आज धूप सेंकते हुए अचानक भारतमाता की जय और बंगलादेश मुर्दाबाद के नारे सुने तो सड़क पर झाँका; जुलूस की शक्ल में कोई पचीस-तीस की संख्या में लोग यह नारा लगाते हुए गुजर रहे थे। बीच-बीच में आवाज उठती बांगलादेश में हिन्दुओं पर हमले बन्द करो। चार-पांच तिरंगा ( राष्ट्रीय ध्वज ) थे, तो लगभग इतने ही भगवा हिन्दू ध्वज भी थे। बहुत जोश नहीं था मानो वे अनमने अंदाज में कर्तव्य-पालन कर रहे हों। लेकिन लोग कौतुहल से देख रहे थे।
‘जुलूस’ फणीश्वरनाथ रेणु का एक उपन्यास भी है।1950 के दशक की पृष्ठभूमि पर लिखा गया, पूर्वी पाकिस्तान (अब बंगलादेश) से भारत आए हिन्दू शरणार्थियों पर केंद्रित, यह उपन्यास हमारे राष्ट्रवाद की समझ को समृध्द करता है। पूर्णिया कटिहार जिले में काफी संख्या में हिन्दू शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान से आए हैं। सरकार ने इन शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए जगह उपलब्ध कराया है। उनकी बसावट का नाम रखा गया है नबीन नगर। लेकिन आस-पास के हिन्दू इस मोहल्ले को पकिस्तनिया-टोला कहते हैं। इन शरणार्थी हिन्दुओं की पीड़ा कोई नहीं समझता। अपने देस के लोगों के लिए ये हिन्दू हैं। वे उनके मुस्लिम बहुल देस में कैसे रह सकते हैं। उन पर जुल्म ढाये जाते हैं। वे भाग कर भारत आते हैं। लेकिन यहां के हिन्दुओं केलिए वे पाकिस्तानी हैं। वे करें तो क्या करें!
क्या ही अच्छा होता जुलूस में नारा लगा रहे लोग बैठ कर इस बात को समझने की कोशिश करते कि क्या यह नारा लगाने का कोई नैतिक अधिकार उनके पास है? भारत में लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्ष वायदों की सरकार है। लेकिन अपनी धार्मिक डेमोग्राफी में भारत हिन्दू बहुल राष्ट्र है। यहाँ अनेक धर्मावलम्बी हैं। मुसलमान भारत में दूसरा बड़ा धर्मसमूह है। कुछ लोग हैं जो भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं और इस देश के अपने से कम संख्या वाले मुसलमानों से सहभागिकता नहीं, अलगाव प्रदर्शित करते हैं। वे उन्हें दबा कर रखना चाहते हैं। अपना वर्चस्व उन पर थोपना चाहते हैं। ऐसे ही लोग पाकिस्तान और बंगलादेश में भी हैं। वे संख्या बल के हिसाब से हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक घोषित करते हैं और उन पर अपना वर्चस्व थोपना चाहते हैं। दरअसल अलग-अलग और एक दूसरे के विरोधी दिखने वाले ये भगवा और इस्लामी मिजाज के लोग एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। दोनों सगे हैं। इन्हें एक साथ ही देखना चाहिए।
बंगलादेश में हिन्दुओं पर हो रहे हमले, या किसी भी मुल्क में अल्पसख्यकों पर हो रहे हमलों का हम तीव्र विरोध करते हैं। वहां जो हो रहा है उस पर भारत को हस्तक्षेप करना चाहिए। इसलिए नहीं कि वे हिन्दू हैं. इसलिए की हम अपने पड़ोस में नागरिक स्वतंत्रता को कुचला जाना नहीं देख सकते 1971 में इन्ही परिस्थितियों में भारत ने हस्तक्षेप किया था। पड़ोसियों से हम बेहतर संबंध के हिमायती हैं। लेकिन हमारा यह भी कर्तव्य है कि वहाँ लोकतंत्र बचा रहे। क्या ही अच्छा होता कि बंगलादेशी हिन्दुओं की हिफाजत और आज़ादी के लिए भारत के मुसलमान आगे आते और अपनी आवाज बुलंद करते। स्वयं को भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधि घोषित करने वाले ओबैसी जैसे लोग और दूसरे सेकुलर सोच वाले मुसलमान चुप क्यों हैं?
(प्रेमकुमार मणि साहित्यकार हैं)