कविता और चित्रकला का संबंध नाभि-नाल का है। एक में शब्द तो दूसरे में रेखाओं और रंगों की प्रधानता होती है। कविता और चित्रकला में एक समान दखल रखने वाले विरले होते हैं। लेकिन वाजदा खान कविता और चित्रकला को एक साथ साध रही हैं। उनकी कविताओं और पेटिंग के विषय एक हैं। उनकी कविता में जहां नारी अंर्तमन की संवेदना परिलक्षित होती है वहीं चित्रों में भी वह नारी मन के भावों और संवेदना को ही उकेरती हैं। उनकी कविता आधी आबादी की पूरी हकीकत है, तो चित्रकला मन के भावों के साथ प्रकृति के सौंदर्य और बदलाव का चित्रण है। उनकी कविता का स्वर यथार्थ और सकारात्मक है। चित्रकला में भी मन एवं प्रकृति के नित्य बदल रहे व्यवहार को दर्शाती हैं।
वाजदा खान कहती हैं कि ‘‘सारी प्रकृति एक है। फिर भी हमें देखने में आता है कुछ व्यक्ति और चीजें अलग होने के लिए छटपटा रही हैं तो वहीं पर कुछ एक होने के लिए प्रयास कर रही हैं। इसी मिलने और बिछड़ने को हमने अपनी कविता और चित्रकला में सकारात्मक ढंग से व्यक्त किया है। जो स्वभाव मानव का है वही प्रकृति का भी है। जहां हम अपने विपरीत विचार-व्यवहार वालों से दूर और समान विचार व्यवहार वालों के पास जाने की कोशिश करते हैं। उसी तरह से प्रकृति भी अपने से छेड़छाड़ को बर्दाश्त नहीं करती है। इन्हीं भावों और बदलावों को हमने अपनी कविता और पेटिंग का विषय बनाया है।’’
वाजदा खान कहती हैं कि, “साहित्य, संगीत, पेटिंग और ज्ञान-विज्ञान की तमाम विधा मानव और प्रकृति से ही संबंधित होती है। समाज में व्याप्त विद्रूपताओं, असमानता, शोषण और प्रकृति की सुंदरता को कविता के माध्यम से व्यक्त करने का चलन है। लेकिन मानव मन में दिन प्रतिदिन आने वाले भावों और संवेदना को कविता का विषय बनाना आसान नहीं है।” भावों और संवेदना को शब्द और फिर उस शब्द को चि़त्र में उतारना अनोखी प्रक्रिया है। भाव, संवेदना और प्रकृति के तमाम अवयव को वाजदा खान ने अपनी कविता और पेंटिग में दर्ज करती हैं।
आज महिला अधिकारों और विमर्शों के स्वर बहुत तीखे हैं। इस स्त्रीवादी विमर्श
में ढेर सारी चीजें नकारात्मक हैं। लेकिन स्त्रियों की भावना, पारिवारिक संबंधों, संघर्ष, दर्द, करुणा मानव और
प्रकृति से ही संबंधित होती है। समाज में व्याप्त विद्रूपताओं और सुंदरता को कविता-चित्रकला और अन्य विधाओं के माध्यम से व्यक्त करने का चलन है। शब्द और रंग जिन्दगी में
आयी तमाम परेशानियों से जूझने की हिम्मत देती हैं। कंटीले सफर पर साहस के साथ आगे
बढ़ने की प्रेरणा, घायल हुई कोमल संवेदनाओं
को नरमी से सहलाती हैं। नारी मन के भावों और संवेदना को शब्दों में ढालना और फिर
कर कविता बना देना ही कला है। रंग को शब्द और शब्दों को रंगों में उतार कर चित्र
बनाना भी वाजदा खान को बखूबी आता है।
आज के दौर में महिलाओं के साथ बहुत कुछ घटित हो रहा हैं। एक
महानगर में अकेली महिला तमाम तरह के संघर्ष कर रही है। उसके रास्ते में तमाम तरह
के कांटे बिछाए जा रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं, जो तमाम अवरोधों का छोड़ते
हुए आगे बढ़ती गयी। वाजदा कहती हैं हमने हमेशा से स्त्रियों को खुद में घुटते पिसते देखा। उनका घोंटा जाना देखा, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भी। उन्हें दोयम दर्जे की
सलाहियत मिली। चाहे पास-पड़ोस हो, चाहे
अपना घर हो, चाहे दूर देश में। और फिर
खुदा ने गले तक संवेदनायें- बेचैनियां भर दी हो तो क्या पगडण्डी बनती। ऐसे में मेरे चित्रों और कविता में नारी मन का अश्क दिखना कहीं से भी आश्चर्यजनक नहीं होना चाहिए।
वाजदा खान का जन्म 15 जून 1969 को उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए (चित्रकला) एवं डी.फिल करने के बाद कुछ दिनों तक इलाहाबाद के ही एक कॉलेज में चित्रकला की प्रवक्ता रहीं। लेकिन जल्द ही नौकरी का मोह छोड़कर दिल्ली की तरफ रूख किया और शब्दों एवं चित्रों को रंग देने में जुट गयीं। उनकी पेंटिंग्स की एकल और सामूहिक प्रदर्शनियां देश की विख्यात कलादीर्घाओं में आयोजित हो चुकी हैं। देश की कई कार्यशालाओं में भाग ले चुकी वाजदा खान को भारत के संस्कृति मंत्रालय द्वारा वर्ष 2004-2005 में फेलोशिप भी मिल चुकी है।
वाजदा खान लब्धप्रतिष्ठ चित्रकार के साथ-साथ कवयित्री भी है। वह जिस तरह स्त्री मनोभावों को अपनी पेंटिंग्स में चित्रित करती हैं उसी तरह अपनी कविताओं में भी बड़े सलीके से उन्हें अभिव्यक्त करती हैं। उनकी कविताओं में रंग शिल्पी की संवेदना और सलीका है। इनके कविता के संसार में राग तत्व के साथ बेरंग जीवन की स्थितियां इस तरह बुनी हुई हैं कि कई बार सुख दुःख को अलगाना मुश्किल हो जाता है। इन कविताओं में चेतन की करुण-पुकार अस्तित्वगत दार्शनिकता की ओर ले जाती हैं। भाषा और शिल्प को सहेजती हुई वाजदा की कविताएं अपने आंतरिक लय के कारण अलग से ध्यान खींचती हैं।
कोई अच्छा कवि हो सकता है तो कोई एक कुशल चित्रकार। दोनों हुनर एक साथ विरले लोगों को ही मिलते हैं। ये दोनों ही हुनर मिले हैं चित्रकार एवं कवयित्री वाजदा खान को। वाजदा खान समकालीन हिंदी कविता की एक महत्वपूर्ण कवयित्री हैं तो लब्धप्रतिष्ठ चित्रकार भी। यानि एक साथ दो कलाओं का संगम। उनकी कविता में जीवन के विविध रंग देखे जा सकते हैं तो चित्रों को देखकर लगता है कि हर रेखा–रंग जीवन की आपाधापी, सुख-दुख, विचार को बयां कर रहा हो।
वाजदा खान की कविताएं नया ज्ञानोदय, हंस, वागर्थ, बहुवचन, साक्षात्कार, साहित्य अमृत, आजकल, पाखी और देश की अन्य प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। उनकी कुछ कविताओं का अंग्रेजी,पंजाबी औऱ कन्नड़ में अनुवाद भी हुआ है। देश के कई सम्मानित काव्य मंचों पर इनका काव्य पाठ भी हो चुका है।
वाजदा खान के दो कविता संग्रह -‘जिस तरह घुलती है काया’(2009) और ‘समय के चेहरे पर’ (2015) प्रकाशित हो चुके हैं। वाजदा खान को अब तक कई पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें ‘जिस तरह घुलती है काया’ कविता संग्रह के लिए हेमंत स्मृति सम्मान (2010),त्रिवेणी कला महोत्सव पुरस्कार, रश्मिरथी पुरस्कार, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का शताब्दी सम्मान, मध्य प्रदेश सरकार का स्पन्दन ललित कला सम्मान प्रमुख है।