क्यों जल रहा है भारत का स्विट्जरलैंड?


पहाड़ी आदिवासी समुदाय एवं मैतई समुदाय के बीच का विभाजन बहुत पुराना, और जटिल है और इसे बहुत सावधानी से हल करने की आवश्यकता है। सरकार को अनुसूचित जनजाति की स्थिति तय करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए, बल्कि राज्य में शांति लाने के लिए सतर्क एवं सख्त रुख अपनाना जरूरी है।



मणिपुर राज्य भारत के स्विट्ज़रलैंड के नाम से प्रसिद्ध है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से ये आदिवासी हिंसा की वजह से सुर्ख़ियों में है। इस हिंसा की वजह को समझने से पहले हमें इस राज्य के भूगोल और इतिहास को समझना होगा। मणिपुर राज्य भारत के उत्तर पूर्व में स्थित ‘सात सिस्टर’ राज्यों में से एक है और इसकी राजधानी इम्फाल है। यह राज्य मुख्य रूप से पहाड़ियों एवं घाटियों से बना हुआ है। क्षेत्रफल के हिसाब से पहाड़िया 90 प्रतिशत हिस्सा कवर करती है, जबकि घाटी केवल 10 % का क्षेत्र कवर करती है।

पहाड़ी और घाटी में न केवल क्षेत्रफल के हिसाब से बल्कि यहां पर रहने वाले लोगों में उनकी संस्कृति, अर्थव्यवस्था एवं धर्म के हिसाब से भी बड़ा विभाजन है। पहाड़ी क्षेत्र पर प्रमुख तौर पर नागा एवं कुकी इत्यादि आदिवासी रहते हैं। जबकि इम्फाल घाटी में प्रमुख रूप से मैतई समुदाय के लोग निवास करते हैं।

मैतई, मणिपुर का सबसे बड़ा समुदाय है। वे राजधानी इम्फाल में प्रमुख रूप से रहते हैं, जिन्हें आमतौर पर मणिपुरी नाम से जाना जाता है। 2011 की अंतिम जनगणना के अनुसार,मैतई समुदाय राज्य की आबादी का 53 प्रतिशत हिस्सा हैं, इसके बावजूद भी मणिपुर के लगभग 10 प्रतिशत भूभाग पर ही इनका अधिकार है। जबकि दूसरी ओर, पहाड़ी आदिवासी समुदाय (नागा, कुकी इत्यादि) की आबादी लगभग 40 प्रतिशत है, लेकिन वे मणिपुर की 90प्रतिशत भूमि पर उनका अधिकार क्षेत्र है। इन पहाड़ी आदिवासी समूह के लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है।

मैतई समुदाय के लोगों का दावा है कि वे मणिपुर के मूल निवासी हैं और सदियों से इस राज्य में रहते आए हैं।  उनकी मांग है कि उन्हें भी राज्‍य में ‘अनुसूचित जनजाति’ का दर्जा दिया जाए। उनकी इस मांग को बहुत बड़ा समर्थन अभी हाल में आये हाई कोर्ट केनिर्णयसे मिला है।जिसके तहत राज्य सरकार को इस मांग के संबंध में ‘यूनियन जनजातीय कार्य मंत्रालय’ को सिफारिश भेजने का आदेश दिया गया।इस निर्णय के बाद, मणिपुर के ‘आल ट्राइबल स्टूडेंस्ट्स’ यूनियन ने एक रैली का आयोजन किया, जिसमें मैतई समुदाय के लोगों को “आदिवासी” दर्जा देने का विरोध किया गया।जिसके बाद 3 मई 2023 को मैतई और कुकी समुदायों के बीचटकराव एवं आगजनी जैसी हिंसक झड़पें शुरू होने लगीं।

पहाड़ी आदिवासी समुदाओं का कहना है की मैतई समुदाय पहले से ही समृद्ध है और मणिपुर की राजनीति में मुख्य रूप से प्रभावशाली है।उनके ‘अनुसूचित जनजाति’ के दर्जे में शामिल होने से पहाड़ी आदिवासी समुदायों को दिए गए आरक्षण में कमी आयेगी। हालांकि दोनों समुदाओं के बीच का मुद्दा सिर्फ यही तक सीमित नहीं है बल्कि यह मुद्दा जमीन का भी है। मणिपुर के लैंड रेवेनुए एक्ट एवं लैंड रिफार्म एक्ट के अनुसार, मैतई समुदाय के लोग, पहाड़ी क्षेत्र में जमीन की खरीददारी नहीं कर सकते हैं।

अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने के बाद, मैतई समुदाय के लोग भी पहाड़ी क्षेत्र पैर जमीन खरीद सकेंगे। जिसका पहाड़ी आदिवासी समुदाय, प्रमुख्ता, कुकी और नागा, इसका बहुत वर्षो से विरोध करते आये हैं। जो कि मणिपुर में हो रही हिंसक घटनाओं की एक बड़ी वजह है। उनको यह भय है की इस अधिकार की वजह से भविष्य में उनके जमीनों पर मैतई समुदाय का प्रभुत्य स्थापित हो सकता है।

पहाड़ी आदिवासी समुदाय एवं मैतई समुदाय के बीच का विभाजन बहुत पुराना, और जटिल है और इसे बहुत सावधानी से हल करने की आवश्यकता है। सरकार को अनुसूचित जनजाति की स्थिति तय करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए, बल्कि राज्य में शांति लाने के लिए सतर्क एवं सख्त रुख अपनाना जरूरी है।