां रिफार्म, उदारीकरण, कारपोरेटीकरण के बावजूद एक किसान को औसत सलाना सब्सिडी 60 हजार डालर मिल रही है। अमेरिका सलाना लगभग 45 अरब डालर किसानों की सब्सिडी पर खर्च कर रहा है।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
मत-विमत Updated On :

किसानों के संकट पर अब 26 फरवरी को ग्लोबल वेबिनार का आयोजन होगा। इसमें दुनिया भर के किसान नेताओं के शामिल होने की संभावना है। उम्मीद की जा रही है कि इस वेबिनार में विकसित देशों के किसान भी शामिल होंगे। यूरोप और अमेरिका में भी कृषि क्षेत्र में आए संकट पर बातचीत होगी। दरअसल दिल्ली की सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन ने पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया है।

दुनिया के कई देशों के किसान इस किसान आंदोलन के बाद अपने मुल्कों में किसानी पर आए संकट पर विचार विमर्श कर रहे है। खेती क्षेत्र में किए गए रिफार्म और कारपोरेट खेती के फायदे और नुकसान पर बहस हो रही है। दरअसल यूरोप और अमेरिका कृषि क्षेत्र में बहुत पहले ही कई रिफार्म कर चुके है। लेकिन इसका फायदा वहां के किसानों को नहीं मिला। अमेरिका समेत पश्चिम के कई देश कृषि क्षेत्र में संकट का सामना कर रहे है।

कृषि क्षेत्र का संकट वैश्विक संकट है। इस संकट से दुनिया के ज्यादातर देश परेशान है। लेकिन भारत सरकार इसे समझने के बजाए कुछ बड़े कारपोरेट घरानों को खेती हवाले करना चाहती है। कृषि क्षेत्र में निवेश, आधुनिकीकरण के नाम पर जिस मॉडल को केंद्र सरकार भारत में लाना चाहती है वो अमेरिका में फेल हो चुकी है। यूरोप में भी यह मॉडल फेल हो गया है। वहां के छोटे किसान तबाह हो गए।

अमेरिका जैसे देश में छोटे किसानों की हालत काफी खराब है। कारपोरेट खेती का फायदा बड़े कारपोरेट घरानों को अमेरिका में जरूर हुआ। लेकिन जब वैश्विक स्तर पर कृषि उत्पादों की कीमतों में गिरावट हुई तो बड़ी कंपनियां भी तबाह हुई। अमेरिका जैसे देश में छोटे किसानों में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ी है। अमेरिका में किसानों पर इस समय लगभग 400 अरब डालर का कर्ज है। खेती लाभदायक नहीं है, बड़ी संख्या में किसान खेती छोड़ शहरों में रोजगार ढूंढने के लिए जा रहे है।

खेती की खराब होती हालात को अमेरिकी प्रशासन को समझ आ चुका था। कृषि उत्पादों के वैश्वीकरण ने अमेरिका में कृषि क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचाया है। ट्रंप के समय में चीन से शुरू हुए ट्रेड वार ने अमेरिकी सोयाबीन, मक्के को खासा नुकसान पहुंचाया। चीन ने चालाकी की और उसने अमेरिका से ट्रेड वार शुरू होने पर ब्राजील से मक्का और सोयाबीन का आयात शुरू कर दिया।

अमेरिकी कृषि क्षेत्र में अक्सर बहस होती है कि न्यू डील के तहत किसानों को सरकार ने जबतक कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम मूल्य दिया तबतक किसानों की आर्थिक हालात ठीक रही। लेकिन जैसे ही अमेरिका ने खेती को उदारीकरण, वैश्वीकरण और कारपोरेटीकरण से जोड़ा गया छोटे किसान तबाह हो गए। उनकी आय लगातार घटती गई।

अमेरिकी डेरी इंडस्ट्री तो तबाही के कागार पर आ गई। इस कारण किसानों में आत्महत्याओं की प्रवृति बढ़ी। सेंटर फॉर डिजिज कंट्रोल के अनुसार अमेरिकी किसानों की आत्मह्त्या दर का आत्महत्या के राष्ट्रीय औसत से डेढ़ गुणा ज्यादा है। अमेरिका में 2013 के बाद किसानों की हालात खासी खराब हुई है। उत्पादों की कीमतों में भारी गिरावट के कारण किसानों की आय में 50 प्रतिशत तक की गिरावट आयी है।

हालांकि अमेरिकी कृषि क्षेत्र की बर्बादी के लिए खुद अमेरिकी सरकार की नीतियां जिम्मेवार है। 2020 में जो कानून बनाकर भारत सरकार किसानों के कल्याण की बात कर रही है, उनकी आय दोगुनी करने की बात कर रही है, उस तरह की नीतियां अमेरिका में तबाही ला चुकी है। अमेरिका ने खेती का कारोपोरेटीकरण किया।

अमेरिका में खेती से संबंधित 80 प्रतिशत कारोबार कारपोरेट घराने कंट्रोल करते है। लेकिन उनका कृषि संबंधी उत्पादों का कारोबार अंतराष्ट्रीय बाजार पर ज्यादा निर्भर करता है। जैसे ही वैश्विक बाजार में कृषि उत्पादों की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई, बड़ी संख्या में अमेरिकी कंपनियां दिवालियां हो गई। पिछले कुछ सालों में कृषि क्षेत्र के कई कारोपोरेट दिवालिया घोषित हुए है।

भारत सरकार किसानों के हितों को बचाए रखने का दावा कर रही है। सरकार लगातार कह रही है तीनों खेती कानून किसानों के हित में है। न्यूनतम सम्रर्थन मूल्य बमुश्किल 10 प्रतिशत किसानों को मिलता है। लेकिन सरकार दावा इस तरह से कर रही है कि देश भऱ के सारे किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ ले रहे है। शोध का विषय यह है कि अमेरिका और यूरोप में कई दशक पहले खेती के क्षेत्र में लाया गया रिफार्म जब फेल हो गया तो भारत में 2020 में खेती कानूनों के नाम पर लाया गया रिफार्म कैसे सफल होगा?

अमेरिका जैसे देश में किसानों के पास औसत जमीन की जोत (लैंड होल्डिंग) 400 एकड़़ है। जबकि भारत में 86 प्रतिशत किसानों के पास औसत जमीन की जोत (लैंड होल्डिंग) 5 एकड़ से कम है। अमेरिका जैसे देश में 400 एकड़ वाले किसानों को जब रिफार्म के बाद कोई लाभ नहीं मिला तो भारत में किसानों को सरकार के रिफार्म से कैसे लाभ मिलेगा?

भारत सरकार को यह पता होना चाहिए कि अमेरिका में रिफार्म के बाद भी खेती का संकट बढ़ा है। वहां रिफार्म, उदारीकरण, कारपोरेटीकरण के बावजूद एक किसान को औसत सलाना सब्सिडी 60 हजार डालर मिल रही है। अमेरिका सलाना लगभग 45 अरब डालर किसानों की सब्सिडी पर खर्च कर रहा है।

अमेरिका की तरह ही यूरोप की हालात है। यूरोप में भी कृषि क्षेत्र में दशकों पहले रिफार्म लाया गया था। लेकिन वहां के किसानों का संकट लगातार बढ़ा है। उनकी आय में भारी गिरावट आयी है। यूरोप में भी किसानों को उत्पादन लागत वसूलने में खासी दिक्कत आ रही है।

यूरोप यूनियन के सदस्य देशों में कृषि क्षेत्र को सलाना 100 अरब डालर का समर्थन इस समय मिल रहा है। इसमें से लगभग 50 अरब डालर की राशि सलाना सीधे किसानों को सब्सिडी के तौर पर दी जा रही है। लेकिन भारत में किसानों को सरकार से सब्सिडी के तौर पर क्या मिल रहा है? सलाना बमुश्किल 200 डालर प्रति किसान।