केंद्र सरकार के कृषि क्षेत्र से संबंधित बिलों के विरोध में 25 सितंबर का पंजाब बंद सफल रहा। भाजपा को छोड़ सारे राजनीतिक दल पंजाब में किसानों के साथ खड़े नजर आए। हालांकि किसान संगठनों ने राजनीतिक दलों से दूरी बनायी हुई है। पंजाब बंद को समाज के हर तबके का समर्थन मिला। शहरी आबादी ने भी किसानों का जमकर समर्थन किया है। बंद की सफलता को देख पंजाब भाजपा परेशान है।
किसानों के समर्थन में शहरी आबादी के आने से पंजाब भाजपा की राजनीति खतरे में है। दूसरी तरफ दूसरे दल किसानों के साथ खड़े है। पंजाब की कांग्रेस सरकार कृषि बिलों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी जा सकती है। वहीं राज्य सरकार पंजाब के अंदर किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए राज्य के अंदर कृषि संबंधित कानूनों में कुछ बदलाव भी ला सकती है। राज्य सरकार के कानूनी सलाहकारों इस दिशा में अध्धयन कर रहे है।
आखिर पंजाब के किसान केंद्र सरकार के कृषि संबंधी बिलों के खिलाफ सबसे ज्यादा क्यों है ? इसके कारण है। पंजाब के किसान देश के दूसरे राज्यों के किसानों के मुकाबले थोड़ी बेहतर स्थिति में है। दूसरे राज्यों के मुकाबले पंजाब के किसानों की आय कुछ ज्यादा है। लेकिन केंद्र सरकार के नए कानून उनकी आय पर ग्रहण लगाएंगे।
पंजाब में किसानों की हालात वैसे भी पिछले कुछ सालों में खराब हुई है। वैसे में अगर खेती में कारपोरेट सेक्टर की एंट्री हो गई तो किसान तबाह हो जाएंगे। पंजाब में एक किसान परिवार की प्रतिमाह औसत आय लगभग 18 हजार है। यह पश्चिम बंगाल और बिहार के किसानों से कहीं ज्यादा है। पश्चिम बंगाल में एक किसान परिवार की प्रतिमाह औसत आय लगभग 4 हजार रुपए है।
बिहार में एक किसान परिवार की औसत आय प्रतिमाह 3500 रुपए है। कृषि क्षेत्र से कम आय के कारण बिहार, बंगाल और उतर प्रदेश जैसे राज्यों के किसान मजदूर बनते जा रहे है। यहां के किसान दूसरे राज्यों में रोजगार की तलाश में निकल रहे है। इन राज्यों में ज्यादातर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ नहीं मिलता है। यहां के किसान बिचौलियों को कम कीमत पर अपनी फसल बेच देते है।
कृषि क्षेत्र में काफी कम आय के काऱण बिहार के लगभग 80 लाख किसान दूसरे राज्यों में मजदूरी करने चले गए है। पंजाब के किसानों को भय है कि भविष्य में उनकी हालत भी वैसी होगी जो बिहार और पश्चिम बंगाल के किसानों की है। उन्हें खेती के बजाए मजदूरी करनी पड़ेगी। खेती में भविष्य खराब होने के संकेत के कारण ही पंजाब से युवा विदेशों में स्टडी वीजा के नाम पर जा रहे है।
हरित क्रांति ने पंजाब को कृषि उत्पादन में दूसरे राज्यों से बहुत आगे कर दिया। इस कारण पंजाब के किसान समृद हुए। वहीं पंजाब सरकार ने किसानों की फसलों की व्यवस्थित खरीद के लिए 1970 के दशक में ही तहसील स्तर पर मंडियां बनायी। पंजाब की सरकारी खरीद केंद्रों का मुकाबला देश के दूसरे राज्य नहीं कर सकते है। खरीद केंद्रो में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान और गेहूं की खरीद को सरकार ने सुनिश्चित किया। लेकिन समय के साथ पंजाब में परिवारों में विस्तार हुआ। इससे कृषि भूमि का बंटवारा हुआ है। इससे जोत के आकार छोटे होने लगे है।
दूसरी तरफ पंजाब का किसान कर्ज के जाल में फंसा हुआ है। किसान संगठनों का तर्क है जब देश को पंजाब के किसानों की जरूरत थी किसानों ने देश की सेवा की। देश के अनाज भंडार को भर दिया। किसी जमाने में विदेशों में जाकर भारतीय नेताओं को खादय के लिए हाथ फैलाने पड़ते थे। पंजाब के किसानों के जमकर उत्पादन किया। हाथ फैलाने वाली नौबत खत्म की। अब जब किसानों को सरकार की मदद की जरूरत है तो सरकार खेती को कारपोरेट के हवाले कर रही है। राज्य की सरकारी मंडियों को ध्वस्त करना चाहती है।
पंजाब भारत का लैंडलाक सीमावर्ती राज्य है। राज्य की सीमा पाकिस्तान से मिलती है। लंबे समय तक पंजाब आतंकवाद से भी जूझता रहा। आतंकवाद से जूझने के बावजूद देश के विकास में पंजाब ने योगदान दिया। कृषि में देश को आत्मनिर्भर बनाया। इसके बदले में पंजाब के किसानों ने सरकार से फसल के लाभकारी मूल्य मांगे। हालांकि इस मांग को भी सरकार पूरा करने को तैयार नहीं है। केंद्र सरकार कागजों में 22 फसलों पर एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) देती है। लेकिन ये कागजों में ही है।
पंजाब जैसे राज्य में कपास, धान और गेहूं ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाता है। इस साल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद में मध्य प्रदेश अव्वल रहा। पंजाब दूसरे नंबर पर रहा। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीद में तेलंगाना अव्वल रहा। इसके बाद छतीसगढ़, हरियाणा और पंजाब में न्यूतनम समर्थन मूल्य पर धान की खरीद की गई।
पंजाब में लगभग 40 प्रतिशत गेहूं एमएसपी पर खरीदी जाती है। 70 प्रतिशत धान की खरीद एमएसपी पर होती है। पंजाब और हरियाणा में बीते खरीफ और रबी सीजन में 201 लाख टन गेहूं और 220 लाख टन धान की खऱीद एमएसपी पर की गई।
पंजाब का भूगोल पंजाब के लिए परेशानी खड़ा करता है। पंजाब की सीमा पाकिस्तान से मिलती है। पाकिस्तान से तनाव होने के कारण पंजाब के रास्ते अंतराष्ट्रीय व्यापार की उम्मीद निकट भविष्य में संभव नहीं है। पाकिस्तान से तनाव के कारण अटारी सीमा से होने वाला व्यापार काफी कम हो गया है।
अगर दोनों मुल्कों के संबंध ठीक हो तो पंजाब का कपास पाकिस्तान जा सकता है। क्योंकि इसकी मांग पाकिस्तानी पंजाब के टेक्सटाइल उधोग में काफी है। पाकिस्तान से तनाव के कारण राज्य में निवेश भी कम कम आया है। क्योंकि पंजाब में निवेश तभी होगा जब सीमा पार निर्यात की सुविधा निवेशकों को मिलेगी। वैसे में पंजाब के लोगों की आय का सबसे बडा क्षेत्र कृषि है।
1980-90 के दशक में आतंकवाद ने पंजाब को तबाह किया। अच्छी संख्या में पंजाबी युवा विदेशों की तरफ रूख कर गए। अब जब कृषि संकट सामने दिख रहा है तो पंजाब के युवा विदेशों की तरफ रूख करने लगे है। एक युवा विदेश में जाकर स्थापित होता है, फिर अपने परिवार के दूसरे युवा को पंजाब से बुला लेता है।
पंजाब से हर साल हजारों युवा स्टडी वीजा पर विदेश जा रहे है। उसका एक बड़ा कारण पंजाब की अर्थव्यवस्था की खराब होती स्थिति है। राज्य में रोजगार के अवसर कम हो गए है। भविष्य में खेती घाटे में जाएगी। इस कारण पंजाबी युवा कनाडा, अमेरिका, यूके, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में स्टडी वीजा पर जा रहे है। किसान अपनी जमीन का कुछ हिस्सा बेचकर बच्चों को विदेशों में पढ़ाई के लिए भेज रहा है। ताकि बच्चा बाद मे वहीं कोई रोजगार ढूंढ ले। स्टडी पूरा करने के बाद ही पंजाबी बच्चे पीआर के लिए आवेदन कर देते है।
2018 में 1 लाख 50 हजार पंजाबी युवा बाहर के देशों में स्टडी वीजा पर गए। इस समय पंजाब के कपास उत्पादक मालवा इलाके के ग्रामीण युवा स्टडी वीजा पर बाहर जाने में सबसे आगे है। हालांकि विदेशों में शिक्षा महंगी है। लेकिन मजबूर किसान अपनी जमीन और गहने को बेचकर बच्चों को बाहर भेज रहे है। ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर लोग बच्चों को विदेश भेजने के लिए सोना और जमीन गिरवी रख रहे है। मालवा के इलाके के छोटे शहरों के कारोबारियों से इसकी जानकारी आसानी से हासिल की जा सकती है। उन्हें उम्मीद होती है कि जब बच्चा पढकर विदेश में कमाने लगेगा तो गिरवी रखी गई जमीन औऱ सोना छुड़वा लेगा।