काकेशस में आखिर क्यों इजरायल के साथ खड़ा है तुर्की और पाकिस्तान

आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच सैन्य संघर्ष तेज हुआ तो इजरायल की परेशानी बढ़ सकती है। क्योंकि इजरायल अजरबैजान को हथियारों से मदद कर रहा है, इसलिए आर्मेनिया इजरायल से खासा नाराज है। आर्मेनिया ने इजरायल को इस विवाद से दूर रहने को कहा है।

आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच नागोनों- काराबाख इलाके को लेकर जंग फिर से शुरू हो गई है। हालांकि इस इलाके को लेकर अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच तनाव 1990 के दशक से है। नागोनो-काराबाख के इलाके पर फिलहाल कब्जा आर्मेनिया का है, लेकिन इस इलाके में रहने वाले मुस्लिम और ईसाइयों के बीच आपसी संघर्ष ने अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच तनाव को और बढ़ाया है।

दरअसल चिंता इस बात की भी है कि अगर इस बार दोनों मुल्कों के बीच जंग ज्यादा बढ़ी तो इलाके की तेल सप्लाई लाइन पर हमला हो सकता है। इसका सीधा नुकसान अजरबैजान को होगा जिसकी इकनॉमी तेल और गैस पर टिकी हुई है। दिलचस्प बात यह है कि इस क्षेत्र में कई क्षेत्रीए शक्तियां आपस में फिर टकरा सकती है, जिसमें रूस, इजरायल, तुर्की, ईरान शामिल है।

आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच चल रहा संघर्ष एशिया और यूरोप की जियोपॉलिटिक्स को प्रभावित कर रहा है। अभी फिर से शुरू हुए विवाद में दिलचस्प स्थिति देखने को मिल रही है। कई क्षेत्रीए शक्तियां अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच हो रहे सैन्य संघर्ष को लेकर बंटी हुई है। इजरायल इस इलाके में बड़ा खिलाड़ी बनकर उभरा है। कई मुद्दों पर एक दूसरे के विरोधी देश अजरबैजान-आर्मेनिया विवाद में एक फ्रंट पर खड़े नजर आ रहे है।

मसलन इजरायल के तुर्की और पाकिस्तान से अच्छे संबंध नहीं है। लेकिन इजरायल अजरबैजान के मुद्दे पर तुर्की और पाकिस्तान के साथ खड़ा है। तीनों देश इस समय अरबैजान के समर्थन में है। जबकि फिलिस्तीन के मसले पर इजरायल के संबंध पाकिस्तान और तुर्की के साथ हमेशा तनावपूर्ण रहे है। पाकिस्तान और इजरायल के बीच तो डिप्लोमैटिक रिलेशन तक नहीं है। दरअसल अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच आपसी सैन्य संघर्ष यह बताता है कि जियोपॉलिटिक्स और रीजनल कन्फलिक्ट में रिसोर्स वार एक मुख्य इश्यू है।

क्षेत्रीय शक्तियां अपने हितों को मजबूत करने के लिए रिसोर्स पर काबिज होना चाहती है। रिर्सोस पर काबिज होने के लिए वे किसी भी देश के साथ और किसी भी देश के विरोध मे खड़े हो सकते है। अजरबैजान के साथ तुर्की और पाकिस्तान अपने स्वार्थ में खड़े है। वहीं तुर्की और पाकिस्तान विरोधी इजरायल का अजरबैजान के साथ खड़े होने में इजरायल के अपने हित है। वैसे इजरायल के आर्मेनिया के साथ भी डिप्लोमैटिक रिलेशन है। लेकिन इजरायल के अजरबैजान के पक्ष में खड़ा होने का मुख्य कारण एक दूसरे को हथियार, तेल एवं गैस की आपूर्ति भी है।

अजरबैजान इजरायली हथियारों का बड़ा खरीदार है। जबकि इजरायल अजरबैजानी तेल का बड़ा खरीदार है। तेल और हथियार का आदान प्रदान इजरायल और अजरबैजान के संबंधों को खासा मजबूत करता है। तेल और हथियारों के काऱण 1990 से दोनों मुल्कों के बीच संबंध काफी अच्छे है। इजरायल के साथ-साथ तुर्की और पाकिस्तान भी अजरबैजानी तेल-गैस का खरीदार है। तुर्की अजरबैजानी गैस का आयातक है।

अजरबैजान से गैस आयात के लिए तुर्की भविष्य में सीधा पाइप लाइन निर्माण की योजना बना रहा है। इससे अजरबैजानी गैस का आयात सस्ता हो जाएगा। अजरबैजान से तुर्की ने गैस आयात बढ़ाया है जबकि रूस से गैस आयात कम किया है। पाकिस्तान अजरबैजान से गैस आयात करता है।

आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच सैन्य संघर्ष तेज हुआ तो इजरायल की परेशानी बढ़ सकती है। क्योंकि इजरायल अजरबैजान को हथियारों से मदद कर रहा है, इसलिए आर्मेनिया इजरायल से खासा नाराज है। आर्मेनिया ने इजरायल को इस विवाद से दूर रहने को कहा है। दरअसल इजरायल ने 2006 से 2019 तक अजरबैजान को 1 अरब डालर का हथियार बेचा है।

इस सैन्य गठजोड़ से आर्मेनिया नाराज है। नाराज आर्मेनिया इजरायल की तेल सप्लाई लाइन पर हमला कर सकता है। इजरायल की जरूरतों का 40 प्रतिशत तेल अजरबैजान देता है। अगर आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच युद तेज हुआ तो इसका सीधा प्रभाव इजरायल की सप्लाई लाइन पर पड़ेगा। दोनों मुल्कों के बीच के संघर्ष ज्यादा बढ़ा तो निशाने पर बाकू-तबीलसी-सिहान तेल पाइप लाइन आ सकती है।

इस पाइप लाइन से इजरायल को तेल की सप्लाई होती है। यही नहीं अजरबैजान और आर्मेनिया का संघर्ष साउर्दन गैस कॉरिडोर को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इस कॉरिडोर में बिछायी गई गैस पाइप लाइन जमीन के उपरी हिस्से से मात्र दो मीटर नीचे है। इसे नुकसान पहुंचाना काफी आसान है। अगर इसे आर्मैनिया ने इस गैस पाइप लाइन का नुकसान पहुंचा दिया तो अजरबैजान की इकनॉमी को भारी नुकसान पहुंचेगा।

आर्मेनिया खुलकर तुर्की और इजरायल के खिलाफ बोल रहा है। क्योंकि अजरबैजानी सेना आर्मेनिया के खिलाफ इजरायली हथियारों का प्रयोग कर रही है। अजरबैजानी सेना ने आर्मेनिया के खिलाफ इजरायली ड्रोन का इस्तेमाल किया है। दरअसल तुर्की और इजरायल के समर्थन के कारण अजरबैजान के एयर अटैक क्षमता बढ़ गई है। आर्मेनिया अपनी रक्षा जरूरतों को रूस से पूरा करता है।

रूस ने आर्मेनिया को बचाव के लिए एस-400 मिसाइल सिस्टम उपलब्ध करवा रखा है। साथ ही सुखोई-30 लड़ाकू विमान भी दिए है। भारत से भी आर्मेनिया ने डिफेंस डील की है जिसमें लगभग 40 मिलियन डालर की लागत से आर्मेनिया भारत से रडार सिस्टम खरदीने जा रहा है।

First Published on: October 17, 2020 7:27 AM
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