
नयी दिल्ली। ‘मैं पल दो पल का शायर हूं, पल दो पल मेरी कहानी है’ गीत के बीच अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से विदा लेने वाले महेंद्र सिंह धोनी की कहानी कुछ पलों की नहीं बल्कि क्रिकेट के इतिहास में हमेशा के लिये दर्ज होने वाली कामयाबी की गाथा है।
रांची जैसे छोटे शहर से निकलकर महानगरों में सिमटे क्रिकेट की चकाचौंध भरी दुनिया में अपना अलग मुकाम बनाने वाले धोनी ने युवाओं को सपने देखने और उन्हें पूरा करने का हौसला दिया। दो विश्व कप जीतने वाले धोनी के कैरियर के आंकड़े बताते हैं कि इरादे मजबूत हो तो क्या हासिल किया जा सकता है।
तनाव और दबाव के बीच कभी विचलित नहीं होने वाले धोनी ही ऐसा कर सकते थे। देश को 28 बरस बाद वनडे विश्व कप जिताने के बाद निर्विकार भाव से पवेलियन का रूख करने वाला कप्तान बिरला ही होता है। उन्हें जानने वाले भी ये दावा नहीं कर सकते कि उनके भीतर क्या चल रहा है। क्रिकेट के मैदान पर उनका जीवन खुली किताब रहा है लेकिन निजी जिंदगी के पन्ने उन्होंने कभी नहीं खोले जिसमें वह सोचते और फैसले लेते आये हैं।
धोनी की कहानी सिर्फ क्रिकेट की कहानी नहीं बल्कि क्रिकेट की दुनिया में आये बदलाव की भी कहानी है। बड़े शहरों में क्रिकेट खेलते लड़कों को देखकर हाथ में बल्ला या गेंद थामने की इच्छा रखने लेकिन उन्हें पूरा कर पाने का हौसला नहीं रखने वाले अपनी पीढी के लाखों युवाओं के वह रोलमॉडल बने।
टी-20 विश्व कप 2007 फाइनल में उन्होंने जोगिंदर शर्मा को आखिरी ओवर थमाया जिनका कोई नाम भी नहीं जानता था। उस मैच ने शर्मा को हीरो बना दिया। धोनी उस शहर से आते हैं जहां युवाओं का लक्ष्य आईआईटी, जीई या यूपीएससी की तैयारी करना रहा करता था लेकिन उनके बचपन के कोच केशव रंजन बनर्जी के अनुसार धोनी की कहानी ने यह सोच बदल दी।
कप्तान विराट कोहली ने कहा था कि उनके कप्तान हमेशा धोनी रहेंगे और इस धुरंधर की मौजूदगी ने विराट का काम हमेशा आसान किया। भारतीय क्रिकेट में कई महान खिलाड़ी हुए और आगे भी होंगे लेकिन अपनी शर्तों पर अपने कैरियर की दिशा तय करने वाले ‘कैप्टन कूल’ धोनी जैसा कप्तान और खिलाड़ी सदियों में एक पैदा होता है।