म्यांमार में क्यों आया चीन निशाने पर

चीन के स्वामित्व वाली फैक्ट्रियों पर हुए हमले से नाराज म्यांमार की सेना ने लोकतंत्र समर्थकों का दमन शुरू कर दिया है। लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शकारियों पर गोलियां चलायी गई है, जिसमें कम से कम 39 लोगों के मारे जाने की खबर है।

म्यांमार में तख्तापलट के पीछे चीन है, यह लगभग स्पष्ट होता जा रहा है। म्यांमार में लोकतंत्र समर्थकों का चीन के खिलाफ गुस्सा काफी भड़क गया है। यह गुस्सा ही बताने के लिए काफी है कि म्यांमार में सैन्य शासन को चीन खुलकर समर्थन दे रहा है। दरअसल लोकतंत्र समर्थकों ने म्यांमार में अब चीनी निवेश पर हमला शुरू कर दिया है। चीन के स्वामित्व वाले कुछ फैक्ट्रियों में आग लगायी गई है। कई फैक्ट्रियों को लूट लिया गया है। कई चीनी नागरिक फैक्ट्रियों में फंस गए। है। कई चीनी नागरिक घायल है।

चीन के स्वामित्व वाली फैक्ट्रियों पर हुए हमले से नाराज म्यांमार की सेना ने लोकतंत्र समर्थकों का दमन शुरू कर दिया है। लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शकारियों पर गोलियां चलायी गई है, जिसमें कम से कम 39 लोगों के मारे जाने की खबर है। चीनी निवेश वाली फैक्ट्रियों पर हमले से घबराए चीन ने म्यांमार में स्थिति को बेहद गंभीर बताया है। म्यांमार के नागरिकों का गुस्सा चीन को लेकर इतना ज्यादा है कि यंगून के पास स्थित हलैनगठाया में चीन के उधोगपतियों की कई फैक्ट्रियां लूट ली गई है। लोकतंत्र समर्थकों के निशाने पर आ चीन ने म्यांमार में मौजूद अपने नागरिकों से सावधानी बरतने की अपील की है।

शुरू से ही यह आशंका जतायी जा रही थी कि म्यांमार के सैन्य शासकों को चीन पूरा समर्थन दे रहा है। चीन के शह पर ही सेना ने म्यामांर में तख्ता पलट कर दिया। आंग सान सू की की पार्टी एनएलडी को सत्ता से बेदखल कर दिया। तख्ता पलट से पहले म्यांमार सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने चीन के वरिष्ठ राजनयिकों से बातचीत की थी। सेना ने जिन लोगों से बातचीत की थी उसमें चीन के विदेश मंत्री वांग यी भी शामिल थे। यही कारण है कि अब म्यांमार के नागरिक चीन के खिलाफ खुलकर आ गए है।

पिछले दिनों लोकतंत्र समर्थकों ने यंगून में चीनी दूतावास के सामने प्रदर्शन किया था। उन्होंने चीन से अपील की थी कि वे म्यांमार के सैन्य शासकों को समर्थन देना बंद कर दे। लेकिन चीन पर कोई असर नहीं हुआ। अब लोगों का उग्र प्रदर्शन चीन के खिलाफ हो रहा है। इससे घबराए चीन को पूरे म्यांमार में अपने कई बड़े निवेश पर खतरा नजर आ रहा है। चीन ने यहां अरबों डालर का निवेश कर रखा है।

म्यांमार के लोकतंत्र समर्थकों का चीन के प्रति गुस्सा और भड़केगा। इससे प्रस्तावित चीन-म्यांमार इकनॉमिक कॉरिडोर के कार्य पर ग्रहण लग सकता है। दरअसल चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इस ड्रीम प्रोजेक्ट में निवेश की राशि को लेकर आंग सान सू की की पार्टी एनएलडी और चीन सरकार के बीच मतभेद पैदा हो गए थे। एनएलडी की सरकार चीन-म्यांमार इकनॉमिक कॉरिडोर के सारे प्रस्तावो को हूबहू मानने को तैयार नहीं थी। उनका मानना था कि अगर सारे प्रस्तावों को हूबहू मान लिया गया तो म्यांमार कर्ज के जाल में फंस जाएगा।

म्यांमार की स्थिति चीनी निवेश को लेकर लगभग वही हो जाएगी जो वर्तमान में श्रीलंका की हो गई है। चीन क्याकाप्यू बंदरगाह में निवेश की राशि को लेकर जो प्रस्ताव म्यांमार की सरकार के सामने लेकर आया था उसे एनएलडी की सरकार मानने को राजी नहीं थी। इससे चीन की सरकार अंदर से एनएलडी की सरकार से खार खायी हुई थी।

सैन्य तख्ता पलट से पहले जनवरी में म्यांमार के मिलिट्री चीफ मिन आंग और चीन सरकार के वरिष्ठ राजनयिक वांग यी की मुलाकात हुई थी। इसके बाद तख्ता पलट हो गया और मिन आंग के पास इस समय समस्त शक्ति है। दरअसल इससे पहले म्यांमार के एनएलडी की सरकार के मंत्री लगातार चीन के म्यांमार में प्रस्तावित प्रोजेक्टों का विरोध कर रहे थे। वे चीनी कर्ज जाल के प्रति सावधानी बरतने की सलाह दे रहे थे। एनएलडी की सरकार के विरोध के कारण कई चीनी प्रोजेक्टों में प्रस्तावित खर्च राशि में कमी की गई।

चीन के कई प्रस्तावित प्रोजेक्टों को एनएलडी की लोकतांत्रिक सरकार ने स्वीकार नहीं किया। चीन ने चीन-म्यांमार इकनॉमिक कॉरिडोर के तहत कुल 38 प्रोजेक्टों का प्रस्ताव म्यांमार सरकार के सामने रखा था। इसमें सिर्फ 9 प्रोजेक्ट पर ही एनएलडी की लोकतांत्रिक सरकार ने सहमति जतायी। एनएलडी की सरकार ने म्यांमार और चीन की नौसेना का संयुक्त अभ्यास के प्रस्ताव को भी रद्द कर दिया था। वैसे में चीन का लोकतांत्रिक सरकार से नाराज होना स्वभाविक था।

चीन के एजेंडे में म्यांमार के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन है। वहीं म्यांमार का भूगोल का दोहन भी चीन के एजेंडे में है। म्यांमार के सैन्य शासक चीन को इस काम में लोकतांत्रिक सरकार से ज्यादा मदद कर सकते है, इसमें कोई शक नहीं है। चीन म्यांमार के रास्ते हिंद महासागर में पहुंचना चाहता है। लेकिन म्यांमार के कई इलाकों में चीन के निवेश को लेकर स्थानीय लोगों में खासा गुस्सा है।

चीनी निवेश के कारण म्यांमार में विस्थापन की समस्या आयी है। स्थानीय लोग कई जगहों पर विस्थापन के कारण चीन का विरोध काफी लंबे समय से कर रहे है। रखाइन राज्य में चीन के निवेश के कारण विस्थापन की समस्या आयी है। कचीन राज्य में चीन के सहयोग से प्रस्तावित मैत्सोन जल विधुत परियोजना का विरोध म्यांमारी जनता ने किया था, जिस कारण इस प्रोजेक्ट को रद्द करना पड़ा था। लोगों के विरोध के कारण म्यांमार में चीन को मिले तांबा खनन कार्य भी रद्द किया गया था।

चीन का प्रस्तावित चीन-म्यांमार इकनॉमिक कॉरिडोर हिंद महासागर तक चीन के सैन्य विस्तार में मदद करेगा। चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की नकल है। इस गलियारे में रेल नेटवर्क का जाल म्यांमार में बिछाए जाने का प्रस्ताव है। रेल नेटवर्क के जाल से म्यांमार के विभिन्न औधोगिक क्षेत्रों को जोड़े जाने का प्रस्ताव है और इसे चीन सीमा तक ले जाने की योजना है। गलियारे की एक महत्वपूर्ण योजना में म्यांमार के रखाइन राज्य स्थित क्याकप्यू बंदरगाह का विकास शामिल है।

चीन क्याकप्यू बंदरगाह को भारत की पूर्वी सीमा का ग्वादर बनाना चाहता है। चीन इस बंदरगाह के रास्ते हिंद महासागर में प्रवेश करेगा। इसका दोहरा लाभ चीन लेगा। इस बंदरगाह का इस्तेमाल तेल औऱ गैस आयात के लिए चीन करेगा। वहीं इस बंदरगाह के माध्यम से चीन भारतीय समुद्री सीमा की घेरेबंदी भी करेगा।

भारत के पश्चिम में पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर चीन का नियंत्रण है। भारत की दक्षिण में श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का नियंत्रण है। अब पूर्वी सीमा पर म्यांमार में क्याकप्यू बंदरगाह पर चीन की मौजूदगी होगी। चीन बांग्लादेश के बंदरगाहों में भी घुसपैठ की कोशिश कर रहा है।

First Published on: March 15, 2021 12:53 PM
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